क्षेत्रीय निदेशक कर्मचारी राज्य बीमा निगम बनाम रामानुज मैच इंडस्ट्रीज़ 1985 AIR 278
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सिविल कानून

क्षेत्रीय निदेशक कर्मचारी राज्य बीमा निगम बनाम रामानुज मैच इंडस्ट्रीज़ 1985 AIR 278

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 23-Aug-2024

परिचय:

भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (IPA) की धारा 4 के अनुसार भागीदारी, उन व्यक्तियों के बीच का संबंध है जो सभी या उनमें से किसी एक द्वारा सभी के लिये कार्य करते हुए किये गए व्यवसाय के लाभ को साझा करने के लिये सहमत हुए हैं।

  • भागीदारी का आधार पक्षों के बीच पारस्परिक एजेंसी है।

तथ्य:

  • इस मामले में प्रतिवादी रामानुज माचिस इंडस्ट्रीज़, केरल राज्य में माचिस के निर्माण में लगी एक फर्म थी।
  • फर्म में 18 नियमित कर्मचारी एवं 3 भागीदार थे, जो वेतन पर काम करते थे।
  • कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (ESIA) के अनुसार, अधिनियम के अंतर्गत बीमा में योगदान करने की देयता तब होती थी जब कर्मचारियों की संख्या 20 से अधिक हो जाती थी।
  • इस मामले में निरीक्षक ने पाया कि कर्मचारियों की संख्या 20 (18 कर्मचारी एवं 2 भागीदार) थी। इसलिये, प्रतिवादी ने अधिनियम के अंतर्गत अंशदान करने का दायित्व उठाया।
  • प्रतिवादी ने इस दायित्त्व को कालीकट में कर्मचारी बीमा न्यायालय में चुनौती दी।
  • कर्मचारी बीमा न्यायालय ने प्रतिवादियों के पक्ष में निर्णय दिया।
  • इसके बाद मामला उच्च न्यायालय में ले जाया गया तथा खंडपीठ ने माना कि भागीदार कर्मचारी नहीं थे।
  • इस निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।

शामिल मुद्दे:

  • क्या किसी फर्म का भागीदार ESIA की धारा 2(9) में “कर्मचारी” का प्रावधान है?

टिप्पणी:

  • इस मामले में न्यायालय ने पाया कि ESIA की धारा 2(9) के अंतर्गत "कर्मचारी" शब्द की परिभाषा इस प्रकार है: "किसी कारखाने या प्रतिष्ठान के काम में या उसके संबंध में मज़दूरी के लिये नियोजित कोई भी व्यक्ति, जिस पर अधिनियम लागू होता है" तथा इसमें (i), (ii), (iii) के अंतर्गत आने वाला व्यक्ति शामिल है।
  • चूँकि प्रतिवादी एक भागीदारी फर्म थी, इसलिये न्यायालय ने भागीदारी फर्म को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों एवं प्रावधानों पर गौर किया:
    • IPA की धारा 4 में 'भागीदारी' को परिभाषित किया गया है तथा भागीदारी के लिये आवश्यक शर्तों में से एक पक्षकारों के बीच पारस्परिक एजेंसी का होना है।
    • IPA की धारा 18 में प्रावधान है कि प्रत्येक भागीदार फर्म के व्यवसाय के प्रयोजनों के लिये फर्म का अभिकर्त्ता (एजेंट) है।
    • IPA की धारा 19 में प्रावधान है कि भागीदार द्वारा किया गया कोई भी कार्य, जो फर्म द्वारा किये जाने वाले व्यवसाय के सामान्य तरीके से करने के लिये किया जाता है, फर्म को बाध्य करता है।
    • इसके अतिरिक्त, यह देखा गया कि भागीदारी एक विधिक इकाई नहीं है।
    • चंपारण केन कंसर्न बनाम बिहार राज्य (1963) के मामले में न्यायालय द्वारा भागीदारों की स्थिति एवं फर्म के साथ उनके संबंधों पर चर्चा की गई थी। इस मामले में निम्नलिखित बिंदु रखे गए थे:
      • भागीदारी फर्म में प्रत्येक भागीदार दूसरे के एजेंट के रूप में कार्य करता है।
      • भागीदार एवं फर्म का संबंध स्वामी और नौकर या कर्मचारी का नहीं होता है जिसमें अधीनता का तत्त्व शामिल होता है।
      • भागीदारी का व्यवसाय भागीदारों का होता है तथा वे फर्म के स्वामी होते हैं।
      • इस प्रकार, भागीदार की स्थिति फर्म के अंतर्गत काम करने वाले कर्मचारियों से भिन्न होती है तथा भले ही भागीदार को कुछ पारिश्रमिक दिया जाता है, लेकिन इससे स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
  • न्यायालय ने एलिस बनाम जोसेफ एलिस एंड कंपनी (1905) के मामले में न्यायमूर्ति मैथ्यू की राय पर चर्चा की, जहाँ न्यायालय ने कहा था कि,
    • "इस अपील में आवेदक की ओर से प्रस्तुत तर्क में विधिक रूप से असंभाव्यता प्रतीत होती है, अर्थात् एक ही व्यक्ति स्वामी एवं सेवक, नियोक्ता एवं नियोजित दोनों की स्थिति में हो सकता है।"
  • इस प्रकार, यह माना गया कि संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन एवं ऑस्ट्रेलिया में स्थिति यह है कि भागीदार को केवल इसलिये कर्मचारी नहीं माना जाना चाहिये क्योंकि वह फर्म के लिये किये गए काम के लिये वेतन या पारिश्रमिक प्राप्त करता है।
  • इस मामले में आगे रखा गया एक और तर्क यह था कि प्रावधान का उदार निर्वचन की जानी चाहिये क्योंकि यह परोपकारी विधि है।
    • हालाँकि न्यायालय ने माना कि जहाँ परोपकारी विधि की अपनी कोई योजना है, वहाँ न्यायालय को योजना से आगे जाकर विधि की परिधि को बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि यह पता लगाने में कि क्या भागीदार कर्मचारी होगा, उदार निर्वचन की आवश्यकता नहीं है।
    • इस प्रकार, कोई व्यक्ति जो कर्मचारी की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है, उसे न्यूनतम सांविधिकता तय करते समय ध्यान में नहीं रखा जाएगा।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने इस मामले में माना कि भागीदार कर्मचारी नहीं है तथा कर्मचारियों की संख्या की गणना करते समय उसे शामिल नहीं किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

भागीदारी फर्म में भागीदार एक दूसरे के पारस्परिक एजेंट होते हैं। एक भागीदार, भले ही उसे पारिश्रमिक मिलता हो, उसे ESIA की धारा 2 (6) के प्रयोजनों के लिये कर्मचारी नहीं कहा जा सकता है।