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आपराधिक कानून

रमेश चंद्र श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2021)

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 19-Feb-2025

परिचय

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जो दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 319 के अधीन न्यायालय की शक्ति अभिनिर्धारित करता है। 

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की दो सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया।

तथ्य  

  • मृतक की पत्नी (द्वितीय प्रतिवादी) द्वारा 27.06.2015 को एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसके पति (जो अपीलकर्त्ता का ड्राइवर था) की हत्या उसके नियोक्ता (अपीलकर्त्ता) ने दोस्तों की सहायता से की थी। 
  • FIR में, उसने कहा कि उसका पति अपीलकर्त्ता से मिलने के लिये कार्य पर गया था, दोपहर 2 बजे उसने फोन करके कहा कि वह गोला जा रहा है तथा शाम तक वापस आ जाएगा, लेकिन फिर उसका फोन बंद हो गया और एक अज्ञात शव मिला। 
  • पुलिस विवेचना के बाद, अपीलकर्त्ता को छोड़कर तीन लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया गया। 
  • बाद में, पत्नी ने गवाही दी कि:
    • उसका पति 23.06.2015 को घर से यह कहकर निकला था कि उसके कार मालिक ने उसे बुलाया है
    • उसने दोपहर 2 बजे फोन करके कहा कि वह अपीलकर्त्ता के साथ गोला जा रहा है
    • जब उसने अपीलकर्त्ता को फोन किया, तो उसने उसे बताया कि कार सरकारी ट्यूबवेल के पास मिली है तथा उसके अंदर उसके पति की चप्पलें हैं
    • उसे और उसके परिवार को यकीन हो गया कि अपीलकर्त्ता ने दोस्तों की सहायता से उसके पति की हत्या कर दी है
  • इस अभिकथन के आधार पर अभियोजन पक्ष ने 5 अगस्त 2017 को धारा 319 CrPC के अधीन एक आवेदन किया। 
  • सत्र न्यायाधीश ने 11.09.2018 को अपीलकर्त्ता को तलब करने का आदेश दिया, जिस निर्णय को उच्च न्यायालय ने यथावत बनाए रखा। 
  • इसलिये मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।

शामिल मुद्दे  

  • क्या न्यायालय वर्तमान तथ्यों के आधार पर CrPC की धारा 319 के अंतर्गत अतिरिक्त अभियोजन चला सकता है?

टिप्पणी 

  • न्यायालय ने कहा कि इस मामले में हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) में निर्धारित सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिये।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि धारा 319 CrPC के अधीन, शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब "सशक्त एवं ठोस साक्ष्य" मौजूद हों, न कि "आकस्मिक एवं लापरवाह तरीके से" तथा परीक्षण के लिये "प्रथम दृष्टया मामले से अधिक" साक्ष्य की आवश्यकता होती है, लेकिन ऐसे साक्ष्यों की कमी होती है जो बिना खंडन के दोषसिद्धि की ओर ले जा सकें।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि CrPC की धारा 319 के अधीन शक्ति का प्रयोग करने के लिये अभिकथन को प्रतिपरीक्षा से गुजरना आवश्यक नहीं है।
  • न्यायालय ने कहा कि सत्र न्यायालय को मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया जाना चाहिये।
  • इसलिये, न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया।

निष्कर्ष 

  • यह CrPC की धारा 319 के अधीन न्यायालय के अतिरिक्त अभियोजन की शक्ति से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है। 
  • इस मामले में न्यायालय ने CrPC की धारा 319 के अधीन अतिरिक्त अभियोजन के प्रयोजनों के लिये हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) में निर्धारित सिद्धांतों को दोहराया।