होम / लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO)
आपराधिक कानून
भारत के अटॉर्नी जनरल बनाम सतीश एवं अन्य (2021)
13-Mar-2025
परिचय
- यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के विवादास्पद स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट निर्णय को पलट दिया।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट एवं न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की 3 न्यायाधीशों की पीठ ने दिया।
तथ्य
- विशेष न्यायालय ने सतीश को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 342, 354, 363 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 8 के तहत दोषी माना।
- अपील पर, उच्च न्यायालय ने उसे POCSO अधिनियम की धारा 8 के तहत दोषमुक्त कर दिया, लेकिन IPC की धारा 342 और 354 के तहत दोषसिद्धि यथावत बनाए रखी।
- इस मामले में पीड़ित 12 वर्षीय लड़की थी जो अमरूद लेने के लिये बाहर गई थी।
- आरोपी उसे अपने घर ले गया, उसके स्तन दबाए, उसकी सलवार उतारने की कोशिश की तथा जब उसने चिल्लाने की कोशिश की तो उसका मुंह दबा दिया।
- इसके बाद आरोपी ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया तथा बाहर से दरवाजा बंद कर दिया।
- पीड़िता की मां ने पहली मंजिल पर एक कमरे से चीखने की आवाजें सुनने के बाद अपनी बेटी को आरोपी के घर में रोते हुए पाया।
- जब पुलिस पहुँची तो आरोपी फांसी लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश कर रहा था।
- उच्च न्यायालय के निर्वचन के कारण भारत के अटॉर्नी जनरल, राष्ट्रीय महिला आयोग और महाराष्ट्र राज्य ने अपील दायर की।
- बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा किये गए निर्वचन ने बड़े विवाद को जन्म दिया।
- इसलिये, मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।
शामिल मुद्दे
- क्या POCSO अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत अपराध गठित करने के लिये स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट का होना आवश्यक है?
टिप्पणी
- इस मामले में मुख्य विवाद POCSO अधिनियम की धारा 7 के निर्वचन से संबंधित है।
- न्यायालय ने सांविधिक निर्वचन के सिद्धांत की पुनरावृत्ति की कि न्यायालय को विधान बनाने वाले विधानमंडल की मंशा का पता लगाने का प्रयास करना चाहिये तथा मंशा के अनुसार प्रावधान का निर्वचन किया जाना चाहिये।
- POCSO अधिनियम का उद्देश्य, जैसा कि उद्देश्यों और कारणों से स्पष्ट है, बालकों के विरुद्ध अपराधों के लिये पर्याप्त रूप से दण्डित करना है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि POCSO अधिनियम की धारा 7 में दो भाग हैं:
- धारा के पहले भाग में लैंगिक कृत्य कारित करने के आशय से शरीर के विशिष्ट लैंगिक अंगों को छूने के विषय में उल्लेख किया गया है।
- धारा के दूसरे भाग में लैंगिक कृत्य कारित करने के आशय से किये गए “किसी अन्य कृत्य” के विषय में उल्लेख किया गया है जिसमें प्रवेशन के बिना फिजिकल कॉन्टैक्ट शामिल है।
- उपरोक्त प्रावधान के संबंध में न्यायालय ने माना कि शब्द "स्पर्श" का प्रयोग विशेष रूप से शरीर के लैंगिक अंगों के संबंध में किया गया है, जबकि शब्द "शारीरिक संपर्क" का प्रयोग किसी अन्य कृत्य के लिये किया गया है।
- इसलिये, शरीर के लैंगिक अंग को छूने या शारीरिक संपर्क से संबंधित कोई अन्य कृत्य, यदि "लैंगिक कृत्य कारित करने के आशय से" से किया जाता है, तो यह POCSO अधिनियम की धारा 7 के अर्थ में "लैंगिक हमला" माना जाएगा।
- न्यायालय ने "यूट रेस मैगिस वैलेट क्वाम पेरेट" सिद्धांत की भी सहायता ली, जिससे तात्पर्य है कि किसी नियम के निर्माण से नियम को नष्ट करने के बजाय उसे प्रभावी बनाना चाहिये।
- "स्पर्श" या "शारीरिक संपर्क" शब्दों के निर्वचन को "स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट संपर्क" तक सीमित करना संकीर्ण एवं विद्वत्तापूर्ण निर्वचन होगा तथा इससे औचित्यहीन परिणाम निकलेगा।
- इस प्रकार, न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना कि POCSO अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत लैंगिक उत्पीड़न के अपराध का गठन करने के लिये सबसे महत्वपूर्ण घटक "लैंगिक आशय" है, न कि बालक के साथ "स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट"।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि उच्च न्यायालय ने यह मानने में चूक की कि POCSO अधिनियम की धारा 7 के तहत अपराध का गठन करने के उद्देश्य से लैंगिक कृत्य कारित करने आशय से प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क यानी "स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट" होना चाहिये।
- तदनुसार, न्यायालय ने आरोपी को POCSO अधिनियम की धारा 8 और IPC की धारा 342, 354 एवं 363 के तहत दोषी ठहराया।
निष्कर्ष
- इस मामले में न्यायालय ने अंततः बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित POCSO अधिनियम की धारा 7 के तहत विवादास्पद “स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट” की आवश्यकता को पलट दिया।
- न्यायालय ने माना कि POCSO अधिनियम की धारा 7 के तहत अपराध का गठन करने के लिये सबसे महत्वपूर्ण घटक “लैंगिक कृत्य कारित करने के आशय से” है न कि “स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट” संपर्क।