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अधीनस्थ न्यायिक सेवा (लोअर ज्यूडिशियरी) (Subordinate Judicial Services (Lower Judiciary Services))

परिचय
  • जिन लोगों का रुझान लोक सेवाओं की ओर है, उनके लिये न्यायिक सेवाएं एक उत्कृष्ट विकल्प हो सकती हैं।
  • विधि स्नातकों हेतु यह एक प्रतिष्ठित सेवा है क्योंकि न्यायिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करके वे सीधे न्यायाधीश बन सकते हैं।
  • कोई भी विधि स्नातक राज्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से, न्यायिक सेवाओं में एक प्रतिष्ठित कॅरियर चुन सकता है। विधि स्नातक हेतु न्यायिक क्षेत्र में दो विकल्प हैं-
    1. लोअर ज्यूडिशियरी यानी अधीनस्थ न्यायिक सेवा - यह अधीनस्थ न्यायपालिका हेतु एक प्रवेश स्तरीय परीक्षा है जहाँ कोई भी स्नातक सीधे सिविल जज के रूप में नियुक्त हो सकता है।
    2. अपर ज्यूडिशियरी यानी उच्च न्यायिक सेवा- यह उच्च न्यायिक सेवाओं के लिये एक प्रवेश स्तर की परीक्षा है। न्यूनतम 7 वर्ष की विधिक सेवा पूरी करने के बाद कोई भी व्यक्ति इस परीक्षा के लिये आवेदन कर सकता है और अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश/अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हो सकता है। जब चयनित अभ्यर्थी आपराधिक/फौज़दारी मामलों को देखता है तो उसे सहायक सत्र न्यायाधीश (Assistant Session Judge) कहा जाता है, जबकि दीवानी मामलों को देखने वाले न्यायाधीशों के लिये संबंधित पदनाम अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश (Additional District Judge) होता है।
  • संतुष्टि की दृष्टि से, न्यायिक सेवा एक बेहतर कॅरियर विकल्प हो सकती है क्योंकि इसमें व्यक्ति जनता/समाज के उत्थान के लिये प्रत्यक्ष रूप से कार्य करता है और अपने संपूर्ण कॅरियर के दौरान सदैव विधिक कार्यों से जुड़ा रहता है।

अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं को कॅरियर के रूप में क्यों चुनें?

प्रवेश स्तर की न्यायिक सेवा परीक्षाएँ भारतीय न्यायिक प्रणाली से जुड़ने हेतु प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करती हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी मामलों, चाहे वे फौज़दारी हों या दीवानी, की सुनवाई निचली अदालतों या ज़िला/सत्र न्यायालयों द्वारा की जाती है। एक नए स्नातक के लिये सीधी भर्ती की यह पद्धति उसे ग्रास रूट लेवल पर न्याय प्रदान करने का अवसर देती है। सिविल जज के पद पर नियुक्ति से न केवल न्यायिक प्रणाली में कॅरियर की शीघ्र शुरुआत होती है, बल्कि कार्यकाल की सुरक्षा (job-security) तथा समयबद्ध पदोन्नति भी मिलती है।


परीक्षा प्रक्रिया के बारे में

सिविल जज के रूप में चयनित होने के लिये अभ्यर्थी को तीन-चरणीय परीक्षा प्रक्रिया से गुज़रना होगा। यह एक राज्य स्तरीय परीक्षा है जो राज्य उच्च न्यायालय या संबंधित राज्य सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाती है। परीक्षा में 3 चरण शामिल हैं, -

  1. प्रारंभिक परीक्षा (वस्तुनिष्ठ)
  2. मुख्य परीक्षा (विषयनिष्ठ)
  3. साक्षात्कार

पात्रता

सीधी भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने हेतु योग्यताएँ इस प्रकार हैं:

  • उम्मीदवार को भारत का नागरिक होना चाहिये।
  • अभ्यर्थी के पास भारत में किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से LLB की डिग्री होनी चाहिये। अंतिम वर्ष की LLB परीक्षाओं में उपस्थित होने वाला अभ्यर्थी आमतौर पर पात्र नहीं होता है, राजस्थान राज्य एक अपवाद है (राजस्थान में मुख्य परीक्षाओं के समय एक अनंतिम डिग्री की आवश्यकता होती है)। कुछ राज्यों को राज्य बार काउंसिल में सदस्यता के साथ-साथ अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत एक अधिवक्ता के रूप में नामांकित होना भी आवश्यक होता है।
  • अभ्यर्थी की आयु 35 वर्ष से कम और 45 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिये। विभिन्न श्रेणियों (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/आर्थिक रूप से कमज़ोर/दिव्यांग आदि) के लिये आयु में छूट प्रदान की जाती है जो अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न होती है।

  • क्र.सं. राज्य न्यूनतम आयु (वर्ष में) अधिकतम आयु (वर्ष में)
    1 बिहार 22 35
    2 छत्तीसगढ़ 21 35
    3 दिल्ली 21 32
    4 गुजरात - 35
    5 हरियाणा 21 42
    6 हिमाचल प्रदेश 22 35
    7 झारखंड 22 35
    8 मध्य प्रदेश 21 35
    9 पंजाब 21 37
    10 राजस्थान 21 40
    11 उत्तराखंड 22 35
    12 उत्तर प्रदेश 22 35

