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आपराधिक कानून

किशोर न्याय बोर्ड

 11-Mar-2025

परिचय 

  • किशोर न्याय प्रणाली यह मानती है कि विधि के साथ संघर्ष करने वाले बालकों को पारंपरिक आपराधिक दण्ड के बजाय विशेष संरक्षण, देखरेख और पुनर्वास की आवश्यकता होती है। 
  • इस प्रणाली के केंद्र में किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) है, जो कथित रूप से अपराध करने वाले बालकों से जुड़े मामलों को संभालने के लिये बनाया गया एक विशेष निकाय है।  
  • किशोर न्याय बोर्ड बाल-अनुकूल प्रक्रियाओं को लागू करता है जो न्याय सुनिश्चित करते हुए बालकों के सर्वोत्तम हितों को प्राथमिकता देता है। 
  • किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act) के अध्याय 3 में किशोर न्याय बोर्ड के बारे में प्रावधान बताए गए हैं। 
  • प्रावधान (धारा 4 से धारा 9) विशेष परिस्थितियों को भी मान्यता देते हैं, जैसे कि जब कोई बच्चा कार्यवाही के दौरान वयस्क हो जाता है या जब वयस्कों को बचपन में किये गए अपराधों के लिये गिरफ्तार किया जाता है। 

किशोर न्याय बोर्ड पर आधारित विधिक उपबंध 

धारा 4: किशोर न्याय बोर्ड 

  • बोर्डों की स्थापना: राज्य सरकार प्रत्येक जिले में एक या अधिक किशोर न्याय बोर्ड स्थापित करने के लिये बाध्य होगी, जो विधि के उल्लंघन करने वाले बालकों के मामलों की सुनवाई करेंगे। ये बोर्ड दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन स्थापित नियमित आपराधिक न्यायालयों से स्वतंत्र रूप से कार्य करेंगे 
  • बोर्ड की संरचना: प्रत्येक बोर्ड में सम्मिलित हैं: 
    • प्रधान मजिस्ट्रेट (या तो एक महानगर मजिस्ट्रेट या कम से कम तीन वर्ष के अनुभव के साथ प्रथम श्रेणी का न्यायिक मजिस्ट्रेट)। 
    • दो सामाजिक कार्यकर्त्ता, जिनमें से कम से कम एक महिला होनी चाहिये 
  • सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के लिय योग्यता: सामाजिक कार्यकर्त्ता सदस्य के रूप में नियुक्त होने के लिये, व्यक्ति को: 
    • कम से कम सात वर्षों तक बालकों से संबंधित स्वास्थ्य, शिक्षा या कल्याणकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से सम्मिलित होना चाहिये, या 
    • बाल मनोविज्ञान, मनोचिकित्सा, समाजशास्त्र या विधि में डिग्री के साथ एक अभ्यास करने वाला पेशेवर होना चाहिये 
  • अयोग्यताएँ: किसी व्यक्ति को बोर्ड के सदस्य के रूप में नहीं चुना जा सकता है यदि वह: 
    • मानवाधिकारों या बाल अधिकारों के उल्लंघन का कोई पिछला इतिहास हो। 
    • नैतिक पतन से जुड़े किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध (दोषी ठहराया गया) हो, (जब तक कि उसे क्षमा न न प्रदान की गई हो)। 
    • यदि उसे सरकारी सेवा से हटाया या बर्खास्त किया गया हो। 
    • कभी भी बाल शोषण में लिप्त रहा हो, बाल श्रम करवाया हो, या मानवाधिकारों का उल्लंघन या अनैतिक कार्य किया हो। 
  • प्रशिक्षण की आवश्यकता: राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रधान मजिस्ट्रेट सहित सभी बोर्ड सदस्यों को नियुक्ति के 60 दिनों के भीतर बाल देखरेख, संरक्षण, पुनर्वास, विधिक उपबंधों और बालकों के लिये न्याय पर परिचयात्मक प्रशिक्षण और संवेदनशीलता प्राप्त हो 
  • पदावधि: बोर्ड के सदस्यों के लिये पदावधि और त्यागपत्र की प्रक्रिया नियमों में विहित होगी। 
  • नियुक्ति की समाप्ति: राज्य सरकार किसी भी सदस्य (प्रधान मजिस्ट्रेट के अतिरिक्त) की नियुक्ति को जांच के बाद समाप्त कर सकती है, यदि सदस्य: 
    • अधिनियम के अधीन दी गई शक्तियों का दुरुपयोग करता है। 
    • बिना किसी वैध कारण के लगातार तीन महीनों तक बोर्ड की कार्यवाही में भाग लेने में असफल रहता है। 
    • एक वर्ष में कम से कम तीन-चौथाई बैठकों में भाग लेने में असफल रहता है। 
    • अपने कार्यकाल के दौरान अयोग्यता मानदण्ड के अनुसार अयोग्य हो जाता है। 

