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वाणिज्यिक विधि
श्याम सुंदर अग्रवाल बनाम पी. नरोत्तम राव एवं अन्य (2018)
«13-Dec-2024
परिचय
यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें इस बात पर चर्चा की गई है कि किसी संविदा का कोई विशेष खंड माध्यस्थम् खंड है या नहीं
- यह निर्णय न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने दिया।
तथ्य
- यह मामला मंचेरियल सीमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड में शेयरों की बिक्री और खरीद के लिये 8 दिसंबर, 2005 के समझौता ज्ञापन (MoU) से संबंधित है।
- दोनों पक्ष कंपनी के निदेशक थे।
- मुख्य विवाद यह था कि क्या समझौता ज्ञापन का खंड 12 एक वैध माध्यस्थम् खंड है।
- अपीलकर्त्ता (श्याम सुंदर अग्रवाल) ने तर्क दिया कि खंड 12 में मध्यस्थता खंड के आवश्यक तत्त्व शामिल हैं:
- इसमें "निर्णय" जैसे शब्दों का उपयोग किया गया।
- "मध्यस्थ" का उल्लेख किया गया।
- "किसी भी उल्लंघन" का उल्लेख किया गया।
- कहा गया कि निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होगा।
- प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि:
- "मध्यस्थ" शब्द का प्रयोग अस्पष्ट रूप से किया गया था।
- नामित दो व्यक्ति (के. सुधाकर राव और गोन प्रकाश राव) एस्क्रो एजेंट थे।
- एस्क्रो एजेंट एक तटस्थ तृतीय पक्ष होता है जो किसी भी लेन-देन में शामिल परिसंपत्तियों और निधियों को तब तक अपने पास रखता है जब तक कि एस्क्रो एजेंट के रूप में शर्तें पूरी नहीं हो जातीं। एस्क्रो एजेंट खरीदार और विक्रेता दोनों की सुरक्षा करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लेन-देन सुचारू रूप से हो।
- उनकी भूमिका विवादों को सुलझाना नहीं, बल्कि लेनदेन का सफल कार्यान्वयन सुनिश्चित करना था।
शामिल मुद्दा
- क्या समझौता ज्ञापन के खंड 12 को वैध माध्यस्थम् खंड माना जा सकता है जो माध्यस्थम् के माध्यम से विवाद समाधान की अनुमति देता है?
टिप्पणी
- उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से माना कि खंड 12 वैध माध्यस्थम् खंड नहीं है।
- "मध्यस्थ" अनिवार्य रूप से एस्क्रो एजेंट थे जिनका उद्देश्य विवादों को हल करना नहीं बल्कि लेनदेन को सुविधाजनक बनाना था।
- न्यायालय ने पाया कि उपयोग की गई भाषा अस्पष्ट थी और प्राथमिक उद्देश्य विवादों को रोकना था, न कि उनका निपटारा करना।
- न्यायालय ने अपीलकर्त्ता के आचरण की भी आलोचना की, जिसमें जानबूझकर की गई देरी और फोरम शॉपिंग को नोट किया गया।
- इसलिये अपील खारिज कर दी गई।
निष्कर्ष
- उच्चतम न्यायालय के निर्णय में माध्यस्थम् के प्रावधानों को सावधानीपूर्वक तैयार करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है तथा यह सुनिश्चित किया गया है कि मात्र प्रशासनिक तंत्र को विवाद समाधान साधन नहीं माना जा सकता।
- MoU की भाषा और आशय की जाँच करके न्यायालय ने वैध माध्यस्थम् समझौते के लिये आवश्यक आवश्यकताओं की पुष्टि की है, तथा स्वरूप से अधिक सार पर ज़ोर दिया है।