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सांविधानिक विधि

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड एवं अन्य बनाम भारत संघ (2023)

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 27-Aug-2024

परिचय

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक विधानसभाओं द्वारा क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में किये गए संशोधनों पर चर्चा की गई है, जिसके अंतर्गत 'जलीकट्टू' एवं अन्य बैल को नियंत्रण में करने वाले खेलों को अनुमति दी गई है।

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय एवं सी.टी. रविकुमार की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने दिया।

तथ्य

  • भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराज और अन्य (2014) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र राज्यों में प्रचलित दो खेलों ‘जलीकट्टू’ एवं ‘बैलगाड़ी दौड़’ को अविधिक घोषित कर दिया था।
  • यह माना गया कि ये खेल संसद द्वारा पारित पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (PCA) के प्रावधानों के विपरीत थे।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक अधिसूचना जारी की गई, जिसमें कुछ नियमों के साथ ‘जल्लीकट्टू’ एवं इसी तरह के अन्य आयोजनों की अनुमति दी गई।
  •  इस अधिसूचना को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई।
  •  उच्चतम न्यायालय ने उत्सव पर प्रतिबंध फिर से लगा दिया।
  •  केंद्र सरकार ने कुछ सुरक्षा उपायों के साथ तमिलनाडु में ‘जल्लीकट्टू’ के आयोजन की अनुमति देने के लिये एक अध्यादेश प्रस्तुत किया।
  •  भारत के राष्ट्रपति ने पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (PCA) में संशोधन करते हुए विधेयक को स्वीकृति दे दी है, जिससे तमिलनाडु और अन्य राज्यों में कुछ नियमों के साथ जल्लीकट्टू एवं बैलगाड़ी दौड़ की स्पष्ट रूप से अनुमति दी जा सके।
  •  याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि जल्लीकट्टू आयोजनों में बैलों के प्रयोग से जानवरों को अनावश्यक पीड़ा एवं कष्ट होता है, जो पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है, यह विधान पशुओं के प्रति क्रूरता को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया है।

शामिल मुद्दे

  •  क्या तमिलनाडु संशोधन अधिनियम मूलतः भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III की प्रविष्टि 17 के संदर्भ में है, या यह पशुओं के प्रति क्रूरता को और बढ़ाता है?
  •  क्या यह रंग-रूपी विधान है जो राज्य सूची की किसी प्रविष्टि या समवर्ती सूची की प्रविष्टि 17 से संबंधित नहीं है?
  •  क्या तमिलनाडु संशोधन अधिनियम अनुच्छेद 51A(g) और 51A(h) के विपरीत है तथा क्या इसे अनुचित एवं भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन करने वाला कहा जा सकता है?

टिप्पणी

  •  न्यायालय ने पाया कि ए. नागराज के मामले में जब निर्णय दिया गया था, उस समय जिस तरह से 'जल्लीकट्टू' का आयोजन किया गया था, वह 1960 के अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन था। हालाँकि संशोधन अधिनियमों के साथ स्थिति परिवर्तित हो गई, जिसने इन आयोजनों के संचालन के लिये एक नई व्यवस्था प्रारंभ की।
  •  न्यायालय ने पाया कि 'जल्लीकट्टू', 'कंबाला' और 'बैलगाड़ी दौड़' के चलन एवं प्रदर्शन के प्रावधान में बहुत परिवर्तन आया है।
  •  न्यायालय ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि तीनों संशोधन अधिनियम केंद्रीय विधान को अनदेखा करने के लिये बनावटी परिवर्तन के साथ महज अनावश्यक विधान थे।
  •  न्यायालय ने जिस अगले मामले का उत्तर दिया, वह यह था कि क्या संशोधन अधिनियमों को भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मनमाना होने के कारण रद्द किया जा सकता है।
  •  यहाँ आरोप लगाया गया अनुचित तत्त्व यह था कि गोजातीय प्रजाति को अनावश्यक पीड़ा का सामना करना पड़ा। न्यायालय ने माना कि 1960 का अधिनियम स्वयं कई गतिविधियों को वर्गीकृत करता है जो पीड़ा का कारण बनती हैं, यहाँ तक कि एक संवेदनशील पशु को भी।
  •  इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि यह मनमाना नहीं है।

निष्कर्ष

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि संशोधन अधिनियम एवं नियम ए. नागराज के मामले में दिये गए निर्णय के विपरीत नहीं थे तथा उपरोक्त दो निर्णयों में इंगित दोषों को राज्य संशोधन अधिनियम द्वारा दूर कर दिया गया है।