मदर बून फूड्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम माइंडस्केप वन मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड ओ.एम.पी. (COMM) 136 2017
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वाणिज्यिक विधि

मदर बून फूड्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम माइंडस्केप वन मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड ओ.एम.पी. (COMM) 136 2017

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 04-Jul-2024

परिचय:

इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा पारित पंचाट को रद्द कर दिया।

तथ्य:

  • याचिकाकर्त्ता और प्रतिवादी के बीच 25 जुलाई 2012 को एक समझौता हुआ, जो याचिकाकर्त्ता द्वारा प्रतिवादी की कंपनी के लिये ब्रेड के विनिर्माण और पैकेजिंग से संबंधित था।
  • उनके बीच विवाद उत्पन्न हो गया जिसके कारण समझौता समाप्त हो गया।
  • याचिकाकर्त्ता ने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने तथा बैठक आयोजित करने का अनुरोध किया, जो अंततः विफल हो गई तथा कोई निष्कर्ष नहीं निकाला गया।
  • याचिकाकर्त्ता ने प्रतिवादियों से कुछ अंतिम दावे प्रस्तुत किये, जिन्हें प्रतिवादी ने अस्वीकार कर दिया, जिसके आधार पर प्रतिवादी ने मध्यस्थता कार्यवाही के लिये आवेदन किया तथा समझौते के मध्यस्थता खंड का आह्वान किया।
  • तीन मध्यस्थों वाला एक मध्यस्थता न्यायाधिकरण स्थापित किया गया तथा पक्षों को नोटिस भेजे गए।
  • जिसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी ने अपने दावे प्रस्तुत किये, जबकि याचिकाकर्त्ता ने मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन को चुनौती दी।
  •  कई नोटिसों के बाद भी याचिकाकर्त्ता कार्यवाही के लिये उपस्थित नहीं हुआ, जिसके परिणामस्वरूप न्यायाधिकरण ने प्रतिवादी के पक्ष में एकपक्षीय निर्णय दिया।
  • जिसके अनुसरण में याचिकाकर्त्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष मध्यस्थता एवं सुलह (A&C)अधिनियम, 1996 की धारा 34(2) के तहत एक आवेदन दायर किया।

शामिल मुद्दे:

  • क्या मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन हेतु मौखिक अनुरोध कर, पक्षों के बीच समझौते को पलटा जा सकता है?

टिप्पणियाँ:

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता खंड में स्पष्ट रूप से मध्यस्थता कार्यवाही के लिये एकमात्र मध्यस्थ की नियुक्ति का उल्लेख है।
  • आगे कहा गया कि A&C अधिनियम, 1996 के अनुसार समझौता लिखित रूप में होना चाहिये।
  • न्यायालय ने यह भी पाया कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन पर याचिकाकर्त्ता की आपत्ति के बावजूद न्यायाधिकरण ने कार्यवाही जारी रखी और पंचाट पारित कर दिया।

निष्कर्ष:

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण का गठन समझौते के अनुरूप नहीं था और इसलिये न्यायाधिकरण द्वारा पारित पंचाट को A&C अधिनियम, 1996 की धारा 34 के अनुसार रद्द किया गया और याचिकाकर्त्ता की याचिका को स्वीकार कर लिया गया।