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आपराधिक कानून
रशीदुल जाफर @ छोटा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022)
« »10-Dec-2024
परिचय
- यह समय से पूर्व रिहाई से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की दो सदस्यीय पीठ ने सुनाया।
तथ्य
- 1 अगस्त, 2018 को, उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्यपाल की स्वीकृति से गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष दोषियों की समय से पूर्व रिहाई को विनियमित करने के लिये एक नीति जारी की।
- यह प्रकरण उत्तर प्रदेश में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 512 दोषियों से संबंधित है, जो समय से पूर्व रिहाई की अपील कर रहे हैं।
- 28 जुलाई, 2021 को सरकार ने नीति में संशोधन करते हुए एक नई शर्त जोड़ दी कि कैदियों की समय से पूर्व रिहाई पर केवल 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद ही विचार किया जा सकता है।
- इस 2021 संशोधन को कई आधारों पर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई:
- कैदियों ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि उनकी सज़ा के समय लागू नियमों के अनुसार समय से पहले रिहाई पर विचार किया जाना चाहिये।
- आयु की आवश्यकता को संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का उल्लंघन माना गया है।
शामिल मुद्दा
- क्या 2021 में सरकार की नीति में किया गया संशोधन COI का उल्लंघन करता है?
टिप्पणियाँ
- उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कई प्रमुख सिद्धांतों पर प्रकाश डाला:
- समय से पूर्व रिहाई की नीतियों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाना चाहिये
- आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे कई लोगों के पास संसाधनों की कमी है और उन्हें कानूनी उपचार पाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है
- राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह रिहाई के लिये पात्र कैदियों पर सक्रियता से विचार-विमर्श करे।
- उच्चतम न्यायालय ने कई महत्त्वपूर्ण निर्देश जारी किये:
- मामलों पर 1 अगस्त, 2018 की मूल नीति के तहत विचार किया जाना चाहिये।
- अधिक उदार नीति संशोधनों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।
- कैदियों को समय से पहले रिहाई के लिये आवेदन जमा करने की आवश्यकता नहीं है।
- ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरणों को पात्र मामलों की पहचान करने और उन्हें संसाधित करने में सहायता प्रदान करनी चाहिये।
- समय से पूर्व रिहाई के आवेदनों पर त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिये।
- 70 वर्ष से अधिक आयु के या गंभीर बीमारियों से ग्रस्त कैदियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता का आधार किसी व्यक्ति के संसाधनों पर निर्भर नहीं होना चाहिये और संवैधानिक समानता के वादे को अवश्य पूरा किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- यह प्रकरण छूट के महत्त्व को उजागर करता है और समय से पूर्व रिहाई से संबंधित विभिन्न दिशा-निर्देशों को भी स्थापित करता है।