अन्ना मैथ्यू एवं अन्य बनाम भारत का उच्चतम न्यायालय W.P.(C) 147 एवं 148/2023
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सांविधानिक विधि

अन्ना मैथ्यू एवं अन्य बनाम भारत का उच्चतम न्यायालय W.P.(C) 147 एवं 148/2023

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 26-Jun-2024

परिचय:

यह मामला उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये पात्रता एवं उपयुक्तता की अवधारणा तथा न्यायिक समीक्षा हेतु न्यायालय के विस्तार के मध्य अंतर से संबंधित है।

तथ्य:

  • इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के तीन अधिवक्ताओं द्वारा उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की गई थी।
  • आवेदकों ने अधिवक्ता एल. सी. विक्टोरिया गौरी को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की कॉलेजियम की अनुशंसा को चुनौती दी।
  • अधिवक्ताओं ने आरोप लगाया कि अधिवक्ता एल. सी. गौरी की पदोन्नति से न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये बड़ा संकट उत्पन्न होगा एवं याचिकाकर्त्ताओं ने उनकी नियुक्ति के विरुद्ध अंतरिम आदेश की मांग की है।
  • इसमें कहा गया कि उन्होंने अल्पसंख्यकों के प्रति घोर घृणा का प्रदर्शन किया है तथा अपने भाषणों में ईसाई एवं मुस्लिम समुदायों को निशाना बनाया है।
  • यह भी कहा गया कि उन्हें अनुशंसित सूची से हटा दिया जाना चाहिये, क्योंकि वह न्याय नहीं कर सकतीं तथा बिना किसी दुर्भावना के अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं कर सकती।
  • यह भी तर्क दिया गया कि कॉलेजियम के पास अधिवक्ता को उच्च न्यायालय में पदोन्नत करते समय उनके विषय में पर्याप्त सूचना नहीं थी।
  • डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़ ने याचिका पर तत्काल सुनवाई का आदेश दिया और मामले की सुनवाई 10 फरवरी 2023 को निर्धारित की।
  • इसी बीच, अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये 13 न्यायाधीशों एवं अधिवक्ता गौरी के नामों की सूची जारी की गई।
  • इसलिये, उच्चतम न्यायालय ने मामले की सूचीबद्ध तिथि यानी 7 फरवरी 2023 से पूर्व याचिका पर सुनवाई की।

शामिल मुद्दे:  

  • क्या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 217 के अंतर्गत न्यायिक समीक्षा के दायरे में आती है?

टिप्पणी:

  • न्यायालय ने कहा कि यह मामला उपयुक्तता पर आधारित है, पात्रता पर नहीं।
  • न्यायालय ने कहा कि पात्रता से संबंधित मामले न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं, परंतु उपयुक्तता से संबंधित मामलों पर इसके अधीन विचार नहीं किया जा सकता।
  • न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि न्यायाधीशों की पदोन्नति उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा नहीं की जाएगी।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी समुदाय के विरुद्ध नफरत भरे भाषण देना किसी व्यक्ति को न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत होने के अयोग्य नहीं ठहराता है और न ही उसे शपथ दिलाने से रोका जा सकता है।
  • यह भी कहा गया कि यह नहीं माना जा सकता कि कॉलेजियम को अपनी अनुशंसा देते समय अनुशंसित न्यायाधीशों की राजनीतिक पृष्ठभूमि के विषय में सूचना उपलब्ध नहीं थी।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि उन्हें अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है तथा इसकी अभी पुष्टि नहीं हुई है।
  • उच्चतम न्यायालय ने अपने पिछले निर्णयों पर विचार करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि वह उत्प्रेषण और परमादेश के रिटों पर विचार नहीं कर सकता, क्योंकि यह न्यायालय के अनुपात सिद्धांत के विरुद्ध होगा।

निष्कर्ष:

न्यायालय ने रिट याचिका को अस्वीकार कर दिया एवं अधिवक्ता एल. सी. विक्टोरिया गौरी (अब न्यायमूर्ति गौरी) को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने की अनुमति दे दी।