होम / लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO)

आपराधिक कानून

लिबनस बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021)

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 19-Mar-2025

परिचय 

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने परिभाषित किया कि POCSO अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत गंभीर लैंगिक हमला क्या होगा। 

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति पुष्पा बनाम गनेडीवाला की एकल पीठ द्वारा दिया गया।

तथ्य   

  • 2 दिसंबर, 2018 को, सूचक (पीड़िता की माँ) ने 11 नवंबर, 2018 को हुई एक घटना के विषय में रिपोर्ट दर्ज कराई।
  • इत्तिला देने वाली ने कहा कि जब वह अपनी ड्यूटी शिफ्ट (सुबह 8:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक) से घर लौटी, तो उसने पाया कि आरोपी उसकी 5 वर्षीय बेटी के साथ छेड़छाड़ कर रहा था।
  • जब इत्तिला देने वाली काम पर गई, तो उसकी दो बेटियाँ (3 एवं 5 वर्ष के उम्र की) घर पर अकेली थीं क्योंकि उसका पति शहर से बाहर गया हुआ था।
  • आरोपी को अपनी बड़ी बेटी का हाथ पकड़े देखकर, इत्तिला देने वाली ने चिल्लाया, जिससे पड़ोसी इकट्ठा हो गए और आरोपी मौके से फरार हो गया।
  • इत्तिला देने वाली की रिपोर्ट के आधार पर, आरोपी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 354-A(1)(i) एवं 448 तथा लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 8, 10 एवं 12 के साथ धारा 9 (m) एवं 11 (i) के अधीन अपराध संख्या 63/2018 दर्ज किया गया था।
  • विवेचना के बाद पुलिस ने नागपुर में विशेष POCSO कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया। 
  • विशेष न्यायालय ने आरोपी के विरुद्ध आरोप तय किये, जिन्हें स्थानीय भाषा में उसे समझाया गया। 
  • आरोपी ने स्वयं को निर्दोष बताया। अभियोजन पक्ष ने मुकदमे के दौरान छह साक्षी एवं प्रासंगिक दस्तावेज प्रस्तुत किये। 
  • आरोपी से दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अधीन पूछताछ की गई तथा उसका बचाव पूरी तरह से मना करने वाला था। 
  • ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों को विश्वसनीय पाया, आरोपी को दोषी माना और तदनुसार उसे सजा दी गई। 
  • आरोपी ने सजा के इस निर्णय के विरुद्ध अपील की है। 

शामिल मुद्दे  

  • क्या अपीलकर्त्ता/आरोपी को POCSO अधिनियम की धारा 6 के अधीन 'गंभीर लैंगिक अपराध' के अपराध का दोषी माना जाना चाहिये?

टिप्पणी 

  • न्यायालय ने कहा कि इस कृत्य को 'गंभीर लैंगिक हमले' के अंतर्गत लाने के लिये निम्नलिखित तत्त्वों का पूरा होना आवश्यक है:
    • कार्य लैंगिक कृत्य कारित करने के आशय से किया गया होगा।
    • कार्य में बच्चे की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूना शामिल है; या बच्चे को ऐसे व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूने के लिये कहना; या किसी अन्य व्यक्ति; या लैंगिक कृत्य कारित करने के आशय से कोई अन्य कृत्य कारित करना जिसमें प्रवेशन के बिना शारीरिक संपर्क शामिल है।
  • इस मामले में अभियोक्ता की आयु पाँच वर्ष है तथा यदि अभियोक्ता की आयु 12 वर्ष से कम है और उसके साथ लैंगिक उत्पीड़न का अपराध किया जाता है, तो उसे 'गंभीर लैंगिक उत्पीड़न' के अपराध के लिये दोषी माना जाना चाहिये। 
  • न्यायालय ने माना कि 'गंभीर लैंगिक उत्पीड़न' के अपराध के लिये, 'प्रवेशन के बिना शारीरिक संपर्क' आवश्यक है। 
  • 'कोई अन्य कार्य' शब्द अपने आप में उन कार्यों की प्रकृति को समाहित करता है जो 'इजुडेम जेनेरिस' के सिद्धांत के आधार पर परिभाषा में विशेष रूप से उल्लिखित कार्यों के समान हैं। कृत्य उसी प्रकृति का या उसके करीब होना चाहिये। 
  • वर्तमान मामले में PW संख्या 1 की गवाही से यह परिलक्षित होता है कि उसकी बेटी ने उसे बताया कि अपीलकर्त्ता/आरोपी ने पैंट से अपना लिंग निकाला और उसे सोने के लिये बिस्तर पर आने के लिये कहा।
  • न्यायालय ने माना कि ‘अभियोक्ता के हाथ पकड़ना’ या ‘पैंट की ज़िप खोलना’ जैसी हरकतें ‘लैंगिक उत्पीड़न’ की परिभाषा में फिट नहीं बैठतीं। 
  • इस प्रकार, न्यायालय ने वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर POCSO अधिनियम की धारा 8 और 10 के अधीन दोषसिद्धि को खारिज कर दिया और उसे अलग रखा। हालाँकि, वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर IPC की धारा 448, 354 A (1) (i) और POCSO अधिनियम की धारा 12 के अधीन दोषसिद्धि को यथावत बनाए रखा गया।

निष्कर्ष 

  • इस मामले में न्यायालय ने माना कि ‘अभियोक्ता का हाथ पकड़ना’ या ‘पैंट की ज़िप खोलना’ जैसी हरकतें ‘लैंगिक उत्पीड़न’ की परिभाषा में फिट नहीं बैठतीं। 
  • इस प्रकार, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कौन-सी हरकतें ‘गंभीर लैंगिक उत्पीड़न’ के दायरे में आएंगी।