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सिविल कानून

थॉमस प्रेस (इंडिया) लिमिटेड बनाम नानक बिल्डर्स (2013)

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 31-Jan-2025

परिचय

  • यह संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत लंबित वाद अंतरण और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत अभियोग की कार्यवाही से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर एवं न्यायमूर्ति एम.वाई. इकबाल की 2 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिया गया।

तथ्य 

  • यह मामला नई दिल्ली के कॉनॉट प्लेस में "ओझा हाउस"/"साहनी मेंशन" नामक एक संपत्ति से संबंधित है, जिसका मूल स्वामित्व साहनी (श्रीमती लखबीर साहनी और श्री एच.एस. साहनी) के पास था। 
  • इस विवाद की उत्पत्ति के लिये मुख्य घटनाओं की समय-सीमा निम्नलिखित है:
    • 29 मई 1986: नानक बिल्डर्स (वादी) ने साहनी के साथ 50 लाख रुपये में पहली मंजिल पर 4000 वर्ग फीट क्षेत्र खरीदने के लिये एक करार किया, जिसमें 1 लाख रुपये का अग्रिम भुगतान किया गया। 
    • 1988: लिविंग मीडिया इंडिया लिमिटेड (LMI) ने उसी परिसर को पट्टे पर देने की पेशकश की। 
    • सितंबर 1990: LMI ने साहनी के विरुद्ध निषेधाज्ञा के लिये वाद संस्थित किया। 
    • 8 अप्रैल 1991: LMI के मुकदमे में समझौता हुआ और संपत्ति उन्हें पट्टे पर दे दी गई।
    • 1 नवंबर 1991: नानक बिल्डर्स ने 1986 के समझौते के विनिर्दिष्ट पालन के लिये मुकदमा दायर किया। 
    • 14 अक्टूबर 1998: विजया बैंक के ऋण वसूली मुकदमे का निर्णय दिया गया। 
    • जनवरी-अप्रैल 2001: साहनी ने थॉमसन प्रेस इंडिया लिमिटेड के पक्ष में पाँच बिक्री विलेख निष्पादित लिये।
  • थॉमसन प्रेस ने नानक बिल्डर्स द्वारा दायर विनिर्दिष्ट पालन के वाद में प्रतिवादी के रूप में पक्षकार बनने के लिये आवेदन दायर किया है। 
  • दिल्ली उच्च न्यायालय (एकल न्यायाधीश और खंडपीठ दोनों) ने थॉमसन प्रेस की पक्षकार बनने की याचिका को खारिज कर दिया। 
  • वर्तमान अपील इस अस्वीकृति आदेश के विरुद्ध है।

शामिल मुद्दे 

  • क्या थॉमस प्रेस इंडिया लिमिटेड (अंतरित लंबित वाद) को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश I नियम 10 के अंतर्गत प्रतिवादी के रूप में शामिल किया जाना चाहिये?

टिप्पणी  

  • न्यायालय ने सबसे पहले लंबित वाद के सिद्धांत पर चर्चा की, जो संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 52 में सन्निहित है। 
  • TPA की धारा 52 पर राजेंद्र सिंह बनाम सांता सिंह (1973) के मामले में चर्चा की गई थी, जहाँ यह निर्धारित किया गया था:
    • लंबित वाद के सिद्धांत का पूरा उद्देश्य मुकदमे के पक्षकारों के साथ-साथ अन्य लोगों को, जो मुकदमे की विषय-वस्तु अचल संपत्ति में अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं, न्यायालय की शक्ति और अधिकार क्षेत्र के अधीन करना है, ताकि लंबित कार्यवाही के उद्देश्य को विफल होने से रोका जा सके। 
    • लंबित वाद के सिद्धांत का उद्देश्य मुकदमे के पक्षकारों द्वारा न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को दरकिनार करने के प्रयासों पर प्रहार करना था, जिसमें अचल संपत्ति में अधिकारों या हितों पर विवाद लंबित है।
  • न्यायालय ने CPC के तहत पक्षों को अभियोजित करने के लिये निर्धारित व्यापक सिद्धांतों का भी हवाला दिया:
    • न्यायालय कार्यवाही के किसी भी चरण में, पक्षकारों द्वारा लिये गए आवेदन पर या अन्यथा, किसी भी व्यक्ति को पक्षकार के रूप में प्रत्यक्ष रूप से शामिल कर सकता है, जिसे वादी या प्रतिवादी के रूप में शामिल किया जाना चाहिये था या जिसकी न्यायालय के समक्ष उपस्थिति मुकदमे में शामिल मुद्दों के प्रभावी और पूर्ण निर्णय के लिये आवश्यक है।
    • आवश्यक पक्ष वह व्यक्ति है जिसे मुकदमे में पक्षकार के रूप में शामिल किया जाना चाहिये तथा जिसकी अनुपस्थिति में न्यायालय द्वारा प्रभावी डिक्री पारित नहीं की जा सकती है।
    • उचित पक्षकार वह व्यक्ति होता है जिसकी उपस्थिति न्यायालय को सभी मामलों एवं मुद्दों पर पूरी तरह, प्रभावी और उचित तरीके से निर्णय लेने में सक्षम बनाती है, हालाँकि वह ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता है जिसके पक्ष में या जिसके विरुद्ध डिक्री बनाई जानी है। 
    • यदि कोई व्यक्ति उचित या आवश्यक पक्षकार नहीं पाया जाता है, तो न्यायालय के पास वादी की इच्छा के विरुद्ध उसे अभियोगी बनाने का आदेश देने का अधिकार नहीं है।
    • विनिर्दिष्ट अनुतोष के लिये मुकदमे में, न्यायालय ऐसे क्रेता को पक्षकार बनाने का आदेश दे सकता है जिसका आचरण ईमानदार हो, तथा जो लंबित वाद के विषय में सूचना प्राप्त करने के उचित समय के अंदर पक्षकार के रूप में शामिल होने के लिये आवेदन दायर करता है। हालाँकि, यदि आवेदक किसी गुप्त लेनदेन का लाभार्थी है, तो न्यायालय पक्षकार बनने की प्रार्थना को अस्वीकार करने में न्यायसंगत होगा।
  • न्यायालय ने कहा कि वर्तमान तथ्यों को देखते हुए इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि अपीलकर्ता ने प्रतिवादियों के साथ गुप्त लेन-देन किया और संपत्ति को अपने पक्ष में अंतरित करवा लिया। 
  • इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि थॉमस प्रेस एक वास्तविक क्रेता है।
  • हालाँकि, न्यायालय ने वर्तमान तथ्यों के आधार पर माना कि न्याय के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए तथा मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए अपीलकर्ता को प्रतिवादी के रूप में जोड़ा जाना चाहिये।

निष्कर्ष 

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जो लंबित मामले में स्थानांतरित व्यक्ति को पक्षकार बनाने का प्रावधान करता है।