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सांविधानिक विधि
कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023)
« »26-Aug-2024
परिचय:
- यह निर्णय भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 19 (1) (a) के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार तथा COI के अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत प्रतिबंधों का विश्लेषण करता है।
- यह निर्णय 4:1 बहुमत से सुनाया गया। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण राय दी।
तथ्य
- कई रिट याचिका दायर हुईं, जिसके परिणामस्वरूप उच्चतम न्यायालय के समक्ष इन मुद्दों पर विचार किया गया:
- उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन शहरी विकास मंत्री के विरुद्ध याचिकाकर्त्ताओं द्वारा रिट याचिकाएँ दायर की गई थीं, क्योंकि उन्होंने ऐसे बयान दिये थे जो पीड़ितों की गरिमा के लिये अपमानजनक थे।
- केरल उच्च न्यायालय में दो रिट याचिकाएँ दायर की गईं क्योंकि केरल राज्य में तत्कालीन बिजली मंत्री ने अपमानजनक बयान जारी किये थे।
- दोनों रिट याचिकाओं को केरल उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि वे नैतिक मूल्यों के दायरे में हैं तथा उन पर निर्णय लेना न्यायालय की अधिकारिता में नहीं है।
- याचिकाकर्त्ता ने यहाँ उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति अपील दायर की।
- उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन शहरी विकास मंत्री के विरुद्ध याचिकाकर्त्ताओं द्वारा रिट याचिकाएँ दायर की गई थीं, क्योंकि उन्होंने ऐसे बयान दिये थे जो पीड़ितों की गरिमा के लिये अपमानजनक थे।
- चूँकि दोनों याचिकाओं में प्रश्न एक-दूसरे से ओवरलैप हो गए थे, इसलिये उन्हें एक साथ मिला दिया गया तथा उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा उन पर विचार किया गया।
शामिल मुद्दे
- क्या COI के अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत निर्दिष्ट उचित प्रतिबंध संपूर्ण हैं?
- क्या अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 21 के अंतर्गत किसी मौलिक अधिकार का दावा राज्य या उसके साधनों के अतिरिक्त किसी अन्य के विरुद्ध किया जा सकता है?
- क्या राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह COI के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे, भले ही किसी अन्य नागरिक या निजी एजेंसी के कृत्यों या चूक से किसी नागरिक की स्वतंत्रता को खतरा हो?
- क्या किसी मंत्री द्वारा दिया गया कोई बयान, जो राज्य के किसी मामले से संबंधित हो या सरकार की रक्षा के लिये हो, को सरकार के ही पक्ष में माना जा सकता है, विशेष तौर पर सामूहिक उत्तरदायित्त्व के सिद्धांत के मद्देनजर?
- क्या किसी मंत्री द्वारा दिया गया कोई बयान, जो COI के भाग III के अंतर्गत नागरिकों के अधिकारों के साथ असंगत है, ऐसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है तथा 'संवैधानिक अपकृत्य' के रूप में कार्यवाही योग्य है?
टिप्पणी
- बहुमत की राय (न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना):
- पहले मुद्दे के संबंध में:
- न्यायालय ने माना कि COI के अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत दिये गए प्रतिबंध संपूर्ण हैं तथा व्यक्ति, लोगों के समूह/वर्ग, समाज, न्यायालय, देश एवं राज्य पर सभी संभावित हमलों को शामिल करते हैं।
- इस प्रकार, न्यायालयों ने माना है कि कोई भी प्रतिबंध जो COI के अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत नहीं आता है, असंवैधानिक होगा।
- साथ ही न्यायालय ने इस प्रश्न का उत्तर दिया कि क्या अनुच्छेद 19 (1) (a) के अंतर्गत स्वतंत्रता को अन्य मौलिक अधिकारों का आह्वान करके अनुच्छेद 19 (2) में उल्लिखित नहीं किये गए किसी भी आधार पर प्रतिबंधित किया जा सकता है।
- न्यायालय ने कहा कि अन्य मौलिक अधिकारों का आह्वान करने की आड़ में अनुच्छेद 19 (1) (a) द्वारा प्रदत्त अधिकार के प्रयोग पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।
- दूसरे मामले के संबंध में:
- इस प्रकार यहाँ इस प्रश्न का उत्तर दिया गया कि क्या संविधान के भाग III का “ऊर्ध्वाधर” या “क्षैतिज” प्रभाव है।
- COI के अनुच्छेद 15 (2) का उपबंध (a) एवं (b), 17, 20 (2), 21, 23, 24, 29 (2) द्वारा प्रदत्त अधिकार गैर राज्य इकाई के विरुद्ध भी लागू करने योग्य हैं।
- न्यायालय ने कहा कि मूल तथ्य यह है कि मौलिक अधिकार केवल राज्यों के विरुद्ध ही लागू किये जा सकते हैं, जो समय के साथ परिवर्तित हो गई है।
