होम / भागीदारी अधिनियम
सिविल कानून
शिव डेवलपर्स अपने भागीदार के माध्यम से सुनीलभाई सोमाभाई अजमेरी बनाम अक्षरे डेवलपर्स एवं अन्य (2022)
« »14-Nov-2024
परिचय
यह भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 69 से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की एक द्वि-न्यायाधीशीय पीठ द्वारा प्रस्तुत किया गया।
तथ्य
- इस मामले में अपीलकर्त्ता एक अपंजीकृत फर्म, शिव डेवलपर्स है जिसमें दो साझेदार, श्री सुनीलभाई सोमाभाई अजमेरी (जो प्रशासक हैं और जिन्होंने फर्म की ओर से वाद दायर किया है) और श्री जिग्नेश शामिल हैं।
- इस मामले में प्रतिवादी संख्या 1 "अक्षराय डेवलपर्स" नाम की एक भागीदारी फर्म है। प्रतिवादी संख्या 2 से 4 को प्रतिवादी संख्या 1 फर्म के भागीदार के रूप में शामिल किया गया है।
- इस मामले में प्रतिवादी संख्या 1 फर्म की संरचना ही विवाद का विषय है।
- तथ्यों का कालक्रम इस प्रकार है:
26 नवंबर, 2013 |
अपीलकर्त्ता और प्रतिवादी संख्या 2 और 3 ने एक संपत्ति खरीदी। संपत्ति में अपीलकर्त्ता का हिस्सा 60% था और अन्य दो भागीदारों का हिस्सा 20-20% था। |
22 अप्रैल, 2014 |
चार भागीदारों अर्थात् सुनीलभाई अजमेरी (जो अपीलकर्त्ता फर्म के भी भागीदार हैं) और प्रतिवादी 2, 3 और 4 के साथ एक नई भागीदारी फर्म “अक्षराय डेवलपर्स” का गठन किया गया। दोनों पक्षों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए कि वाद संपत्ति से संबंधित परियोजना के उद्देश्य के लिये भागीदारी बनाई गई थी और यह सहमति हुई थी कि परियोजना से अर्जित आय से एक निश्चित राशि सुनीलभाई अजमेरी को दी जाएगी। |
23 फरवरी, 2015 |
अपीलकर्त्ता के अनुसार इस दिन प्रतिवादी संख्या 2 और 3 ने सुनीलभाई अजमेरी को शामिल किये बिना "अक्षराय डेवलपर्स" के नाम से एक और फर्म का गठन किया। |
24 फरवरी, 2015 |
प्रतिवादी संख्या 2 और 3 ने एक बिक्री विलेख निष्पादित किया, जिसके तहत वाद (मुकदमे) की संपत्ति में अपीलकर्त्ता का 60% हिस्सा इस फर्म "अक्षराय डेवलपर्स" द्वारा अपीलकर्त्ता फर्म शिव डेवलपर्स की ओर से कार्य कर रहे सुनीलभाई सोमाभाई अजमेरी से खरीदा गया था। अपीलकर्त्ता का तर्क यह है कि उसे इस विषय में कोई जानकारी नहीं थी कि प्रतिवादी संख्या 2 और 3 ने उसकी अनुमति के बिना भागीदारी फर्म का पंजीकरण करा लिया है। इस प्रकार, यह आरोप लगाया गया है कि प्रतिवादी संख्या 2 और 3 ने सुनियोजित षड्यंत्र के माध्यम से विवादित संपत्ति प्राप्त की। अतः अपीलकर्त्ता द्वारा स्थायी निषेधाज्ञा तथा 24 फरवरी के विक्रय विलेख को शून्य एवं अमान्य घोषित करने की मांग करते हुए वाद दायर किया गया है। |
- इस आधार पर अस्वीकृति हेतु आवेदन दायर किया गया कि वादी एक अपंजीकृत फर्म है, इसलिये वाद वर्जित है।
- वादपत्र को अस्वीकार करने का आवेदन विचारण न्यायालय (Trial court) द्वारा खारिज कर दिया गया।
- उपरोक्त को उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण के माध्यम से चुनौती दी गई। उच्च न्यायालय ने पुनरीक्षण आवेदन को स्वीकार कर लिया और विचारण न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।
- इसके बाद उच्च न्यायालय के निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई।
शामिल मुद्दा
- क्या भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (IPA) की धारा 69 (2) के अंतर्गत मामले को अस्वीकार किया जाना चाहिये?
टिप्पणियाँ
- न्यायालय ने पाया कि IPA की धारा 69 (2) से संबंधित कानून को हल्दीराम भुजियावाला एवं अन्य बनाम आनंद कुमार दीपक कुमार एवं अन्य (2000) के मामले में निम्नानुसार लागू किया गया है:
- IPA की धारा 69 (2) के तहत प्रतिबंध लागू करने के लिये:
- संविदा वह होनी चाहिये जो फर्म ने तीसरे पक्ष के साथ की हो और यह भी फर्म द्वारा उसके व्यापारिक लेन-देन के दौरान की गई हो।
- धारा 69 (2) का प्रतिबंध वैधानिक अधिकार या सामान्य कानूनी अधिकार के प्रवर्तन के मामलों में लागू नहीं होता है।
- IPA की धारा 69 (2) के तहत प्रतिबंध लागू करने के लिये:
- न्यायालय ने राप्टाकोस ब्रेट एंड कंपनी लिमिटेड बनाम गणेश प्रॉपर्टी (1998) के निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि धारा 69 (2) किसी वैधानिक अधिकार या सामान्य कानूनी अधिकार से संबंधित अपंजीकृत फर्म द्वारा मुकदमा दायर करने पर रोक नहीं लगा सकती।
- उपरोक्त कानून को तथ्यों पर लागू करते हुए न्यायालय ने कहा कि:
- वादी फर्म द्वारा प्रतिवादी को शेयर की बिक्री वादी फर्म के व्यवसाय (अर्थात भवन निर्माण) से उत्पन्न नहीं थी।
- यह वाद ऐसा है, जिसमें वादी धोखाधड़ी और गलत जानकारी के आरोपों के साथ सामान्य कानूनी उपायों की मांग कर रहा है तथा विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (SRA) और संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (TPA) के प्रावधानों के अनुसार निषेधाज्ञा और घोषणा के वैधानिक अधिकारों की भी मांग कर रहा है।
- न्यायालय ने उपरोक्त तथ्यों के आलोक में यह निर्णय लिया कि IPA की धारा 69 (2) के अंतर्गत प्रतिबंध इस मामले में लागू नहीं होता है।
- न्यायालय ने माना कि विचारण न्यायालय ने प्रतिवादियों द्वारा प्रस्तुत आधारहीन आवेदन को सही ढंग से खारिज कर दिया था।
निष्कर्ष
- निर्णय में उन स्थितियों पर चर्चा की गई है जब IPA की धारा 69 (2) के तहत प्रतिबंध लागू नहीं होता है।
- निर्णय में निर्णायक रूप से कहा गया है कि IPA की धारा 69 (2) के तहत प्रतिबंध निम्नलिखित दो स्थितियों में लागू नहीं होता है:
- जब संविदा भागीदारी फर्म के व्यवसाय के दायरे से बाहर हो।
- जब किसी वैधानिक अधिकार या सामान्य कानून अधिकार के प्रवर्तन के लिये वाद दायर किया जाता है।