धारा 5: उस व्यक्ति का स्थानन, जो जांच की प्रक्रिया के दौरान बालक नहीं रह जाता है  

  • जब किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जांच शुरू होती है जो बच्चा है, और कार्यवाही के दौरान, वह व्यक्ति 18 वर्ष का हो जाता है: 
    • बोर्ड जांच जारी रख सकता है। 
    • बोर्ड उस व्यक्ति के संबंध में ऐसे आदेश पारित कर सकता है जैसे कि वह अभी भी बच्चा हो। 
    • यह किसी भी अन्य प्रवृत्त विधि की परवाह किये बिना लागू होता है। 

धारा 6: उस व्यक्ति का स्थानन, जिसने अपराध तब किया था जब वह व्यक्ति अठारह वर्ष से कम आयु का आयु का था  

  • यदि कोई व्यक्ति जो अब 18 वर्ष या उससे अधिक आयु का है, उसे 18 वर्ष से कम आयु में किये गए अपराध के लिये गिरफ्तार किया जाता है: 
    • जांच प्रक्रिया के दौरान उस व्यक्ति को एक बच्चे के रूप में माना जाएगा। 
  • यदि ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा नहीं किया जाता है: 
    • उन्हें जांच के दौरान "सुरक्षित स्थान" पर रखा जाना चाहिये (नियमित जेल में नहीं)। 
  • इस अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट प्रक्रियाएँ ऐसे व्यक्ति पर लागू होंगी। 

धारा 7: बोर्ड के संबंध में प्रक्रिया 

  • बैठकें और नियम: बोर्ड को: 
    • निर्धारित समय पर मिलना होगा। 
    • अपने व्यावसायिक संव्यवहार के लिये विहित नियमों का पालन करना होगा। 
    • सुनिश्चित करना होगा कि सभी प्रक्रियाएँ बच्चों के अनुकूल हों। 
    • ऐसा स्थान बनाए रखना होगा जो बालकों को भयभीत करने वाला न हो और नियमित न्यायालय जैसा न हो। 
  • एकल-सदस्यीय प्रस्तुती: विधि के साथ संघर्षरत बच्चे को बोर्ड के किसी व्यक्तिगत सदस्य के समक्ष तब प्रस्तुत किया जा सकता है जब पूरा बोर्ड सत्र में न हो। 
  • कोरम और वैधता: 
    • बोर्ड किसी भी सदस्य की अनुपस्थिति के होते हुए भी कार्य कर सकता है। 
    • कार्यवाही के कुछ चरणों के दौरान सदस्यों के अनुपस्थित रहने पर भी आदेश वैध रहते हैं। 
    • यद्यपि, अंतिम मामले के निपटान के दौरान या धारा 18(3) के अधीन आदेश देते समय कम से कम दो सदस्य (प्रधान मजिस्ट्रेट सहित) अवश्य उपस्थित होने चाहिये 
  • मतभेदों का समाधान: यदि बोर्ड के सदस्य असहमत हों: 
    • बहुमत की राय मान्य होगी। 
    • यदि बहुमत नहीं है, तो प्रधान मजिस्ट्रेट की राय मान्य होगी। 