- इस प्रकार, अनुच्छेद 19 एवं 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार राज्य या उसके साधनों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध भी लागू किये जा सकते हैं।
- तीसरे मामले के संबंध में:
- न्यायालय ने कहा कि राज्य के दो मूल दायित्व हैं:
- विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किसी व्यक्ति को उसके जीवन एवं स्वतंत्रता से वंचित करना।
- यह सुनिश्चित करना कि किसी व्यक्ति के जीवन एवं स्वतंत्रता को अन्यथा भी वंचित नहीं किया जाए।
- न्यायालय ने कहा कि संविधान की स्थापना के समय यह कल्पना या धारणा नहीं थी कि राज्य के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति दण्डनीय अपराध करने के अतिरिक्त किसी व्यक्ति को उसके जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने में सक्षम है।
- साथ ही, पिछले वर्षों में सरकार ने अपनी कई गतिविधियों को गैर-राज्य इकाई को आउटसोर्स किया है।
- न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2018) के ऐतिहासिक निर्णय में न्यायालय ने कहा कि "यह एक ऐसा अधिकार है जो राज्य एवं गैर-राज्य इकाइयों दोनों के हस्तक्षेप से व्यक्तियों के आंतरिक क्षेत्र की रक्षा करता है।"
- इसलिये, न्यायालय ने माना कि जब भी किसी गैर-राज्य इकाई द्वारा भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरा होता है, तो अनुच्छेद 21 के अंतर्गत व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्त्तव्य है।
- न्यायालय ने कहा कि राज्य के दो मूल दायित्व हैं:
- चौथे मामले के संबंध में:
- न्यायालय ने निम्नलिखित सिद्धांत निर्धारित किये:
- सामूहिक उत्तरदायित्व की अवधारणा एक राजनीतिक अवधारणा है।
- सामूहिक उत्तरदायित्व मंत्रिपरिषद की है।
- ऐसी सामूहिक उत्तरदायित्व लोक सभा/राज्य की विधान सभा के प्रति होती है तथा ऐसी उत्तरदायित्व निम्नलिखित से संबंधित होती है:
- लिये गए निर्णय
- चूक या चूक के कार्य
- यह लोक सभा/विधान सभा के बाहर मंत्री द्वारा मौखिक रूप से दिये गए प्रत्येक बयान पर लागू नहीं हो सकता।
- इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि किसी मंत्री द्वारा दिया गया बयान, भले ही वह राज्य के किसी मामले से संबंधित हो या सरकार की रक्षा के लिये हो, सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत का उदाहरण देकर उसे सरकार के ऊपर आरोपित नहीं किया जा सकता।
- पाँचवें मामले के संबंध में:
- मात्र एक बयान जो COI के भाग III के अंतर्गत नागरिक के अधिकारों के साथ असंगत है, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है तथा कार्यवाही योग्य नहीं हो सकता है।
- लेकिन अगर ऐसे बयान के परिणामस्वरूप, अधिकारियों द्वारा कोई चूक या कमीशन का कार्य किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति/नागरिक को क्षति या हानि होती है, तो यह संवैधानिक अपकृत्य के रूप में कार्यवाही योग्य हो सकता है।
- अल्पमत की राय (न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना):
- माननीय न्यायाधीश ने कहा कि सामान्य नागरिकों एवं विशेष रूप से सार्वजनिक पदाधिकारियों को COI के अनुच्छेद 19 (1) (a) एवं अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत अधिकारों को ध्यान में रखते हुए साथी नागरिकों के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी करने से रोकने के लिये कोई भी विधि निर्माण करना संसद का कर्त्तव्य है।
- राजनीतिक दलों को अपने पदाधिकारियों और सदस्यों के कार्यों व भाषण को विनियमित एवं नियंत्रित करना है।
- कोई भी नागरिक जिस पर किसी ऐसे भाषण से हमला होता है जो 'घृणास्पद भाषण' का गठन करता है, चाहे वह भाषण सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा दिया गया हो या किसी अन्य द्वारा, वह न्यायालय में अपील किया जा सकता है तथा उचित उपचार की मांग कर सकता है।
- प्रासंगिक विधियों के अंतर्गत घोषणात्मक उपचार, निषेधाज्ञा एवं साथ ही आर्थिक क्षति के रूप में नागरिक उपचार प्रदान किये जा सकते हैं।
निष्कर्ष
यह COI के अनुच्छेद 19 (1) (a) के अंतर्गत भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित एक ऐतिहासिक निर्णय है। यह हमारे लोकतंत्र में भाषण एवं अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के महत्त्व को पुष्ट करता है। साथ ही, 4:1 के बहुमत से दिये गए इस निर्णय में यह भी माना गया है कि हमारा संविधान COI के भाग III के अंतर्गत मौलिक अधिकारों के क्षैतिज प्रवर्तन की भी परिकल्पना करता है।