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सांविधानिक विधि

BCCI बनाम क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार (2015) 3 SCC 251

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 26-Dec-2023

परिचय:

इस मामले में, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (Board of Control for Cricket in India- BCCI) की विधिक स्थिति और इसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्ति के दुरुपयोग से उत्पन्न दायित्व के संबंध में प्रश्न उठाए गए हैं, जिसने भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है।

तथ्य:

  • BCCI ने वर्ष 2007 में इंडियन प्रीमियर लीग (Indian Premier League- IPL) शुरू करने का फैसला किया और 27 सितंबर, 2008 को हुई एक बैठक में श्री एन. श्रीनिवासन को BCCI के सचिव के रूप में नियुक्त करने का फैसला किया और उसी बैठक में BCCI ने IPL तथा चैंपियंस लीग T20 को इसके दायरे से बाहर करने के लिये अपने विनियमन 6.2.4 में संशोधन किया।
  • अप्रैल 2013 में, दिल्ली पुलिस को IPL में स्पॉट फिक्सिंग के संबंध में सूचना मिली और दो लोगों के खिलाफ आरोप लगाए गए।
  • BCCI ने श्री संजय जगदाले और मद्रास उच्च न्यायालय के दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया और उनके इस्तीफे के बाद जाँच समिति में दो सेवानिवृत्त न्यायाधीश भी शामिल थे।
  • क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार ने भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील की और इस समिति के गठन को संविधान के दायरे से बाहर घोषित करने की मांग की तथा पैनल में सेवानिवृत्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की मांग की।
  • उन्होंने BCCI के साथ IPL फ्रेंचाइजी चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स के अनुबंध को समाप्त करने एवं एन. श्रीनिवासन के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने की भी प्रार्थना की।
  • न्यायालय ने 30 जुलाई, 2013 के एक आदेश में जाँच आयोग के गठन को IPL परिचालन नियमों के प्रावधान 2.2 और 6 का उल्लंघन करार दिया।
  • हालाँकि, HC ने अनुच्छेद 226 के तहत सेवानिवृत्त न्यायाधीशों वाले आयोग के गठन के रूप में राहत देने से इनकार कर दिया।
  • इसके बाद क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार की ओर से उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।

शामिल मुद्दे:

  • क्या BCCI भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' के अंतर्गत था या नहीं और यदि नहीं, तो क्या यह भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के रिट अधिकारिता के लिये उत्तरदायी था?

टिप्पणियाँ:

  • न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) एक सरकारी इकाई नहीं बल्कि एक स्वायत्त संस्था है, जो गहन राज्य नियंत्रण के अधीन नहीं है।
  • क्रिकेट पर एकाधिकार स्थापित करने के बावजूद, न्यूनतम वित्तीय सहायता के साथ, यह दर्जा राज्य द्वारा प्रदान या संरक्षित नहीं किया गया था।
  • जबकि अनुच्छेद 12 के तहत BCCI एक 'राज्य' की श्रेणी में नहीं है फिर भी अपने सार्वजनिक कार्यों के लिये यह अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के रिट अधिकारिता के अंतर्गत आता है।
  • इन सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन के दौरान की जाने वाली कार्रवाइयाँ न्यायिक जाँच के अधीन होती हैं, जिसमें राज्य की कार्रवाइयों के समान मानक लागू होते हैं।
  • सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त क्रिकेट पर BCCI के महत्त्वपूर्ण नियंत्रण का तात्पर्य यह है कि यह सार्वजनिक कार्य करता है, भले ही वर्तमान में इसका प्रबंधन एक गैर-सरकारी इकाई द्वारा किया जाता है।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकारी समर्थन और विनियमन की अनुपस्थिति BCCI के कार्यों की सार्वजनिक प्रकृति का संकेत देती है, जिससे यह न्यायिक समीक्षा के योग्य हो जाता है।

निष्कर्ष:

  • BCCI की विधिक स्थिति महज एक सोसायटी की तरह है जो एक अधिनियम के तहत पंजीकृत है, लेकिन बदलते परिदृश्यों के साथ संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत अपनी स्थिति के संबंध में BCCI की स्थिति स्पष्ट करने के लिये विभिन्न दृष्टिकोण अपनाए गए हैं।
  • इस निर्णय के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया गया कि बोर्ड सार्वजनिक कार्य करता है क्योंकि क्रिकेट के क्षेत्र में उसके पास अनिश्चित और व्यापक शक्तियाँ है और इतना ही नहीं, बल्कि उसे सरकार की मौन सहमति भी प्राप्त है क्योंकि वह जो भी गतिविधियाँ करता है उसे भारत सरकार का समर्थन प्राप्त होता है।

नोट:

भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 12 राज्य के अर्थ से संबंधित है, बशर्ते कि संदर्भ में अन्यथा आवश्यक न हो, राज्य में भारत की सरकार एवं संसद और प्रत्येक राज्य की सरकार व विधानमंडल तथा भारत के क्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के तहत सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण शामिल हैं।