परीक्षा की योजना

अधीनस्थ न्यायिक सेवा परीक्षा का पाठ्यक्रम प्रत्येक राज्य में अलग होता है, हालाँकि मुख्य विषय जैसे भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सिविल प्रक्रिया संहिता, भारतीय संविदा अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, परिसीमा अधिनियम, भारत का संविधान, विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम लगभग सभी राज्यों के पाठ्यक्रम में शामिल होते हैं। परीक्षा योजना का चरण-वार विभाजन इस प्रकार है:

प्रथम चरण

  • यह प्रारंभिक परीक्षा का चरण है जिसमें वस्तुनिष्ठ/बहुविकल्पीय प्रश्न शामिल होते हैं।
  • अधिकांश राज्यों की परीक्षाओं में विधि, सामान्य सचेतता से संबंधित वस्तुनिष्ठ प्रकार का एक प्रश्नपत्र होता है। कुछ राज्यों में भाषा-आधारित प्रश्न भी शामिल होते हैं। या एक पृथक् विषयनिष्ठ (subjective) भाषा का प्रश्नपत्र भी शामिल होता है: जैसे-गुजरात।
  • यह चरण मुख्य रूप से बेयर प्रावधानों, संशोधनों, विधिक-मामलों (case laws), कहावतों (maxims) आदि पर आधारित तथ्यात्मक जानकारी पर केंद्रित होता है।

रणनीति

प्रारंभिक परीक्षा में सफल होने के लिये निम्नलिखित का विस्तृत अध्ययन किया जाना चाहिये:

  • बेयर एक्ट के प्रावधान और संबंधित संशोधन, यदि कोई हो।
  • ऐतिहासिक/नवीनतम विधिक-मामलों (case laws) के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
  • प्रमुख अवधारणाओं का विश्लेषण।
  • जिन राज्यों की न्यायिक सेवा परीक्षा में सामान्य ज्ञान पाठ्यक्रम का भाग है, उनके द्वारा जारी परीक्षा अधिसूचना में शामिल विषयों पर ध्यान देना आवश्यक है।
  • विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों का अभ्यास अवश्य करना चाहिये।

द्वितीय चरण

  • यह लिखित परीक्षा का चरण है जिसे मुख्य परीक्षा भी कहा जाता है।
  • इस चरण के अंतर्गत अलग-अलग राज्यों में प्रश्नपत्रों की संख्या अलग-अलग होती है लेकिन व्यापक वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है:
    • आपराधिक कानून (Criminal Law)
    • सिविल कानून (Civil Law)
    • राज्य के स्थानीय कानून (Local Laws of the state)
    • सामान्य ज्ञान/सामान्य जागरूकता (कुछ विशिष्ट राज्यों में)
    • भाषा (Language)

रणनीति

मुख्य परीक्षा अभ्यर्थी की विषय-समझ पर केंद्रित होती है और प्रश्नों का उद्देश्य अभ्यर्थी के तथ्यात्मक एवं व्यावहारिक ज्ञान की जाँच करना होता है। मुख्य परीक्षा में सफल होने का सूत्र उत्कृष्ट उत्तर लेखन कौशल में निहित है। समय सीमा के भीतर संक्षिप्त, सारगर्भित उत्तर लेखन के लिये प्रश्नों का अभ्यास करना आवश्यक है। निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है:

  • विधि और उसके प्रावधानों को समझना आवश्यक है। विभिन्न विषयों पर 'टू द पॉइंट' सामग्री पढ़ने से न केवल पूर्ण समझ विकसित करने में बल्कि समयबद्ध पुनरावलोकन (Revision) में भी सहायता मिलेगी।
  • विधिक-मामले (case laws), अच्छे उत्तर का एक अविभाज्य हिस्सा होते हैं और अभ्यर्थी को ऐतिहासिक के साथ-साथ नवीनतम निर्णयों पर 'केस ब्रीफ्स' (विभिन्न मामलों का सार) अवश्य पढ़ना चाहिये।
  • परीक्षा से पहले मुख्य अवधारणाओं को दोहराने से विषय वस्तु को बेहतर ढंग से समझने तथा उसे याद रखने में सहायता मिलेगी।
  • भाषा भाग के लिये, विधिक अनुवाद उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना व्याकरण या निबंध लेखन। यहाँ अभ्यास महत्त्वपूर्ण है और अभ्यर्थी को विधिक शब्दावली में सुधार करने का प्रयास करना चाहिये। 'विधिक शब्दावली' का संदर्भ इस संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों का अभ्यास अवश्य करना चाहिये।

तृतीय चरण

  • साक्षात्कार’ (Interview) अथवा व्यक्तित्त्व परीक्षण (Personality Test) चयन प्रक्रिया का अंतिम चरण है, जिसे मौखिक परीक्षा भी कहा जाता है।
  • इसका उद्देश्य पद के लिये अभ्यर्थी की सामान्य उपयुक्तता का आकलन करना है।
  • कुछ राज्य चयनित होने के लिये इस चरण में एक निर्दिष्ट योग्यता प्रतिशत निर्धारित करते हैं।
  • जिन राज्यों में भर्ती प्रक्रिया उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित की जाती है वहाँ साक्षात्कार बोर्ड में माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होते हैं और जिन राज्यों में यह परीक्षा लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाती है, वहाँ पैनल के सदस्यों में संबंधित राज्य लोक सेवा आयोग के पदाधिकारी शामिल होते हैं।

रणनीति

  • साक्षात्कार एक ऐसा भाग है जिसके लिये प्रत्यक्ष तौर पर कोई रणनीति बना पाना कठिन होता है।
  • आवेदन किये गए पद हेतु उपयुक्त होने के लिये अभ्यर्थी को विषय ज्ञान के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व के अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिये।