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पर्यावरणीय विधि

वेल्लोर सिटीज़न वेलफेयर फोरम बनाम भारत संघ (1996)

 23-Dec-2024

परिचय

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें एहतियाती सिद्धांत और प्रदूषक भुगतान सिद्धांत पर चर्चा की गई है।
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह, न्यायमूर्ति फैज़ान उद्दीन और न्यायमूर्ति के. वेंकटस्वामी की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया।

तथ्य

  • यह मामला तमिलनाडु में चमड़े के कारखानों द्वारा होने वाले प्रदूषण के विरुद्ध वेल्लोर सिटीज़न वेलफेयर फोरम द्वारा जनहित याचिका के रूप में दायर किया गया था।
  • तमिलनाडु के पाँच ज़िलों में 900 से अधिक चमड़े के कारखाने चल रहे थे, जो जल निकायों और कृषि भूमि में अनुपचारित अपशिष्टों का निर्वहन कर रहे थे।
  • चमड़े के कारखाने अपनी प्रक्रियाओं में लगभग 170 प्रकार के रसायनों का उपयोग करते थे, जिनमें सोडियम क्लोराइड, चूना, सल्फेट और क्रोमियम जैसे खतरनाक पदार्थ शामिल थे।
  • सर्वेक्षणों के अनुसार, प्रदूषण के कारण लगभग 35,000 हेक्टेयर कृषि भूमि आंशिक रूप से या पूर्णतः खेती के लिये अनुपयुक्त हो गई थी।
  • 13 गाँवों में पीने और सिंचाई के लिये उपयोग किये जाने वाले 467 कुओं में से 350 कुएँ प्रदूषित पाए गए।

शामिल मुद्दे

  • क्या चमड़े के कारखाने अनुपचारित अपशिष्टों को बहाकर पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन कर रहे थे?
  • क्या सतत् विकास, एहतियाती सिद्धांत और प्रदूषण फैलाने वाले को भुगतान करने के सिद्धांत भारत में पर्यावरण कानून का हिस्सा हैं?
  • पर्यावरण क्षरण को दूर करने और प्रभावित पक्षों को मुआवज़ा देने के लिये क्या उपचारात्मक उपाय किये जाने चाहिये?

टिप्पणी

  • न्यायालय ने कहा कि एहतियाती सिद्धांत और प्रदूषणकर्त्ता भुगतान सिद्धांत सतत विकास की आवश्यक विशेषताएँ हैं और भारत में पर्यावरण कानून का हिस्सा हैं।
  • न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को पीड़ितों को मुआवज़ा देना तथा पर्यावरण बहाली के लिये भुगतान करना पूर्णतः उत्तरदायी है।
  • न्यायालय ने इन सिद्धांतों को लागू करने और मुआवज़े का आकलन करने के लिये पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (EPA) के तहत एक प्राधिकरण की स्थापना का निर्देश दिया।
  • न्यायालय ने प्रत्येक चमड़े की फैक्ट्री पर 10,000 रुपए का प्रदूषण जुर्माना लगाया तथा "पर्यावरण संरक्षण कोष" बनाने का आदेश दिया।
  • न्यायालय ने सभी चर्मशोधन कारखानों को 30 नवम्बर, 1996 तक सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र (CETP) या व्यक्तिगत प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित करने का आदेश दिया।
  • न्यायालय ने पर्यावरण संबंधी मामलों की निगरानी के लिये मद्रास उच्च न्यायालय में एक विशेष "हरित पीठ" की स्थापना का निर्देश दिया।
  • न्यायालय ने जल स्रोतों के एक किलोमीटर के दायरे में प्रदूषणकारी उद्योगों पर प्रतिबंध लगाने के तमिलनाडु सरकार के आदेश को बरकरार रखा।

निष्कर्ष

  • यह उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय है, जो भारतीय पर्यावरण कानून के भाग के रूप में 'प्रदूषणकर्त्ता भुगतान करेगा' और 'एहतियाती सिद्धांत' के मौलिक पर्यावरणीय सिद्धांतों को स्थापित करता है।
  • उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में प्रदर्शित किया कि पर्यावरण संरक्षण केवल एक वैधानिक दायित्व नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक आदेश है, तथा इस बात के लिये एक मिसाल कायम की है कि किस प्रकार न्यायालय पर्यावरण की सुरक्षा के लिये सक्रिय कदम उठा सकते हैं, साथ ही यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि औद्योगिक विकास सतत् रूप से जारी रहे।

[मूल निर्णय]