होम / अपकृत्य विधि
सिविल कानून
राम बाज सिंह बनाम बाबूलाल (1981)
« »18-Sep-2024
परिचय:
यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने उपद्रव के अपकृत्य के आवश्यक घटकों पर चर्चा की।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति हैदर ने दिया।
तथ्य:
- इस मामले में वादी एक चिकित्सक था। उसने प्रतिवादी (प्रत्यर्थी) द्वारा स्थापित ईंट पीसने वाली मशीन से पहले एक चिकित्सा परामर्श कक्ष स्थापित किया हुआ था।
- ईंट पीसने की मशीन विद्युत चालित थी और यह वादी के परामर्श कक्ष से लगभग 40 फीट की दूरी पर स्थित थी।
- वादी का आरोप यह था कि:
- ईंट पीसने वाली मशीन से धूल उत्पन्न हो रही थी, जिससे उन्हें तथा उनके मरीज़ों को शारीरिक असुविधा हो रही थी।
- यह भी आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी ने यह मशीन नगर निगम बोर्ड की अनुमति या लाइसेंस के बिना स्थापित की थी।
- प्रतिवादी ने इस आधार पर प्रतिवाद किया कि:
- ईंट पीसने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप मशीन से कोई धूल नहीं निकली।
- मशीन के प्रयोग से किसी भी प्रकार का उपद्रव नहीं हुआ- चाहे वह निजी हो या सार्वजनिक।
- यह वाद केवल आपसी दुश्मनी के कारण दायर किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने वादी के वाद को अस्वीकार कर दिया और कहा कि मशीन से निकली धूल से वादी या उसके मरीज़ों को कोई गंभीर क्षति नहीं पहुँची।
- अपील न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों की पुष्टि की।
शामिल मुद्दे:
- क्या यह कृत्य उपद्रव का अपकृत्य था?
टिप्पणियाँ:
- इस मामले में विधिक प्रश्न यह था कि क्या कुछ तथ्य उपद्रव का गठन करते हैं।
- यहाँ न्यायालय ने क्लर्क एवं लिंडसेल द्वारा ‘अपकृत्य’ पर किये गए कार्य का उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया था कि “उपद्रव का सार एक ऐसी स्थिति या गतिविधि है जो किसी व्यक्ति को उसकी भूमि के उपयोग या आनंद प्राप्त करने में हस्तक्षेप करती है।”
- न्यायालय ने आगे कहा कि उपद्रव वह कार्य या चूक है जो किसी व्यक्ति को सामान्य नागरिक के रूप में उसके अधिकार के प्रयोग या उपभोग में हस्तक्षेप, परेशानी या कष्ट पहुँचाता है (तब यह सार्वजनिक प्रकार का उपद्रव है), या भूमि पर उसके स्वामित्व या कब्ज़े या भूमि के संबंध में उपयोग या उपभोग किये गए कुछ सुखभोग, निजी या अन्य अधिकार में बाधा डालता है (तब यह निजी प्रकार का उपद्रव है)।
- इसके अतिरिक्त, किसी व्यक्ति द्वारा किया गया कोई भी कार्य जिसका प्रभाव उसके पड़ोसी की भूमि पर पड़ता हो, सदैव उपद्रव नहीं होता।
- यह संभव है कि परिणाम इतने मामूली प्रकृति के हों कि कोई भी विवेकशील व्यक्ति इस पर आपत्ति न करे।
- यहाँ प्रयुक्त मानक एक शांत एवं तर्कसंगत व्यक्ति का है।
- न्यायालय ने रामलाल बनाम मुस्तफाबाद ऑयल एंड कॉटन जिनिंग फैक्ट्री (1968) मामले का उदाहरण दिया, जिसमें यह माना गया था कि कार्यवाही योग्य उपद्रव की गणना नहीं की जा सकती और कोई भी कार्य जो स्वास्थ्य, संपत्ति, आराम, व्यवसाय या सार्वजनिक नैतिकता को नुकसान पहुँचाता है, उसे उपद्रव माना जाएगा।
- न्यायालय ने कहा कि तथ्यों से यह स्पष्ट है कि परामर्श कक्ष में कार्य, प्रतिवादी द्वारा स्थापित मशीन से पहले ही आरंभ हो चुका था।
- न्यायालय ने कहा कि यह सिद्ध हो गया है कि वादी को विशेष क्षति हुई है, क्योंकि यह सिद्ध हो गया है कि ईंटों की धूल परामर्श कक्ष में प्रवेश कर गई थी, जिससे बैठे हुए व्यक्तियों के कपड़ों पर एक पतली लाल परत दिखाई दे रही थी।
- न्यायालय ने आगे जाँच की कि क्या “विशेष क्षति” हुई थी:
- यहाँ लागू किया जाने वाला परीक्षण एक विवेकशील व्यक्ति का है और यह अभिव्यक्ति किसी अति संवेदनशील व्यक्ति की संवेदनशीलता को ध्यान में नहीं रखती है।
- इस प्रकार, कोई भी कार्य उपद्रव माना जाएगा, जिसके विषय में यह कहा जा सकता है कि वह किसी व्यक्ति को चोट, असुविधा या परेशानी पहुँचाता है।
- इस प्रकार, न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली तथा प्रतिवादियों के विरुद्ध स्थायी निषेधाज्ञा प्रदान कर दी।
निष्कर्ष:
- इस मामले में न्यायालय ने माना कि वादी विशेष क्षति सिद्ध करने में सफल रहा है और इसलिये वह उपचार पाने का अधिकारी है।
- इसके अतिरिक्त, यह भी स्पष्ट किया गया कि अपकृत्य या उपद्रव के मामले में एक विवेकशील व्यक्ति का परीक्षण किया जाना चाहिये, न कि किसी अतिसंवेदनशील व्यक्ति का।