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आपराधिक कानून
हरकीरत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1997)
« »14-Feb-2025
परिचय
- यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें कहा गया है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 162 के कारण जाँच कार्यवाही के दौरान दिये गए अभिकथन को ठोस साक्ष्य के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति एम.के. मुखर्जी एवं न्यायमूर्ति एस. सगीर अहमद की दो सदस्यीय पीठ ने दिया।
तथ्य
- इस मामले में हरकीरत सिंह (अपीलकर्त्ता) और चार अन्य सहित कई आरोपी व्यक्ति शामिल हैं, जिन पर सत्र न्यायाधीश, कपूरथला द्वारा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) के अधीन विभिन्न अपराधों के लिये वाद लाया गया था, जिनमें शामिल हैं:
- धारा 148 (घातक हथियारों के साथ दंगा कारित करना)
- धारा 449/149 (एकसमान आशय से घर में अतिचार)
- धारा 302/149 (एकसमान आशय से हत्या)
- धारा 307/149 (एकसमान आशय से हत्या का प्रयास)
- भोलाथ में एक जमीन के टुकड़े को लेकर वलैती राम एवं आरोपी नरिंदर सिंह (जिन्हें बाद में दोषमुक्त कर दिया गया) के बीच एक सिविल वाद चल रहा था। घटना से पहले वलैती राम ने एक सिविल न्यायालय के निर्णय माध्यम से विवादित जमीन पर कब्जा प्राप्त कर लिया था।
- 28 नवंबर, 1996 को सुबह करीब 10 बजे वलैती राम अपने भाई खराती राम एवं दो अन्य लोगों (खरैती लाल - PW संख्या 4 और अजीत सिंह - PW संख्या 5) के साथ विवादित जमीन पर नींव डालने का कार्य कर रहे थे।
- इस समय, हरकीरत सिंह सहित पाँच आरोपी व्यक्ति कथित तौर पर घातक हथियारों से लैस होकर घटनास्थल पर पहुँचे। अभियोजन पक्ष के अनुसार, हरकीरत सिंह के पास एक पिस्तौल थी।
- अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि नरिंदर सिंह ने नींव डालने के कारण उन्हें सबक सिखाने की धमकी दी, जिसके बाद हरकीरत सिंह ने कथित तौर पर गोलियाँ चलाईं, जो खराती राम (वलाती राम के भाई) और गुरमीत सिंह (PW संख्या 3) को लगीं, जो सड़क से गुजर रहे थे।
- इसके बाद हुए भिड़ंत में, शिकायतकर्त्ता पक्ष के कुछ सदस्यों ने भी आत्मरक्षा में आरोपियों पर हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी भी घायल हो गए।
- खराती राम को सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गई।
- अभियोजन पक्ष का मामला मुख्य रूप से तीन प्रत्यक्षदर्शी साक्षी की गवाही पर निर्भर था:
- गुरमीत सिंह (PW संख्या 3) - जो वाद के दौरान अपने अभिकथन से मुकर गया।
- खरैती लाल (PW संख्या 4)
- अजीत सिंह (PW संख्या 5)
- मूल शिकायतकर्त्ता, वलैती राम, जिन्होंने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की थी, गवाही नहीं दे सके क्योंकि उनकी मृत्यु वाद से पहले ही हो गई थी।
- इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने हरकीरत सिंह को IPC की धारा 302 एवं धारा 307 के अधीन दोषसिद्धि दी तथा अन्य चार आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया।
- उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ता की अपील को खारिज कर दिया तथा ट्रायल कोर्ट के दोषसिद्धि के निर्णय को यथावत बनाए रखा।
- इसलिये, मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।
शामिल मुद्दे
क्या उच्च न्यायालय द्वारा अपीलकर्त्ता की सजा यथावत बनाए रखना उचित था?
टिप्पणी
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 162 के अधीन प्रतिबंध के मद्देनजर जाँच कार्यवाही के दौरान खराटी राम द्वारा दिये गए अभिकथन को ठोस साक्ष्य के रूप में मानने में उच्च न्यायालय का न्यायोचित नहीं था।
- इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने पाया कि उच्च न्यायालय ने खराटी राम द्वारा दर्ज FIR की सामग्री पर विश्वास किया, जिसकी सुनवाई के दौरान जाँच नहीं की जा सकी क्योंकि इस बीच उसकी मृत्यु हो गई थी।
- FIR की सामग्री का प्रयोग वलैती राम की पुष्टि या खंडन करने के लिये किया जा सकता था, अगर उससे पूछताछ की गई होती, लेकिन किसी भी परिस्थिति में इसे ठोस साक्ष्य के तौर पर प्रयोग नहीं किया जा सकता।
- न्यायालय ने माना कि मौजूदा तथ्यों में केवल दो प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों द्वारा दिया गया साक्ष्य बचा है तथा उन पर पूर्ण रूप से विश्वास नहीं किया जा सकता।
- इसलिये, न्यायालय ने अपीलकर्त्ता के विरुद्ध दर्ज दोषसिद्धि एवं सजा को खारिज कर दिया।
- इसलिये अपीलकर्त्ता को उसकी जमानत बॉण्ड से मुक्त कर दिया गया।
निष्कर्ष
- यह FIR और जाँच रिपोर्ट के साक्ष्य मूल्य से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
- न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट किया कि CrPC की धारा 162 के अधीन प्रतिबंध के मद्देनजर जाँच कार्यवाही के दौरान खराटी राम द्वारा दिये गए अभिकथन को ठोस साक्ष्य के रूप में मानने में उच्च न्यायालय का निर्णय न्यायोचित नहीं था।