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सांविधानिक विधि

डॉ. उपेंद्र बक्सी एवं अन्य (द्वितीय) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (1986)

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 22-Nov-2024

परिचय

  • यह बालिकाओं के लिये आश्रय गृहों को दिये गए निर्देशों से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती, न्यायमूर्ति जी.एल. ओझा और न्यायमूर्ति वी. खालिद ने दिया।

तथ्य  

  • आगरा के एक सरकारी संरक्षण गृह में बालिकाओं की खराब रहने की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए एक रिट याचिका दायर की गई थी।
  • उच्चतम न्यायालय ने रहने की स्थिति में सुधार के आदेश दिए तथा ज़िला न्यायाधीश को समय-समय पर गृह का निरीक्षण करने को कहा।
  • विजयनगर कॉलोनी परिसर में रहने की स्थिति में काफी सुधार हुआ और एसोसिएशन फॉर सोशल हेल्थ इन इंडिया के डॉ. आर.एस. सोढ़ी ने इन प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • मार्च 1984 में राज्य सरकार ने न्यायालय की अनुमति के बिना संरक्षण गृह को स्थानांतरित करने की योजना बनाई।
  • डॉ. सोढ़ी और ज़िला न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय की मंज़ूरी के बिना स्थानांतरण के विरुद्ध बार-बार चेतावनी दी।
  • चेतावनियों के बावजूद, राज्य सरकार ने वर्ष 1985 के मध्य में घर को आदर्श नगर, राजवाड़ा में स्थानांतरित कर दिया।
  • विजयनगर कॉलोनी परिसर को खाली करने के लिये कोई कानूनी बाध्यता नहीं थी (मकान मालिक का बेदखली का वाद खारिज कर दिया गया था)।
  • यह बदलाव उच्चतम न्यायालय से पूर्वानुमति लिये बिना किया गया।
  • ज़िला न्यायाधीश को पुराने और नए परिसर के बीच सुविधाओं की तुलना करने का निर्देश दिया गया।
  • स्थानांतरण के पक्ष में सरकार द्वारा दिया गया तर्क यह था कि मकान मालिक दोगुने से भी अधिक कारपेट स्पेस देने को तैयार था।
  • इस स्थानांतरण से संभवतः पिछले न्यायालय के आदेशों और सुधारों को नुकसान पहुँचा है।
  • इस कदम को राज्य सरकार द्वारा न्यायिक निगरानी के बिना की गई एकतरफा कार्रवाई के रूप में देखा गया।

शामिल मुद्दा

  • क्या सरकार को संरक्षण गृह को स्थानांतरित करने के संबंध में निर्देश देना चाहिये?

टिप्पणी

  • उच्चतम न्यायालय ने आगरा डिवीज़न के आयुक्त को हलफनामा दायर कर स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया:
    • पुराने भवन को सरेंडर करने के कारण।
    • नए परिसर में शिफ्ट होने की परिस्थितियाँ।
    • नए भवन के पूर्व निरीक्षण और तैयारी का विवरण।
  • विज़िटर्स बोर्ड
    • उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर विज़िटर्स बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया।
    • बोर्ड में निम्नलिखित शामिल होने चाहिये:
      • महिला कल्याण में विशेषज्ञता रखने वाले कम-से-कम तीन सामाजिक कार्यकर्त्ता।
      • ज़िला न्यायाधीश, आगरा द्वारा नामित दो व्यक्ति।
  • कानूनी हिरासत निरीक्षण
    • अधीक्षक को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी महिला/लड़की को कानूनी अधिकार के बिना हिरासत में न रखा जाए।
    • ज़िला न्यायाधीश मासिक निरीक्षण के दौरान कानूनी हिरासत की पुष्टि करेंगे।
    • अवैध रूप से हिरासत में लिये गए कैदियों की तत्काल रिहाई और स्वदेश वापसी।
  • कानूनी सहायता और वकालत
    • दो सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध अधिवक्ता:
      • हर पखवाड़े संरक्षण गृह का दौरा करना।
      • कैदियों की ज़रूरतों के बारे में पूछताछ करना।
      • कानूनी सहायता प्रदान करना।
    • उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को प्रति विजिट 50 रुपए मानदेय और व्यय देने का निर्देश दिया।
  • पुनर्वास कार्यक्रम-
    • राज्य सरकार को एक व्यापक पुनर्वास कार्यक्रम विकसित करने का निर्देश दिया गया।
    • इसमें निम्नलिखित पर पर ध्यान केंद्रित किया गया:
      • व्यावसायिक प्रशिक्षण।
      • कैदियों को वेश्यावृत्ति में वापस लौटने से रोकना।
      • संभावित विवाह व्यवस्था के साथ-साथ पूरी पृष्ठभूमि की जाँच करना।
  • मासिक निरीक्षण
    • ज़िला न्यायाधीश या मनोनीत अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश को:
      • हर महीने सुरक्षा गृह का दौरा करना।
      • हर महीने की 15 तिथि तक निरीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
      • न्यायालय के निर्देशों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष

यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण निर्णय है जिसमें न्यायपालिका ने सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये हस्तक्षेप किया है।

यह ऐतिहासिक निर्णय बालिकाओं के आश्रय गृहों के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।