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सांविधानिक विधि
नील ऑरेलियो नून्स एवं अन्य बनाम भारत संघ (2022)
«03-Sep-2024
परिचय:
इस ऐतिहासिक मामले में उच्चतम न्यायालय ने मौलिक समानता की स्थिति पर चर्चा की।
मामले के तथ्य:
- यह मामला 29 जुलाई 2021 को स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय द्वारा जारी एक नोटिस को चुनौती देने से संबंधित है, जिसमें NEET परीक्षा के लिये 15% स्नातक और 50% स्नातकोत्तर अखिल भारतीय आरक्षित सीटों में अन्य पिछड़ा वर्ग (गैर-क्रीमी लेयर) के लिये 27% आरक्षण तथा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये 10% आरक्षण लागू किया गया था।
- याचिकाकर्त्ता, डॉक्टर थे जो NEET-PG 2021 परीक्षा में शामिल हुए थे।
- 29 जुलाई 2021 के नोटिस की वैधता को चुनौती देते हुए 24 अगस्त 2021 को याचिकाएँ दायर की गईं।
- केंद्र सरकार ने EWS की पहचान के मानदंडों की समीक्षा के लिये 30 नवंबर 2021 को एक समिति (पांडे समिति) का गठन किया और समिति ने 31 दिसंबर 2021 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
शामिल मुद्दे:
- क्या NEET-PG में अखिल भारतीय आरक्षित (AIQ) सीटों में OBC एवं EWS श्रेणियों के लिये कोई आरक्षण हो सकता है?
- क्या कार्यालय ज्ञापन 2019 द्वारा EWS श्रेणी के निर्धारण हेतु अधिसूचित मानदंड असंवैधानिक था?
टिप्पणियाँ:
- न्यायालय ने कहा कि NEET-PG और NEET-UG के लिये अखिल भारतीय आरक्षित सीटों में OBC के लिये 27% आरक्षण तथा EWS के लिये 10% आरक्षण का कार्यान्वयन मौलिक समानता प्राप्त करने की दिशा में एक कदम है।
- हालाँकि न्यायालय ने यह भी माना कि मौलिक समानता के लिये सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जहाँ समान व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाता है तथा असमान व्यक्तियों के साथ भिन्न व्यवहार किया जाता है।
- न्यायालय ने पाया कि मौजूदा EWS मानदंड हाशिए पर पड़े समूहों द्वारा सामना की जाने वाली प्रणालीगत असमानताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं कर सकते हैं।
- फिर भी, यह सुनिश्चित करने के लिये कि प्रवेश प्रक्रिया अव्यवस्थित न हो, न्यायालय ने वर्तमान प्रवेश वर्ष के लिये मौजूदा मानदंडों के साथ EWS आरक्षण की अनुमति दी, जो EWS मानदंडों की वैधता पर अंतिम निर्णय के अधीन है।
निष्कर्ष:
- न्यायालय ने OBC आरक्षण की वैधता को यथावत रखा, क्योंकि उसने पाया कि आरक्षण प्रासंगिक मानदंडों पर आधारित है और यह मौलिक समानता को बढ़ावा देता है।