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सिविल कानून

कोल बनाम टर्नर (1704)

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 17-Sep-2024

परिचय:

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने मारपीट के अपराध में मानसिक तत्त्व की प्रासंगिकता पर चर्चा की।

तथ्य:

  • दावेदारों (पति एवं पत्नी) तथा प्रतिवादी (टर्नर) के बीच झगड़ा हुआ था।
  • दावेदारों ने दावा किया कि प्रतिवादी ने उन्हें शारीरिक रूप से क्षति कारित किया।
  • झगड़ा एक संकरी गली में हुआ, जहाँ प्रतिवादी कथित तौर पर दावेदारों के पास से निकल गया था।
  • यह आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी की कार्यवाही गुस्से से प्रेरित थी तथा इसलिये वह विधि के अधीन मारपीट के लिये उत्तरदायी होगा।
  • इस मामले में वादी ने विधिविरुद्ध एवं आक्रामक स्पर्श के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की।
  • यह मामला निसी प्रियस कोर्ट के समक्ष था।

शामिल मुद्दे:  

  • क्या मारपीट का अपराध अभियोजित करने के लिये आक्रामकता या क्रोध का तत्त्व होना चाहिये?

टिप्पणी:

  • इस मामले में न्यायालय ने माना कि किसी कृत्य को मारपीट का अपकृत्य माना जाने के लिये उसे जानबूझकर छूना चाहिये।
  • इस प्रकार, किसी अन्य व्यक्ति को हिंसक तरीके से जानबूझकर छूना मारपीट का अपकृत्य माना जाता है।
  • हालाँकि जहाँ बिना किसी आशय के कम-से-कम स्पर्श किया जाता है, वह मारपीट नहीं माना जाता है।
  • न्यायालय ने माना कि बिना आशय के किये गए स्पर्श एवं आक्रामक जानबूझकर किये गए स्पर्श के बीच अंतर है।
  • जबकि पहला स्पर्श अपकृत्य नहीं है, दूसरा अपकृत्य है।
  • इस मामले में न्यायमूर्ति होल्ट ने कहा कि:
    • "क्रोध में किसी दूसरे को छूना भी मारपीट है। अगर दो या दो से ज़्यादा लोग संकरे रास्ते में मिलते हैं तथा बिना किसी हिंसा या क्षति पहुँचाने की मंतव्य के, एक दूसरे को धीरे से छूता है, तो यह मारपीट नहीं है। अगर उनमें से कोई दूसरे के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करता है, अभद्र तरीके से अपना रास्ता बनाने के लिये, तो यह मारपीट है; या रास्ते को लेकर कोई भी संघर्ष, जिससे चोट लग सकती है, मारपीट है।"

निष्कर्ष:

  • यह मामला बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कहा गया है कि मासूमियत से छूना हमला नहीं माना जाएगा, बल्कि जानबूझकर छूना मारपीट माना जाएगा।
  • न्यायालय ने कहा कि केवल तभी जब छूने के साथ गुस्सा भी हो, तो उसे मारपीट माना जा सकता है।