होम / लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO)

आपराधिक कानून

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस बनाम एस. हरीश

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 01-Apr-2025

परिचय 

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने बाल पोर्नोग्राफी के विरुद्ध विधि प्रस्तुत किया है। 
  • यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ एवं न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की दो सदस्यीय पीठ ने दिया।

तथ्य   

  • 29 जनवरी 2020 को, चेन्नई के अंबत्तूर में अखिल महिला पुलिस स्टेशन को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की साइबर टिपलाइन रिपोर्ट के विषय में अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त से सूचना मिली। 
  • रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी संख्या 1 बाल पोर्नोग्राफ़ी का सक्रिय उपभोक्ता था तथा उसने अपने मोबाइल फोन पर ऐसी सामग्री डाउनलोड की थी। 
  • उसी दिन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) की धारा 67B और लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 14 (1) के अधीन अपराधों के लिये प्रतिवादी संख्या 1 के विरुद्ध एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 
  • विवेचना के दौरान, प्रतिवादी का मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया तथा फोरेंसिक विश्लेषण के लिये भेज दिया गया। 
  • विवेचनाकर्त्ताओं द्वारा पूछताछ किये जाने पर प्रतिवादी ने कॉलेज में नियमित रूप से पोर्नोग्राफी देखने का तथ्य स्वीकार की। 
  • 22 अगस्त 2020 की कंप्यूटर फोरेंसिक विश्लेषण रिपोर्ट में प्रतिवादी के फोन पर बाल पोर्नोग्राफी से संबंधित दो वीडियो फाइलों के साथ-साथ सौ से अधिक अन्य अश्लील वीडियो फाइलें सामने आईं। 
  • विवेचना पूरी होने पर, 19 सितंबर 2023 को प्रतिवादी के विरुद्ध IT अधिनियम की धारा 67B और POCSO की धारा 15 (1) के अधीन अपराधों के लिये आरोप पत्र दायर किया गया था।
    • एकत्र साक्ष्य के आधार पर POCSO के अधीन आरोप को धारा 14(1) से बदलकर 15(1) कर दिया गया।
  • प्रतिवादी ने मद्रास उच्च न्यायालय में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के अधीन एक आपराधिक मूल याचिका दायर की, जिसमें आरोप पत्र को रद्द करने की मांग की गई। 
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया तथा 11 जनवरी 2024 को आरोप पत्र को रद्द कर दिया, जिससे प्रतिवादी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही प्रभावी रूप से समाप्त हो गई। 
  • अपीलकर्त्ता, जो मूल कार्यवाही में पक्ष नहीं थे, ने मामले में शामिल सार्वजनिक महत्त्व के गंभीर मुद्दे का उदाहरण देते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने के लिये उच्चतम न्यायालय से अनुमति मांगी।

शामिल मुद्दे  

  • क्या व्यक्तियों पर POCSO अधिनियम की धारा 15(1) के अधीन आरोप लगाया जाना चाहिये?

टिप्पणी 

  • मद्रास उच्च न्यायालय:
    • उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया, यह निर्णय दिया कि केवल निजी तौर पर बाल पोर्नोग्राफी रखना या देखना, इसे प्रकाशित या प्रसारित किये बिना, POCSO अधिनियम की धारा 14 (1) या IT अधिनियम की धारा 67B के अधीन अपराध नहीं बनता है। 
    • उच्च न्यायालय ने कहा कि इन विधियों के अधीन अपराध गठन के लिये, इस तथ्य का साक्ष्य होना चाहिये कि आरोपी ने पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिये एक बालक का प्रयोग किया या सामग्री प्रकाशित / प्रसारित की, जो इस मामले में सिद्ध नहीं हुआ।
  • उच्चतम न्यायालय:  
    • न्यायालय ने संसद को निर्देश दिया कि वह लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) में संशोधन पर विचार करे, ताकि "बाल पोर्नोग्राफी" शब्द के स्थान पर "बाल लैंगिक शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) शब्द रखा जा सके।
      • न्यायालय ने सुझाव दिया कि भारत संघ अंतरिम तौर पर एक अध्यादेश के माध्यम से इस संशोधन को लाने पर विचार करे।
    • न्यायालय ने सभी न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे किसी भी न्यायिक आदेश या निर्णय में "बाल पोर्नोग्राफ़ी" शब्द का उपयोग करने से बचें, तथा इसके बजाय "बाल लैंगिक शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) शब्द का समर्थन करें। 
    • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि "बाल पोर्नोग्राफ़ी" शब्द अपराध की पूरी सीमा को दर्शाने में विफल रहता है तथा अपराध को महत्त्वहीन बना सकता है, क्योंकि पोर्नोग्राफ़ी अक्सर वयस्कों के बीच सहमति से किये गए कृत्यों से जुड़ी होती है। 
    • न्यायालय ने कहा कि CSEAM शब्द अधिक सटीक रूप से इस वास्तविकता को दर्शाता है कि ऐसी सामग्री ऐसी घटनाओं का रिकॉर्ड है, जहाँ किसी बालक का लैंगिक शोषण एवं दुर्व्यवहार किया गया है। 
    • न्यायालय ने कहा कि CSEAM शब्द का उपयोग उचित रूप से बालक का शोषण एवं दुर्व्यवहार पर बल देता है, जो कृत्य की आपराधिक प्रकृति एवं गंभीर प्रतिक्रिया की आवश्यकता को प्रकटित करता है। 
    • न्यायालय ने पाया कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में एक गंभीर त्रुटि की है तथा परिणामस्वरूप विवादित निर्णय एवं आदेश को रद्द कर दिया। 

 निष्कर्ष 

  • इस मामले में न्यायालय ने पोर्नोग्राफी के विरुद्ध विधान पर चर्चा की तथा इसे “बाल लैंगिक शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री” कहा।