धारा 8: बोर्ड की शक्तियाँ, कृत्य और उत्तरदायित्त्व 

  • अनन्य अधिकारिता: बोर्ड के पास अपनी अधिकारिता में विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों से संबंधित सभी कार्यवाही को संभालने का अनन्य अधिकार है, चाहे कोई अन्य विधि हो (जब तक कि इस अधिनियम में विशेष रूप से अन्यथा उपबंधित न किया गया हो)। 
  • उच्च न्यायालयों की शक्तियां: बोर्ड को दी गई शक्तियों का प्रयोग उच्च न्यायालय और बालक न्यायालय द्वारा भी किया जा सकता है जब मामले अपील, पुनरीक्षण या अन्य माध्यमों से उनके समक्ष आते हैं। 
  • कृत्य और उत्तरदायित्त्व: बोर्ड को चाहिये: 
    • प्रक्रिया के प्रत्येक क्रम पर बालक और माता-पिता/संरक्षकों की सूचनाबद्ध सहभागिता  सुनिश्चित करना। 
    • बालक के अधिकारों की, बालक की गिरफ्तारी, जांच, पश्चातवर्ती देखरेख और पुनर्वासन की संपूर्ण प्रक्रिया के दौरान संरक्षा करना। 
    • सुनिश्चित करना कि विधिक सेवा संस्थानों के माध्यम से विधिक सहायता उपलब्ध हो। 
    • आवश्यकता पड़ने पर दुभाषिया या अनुवादक उपलब्ध कराना। 
    • एक परिवीक्षा अधिकारी (या बाल कल्याण अधिकारी/सामाजिक कार्यकर्त्ता) को सामाजिक जांच करने और 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निदेश देना। 
    • धारा 14 में विनिर्दिष्ट जांच प्रक्रिया के अनुसार मामलों का न्यायनिर्णयन करना। 
    • जब विधि का उल्लंघन करने वाले किसी बालक की देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता हो, तो मामले को बाल कल्याण समिति को अंतरित करना। 
    • अंतिम आदेश पारित करना, जिसमें पुनर्वास के लिये व्यक्तिगत देखरेख योजनाएँ सम्मिलित हों। 
    • विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों की देखरेख के लिये उपयुक्त व्यक्तियों की घोषित करना। 
    • आवासीय सुविधाओं का मासिक निरीक्षण दौरा करना। 
    • विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के विरुद्ध अपराधों के लिये पुलिस को प्रथम इत्तिला रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश देना। 
    • समिति की शिकायतों के आधार पर देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के विरुद्ध अपराधों के लिए पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश देना। 
    • वयस्कों के लिये बनी जेलों का नियमित रूप से निरीक्षण करना, जिससे यह पता चल सके कि कोई बालक गलत तरीके से वहाँ बंद तो नहीं है और उन्हें पर्यवेक्षण गृहों या सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना। 
    • विहित अनुसार कोई अन्य कार्य करना। 

धारा 9: ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया जिसे इस अधिनियम के अधीन सशक्त नहीं किया गया है   

  • बोर्ड को रेफर करना: यदि इस अधिनियम के अधीन बोर्ड की शक्तियों का प्रयोग करने के लिये मजिस्ट्रेट सशक्त नहीं है और उसकी राय में उसके समक्ष लाया गया व्यक्ति बालक है: 
    • मजिस्ट्रेट अविलंब इस राय को अभिलेखबद्ध करेगा और उस बालक को तत्काल ऐसी कार्यवाही के अभिलेख के साथ कार्यवाहियों पर अधिकारिता रखने वाले बोर्ड को भेजेगा 
  • आयु निर्धारण: यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायालय के समक्ष यह दावा करता है कि वह बालक है (या अपराध करते समय बच्चा था), या यदि न्यायालय की स्वयं राय है कि ऐसा हो सकता है: 
    • न्यायालय को जांच करनी चाहिये और आवश्यक साक्ष्य (केवल शपथपत्र नहीं) लेने चाहिये 
    • न्यायालय को व्यक्ति की आयु के बारे में अपना निष्कर्ष अभिलिखित करना चाहिये 
    • ऐसे दावे किसी भी प्रक्रम में उठाए जा सकते हैं, यहाँ तक ​​कि अंतिम मामले निपटान के पश्चात् भी। 
    • आयु निर्धारण इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार होगा, भले ही व्यक्ति अब बच्चा न हो। 
  • बोर्ड को अंतरण: यदि न्यायालय का यह निष्कर्ष है कि किसी व्यक्ति ने बालक रहते हुए कोई अपराध किया है: 
    • व्यक्ति को उचित आदेश के लिये बोर्ड को भेजना चाहिये 
    • न्यायालय द्वारा पारित कोई भी दण्ड शून्य माना जाएगा 
  • सुरक्षात्मक अभिरक्षा: यदि कोई व्यक्ति जो बालक होने का दावा करता है, उसे आयु सत्यापन के दौरान सुरक्षात्मक अभिरक्षा में रखा जाना चाहिये: 
    • उन्हें इस अवधि के दौरान "सुरक्षित स्थान" में रखा जाना चाहिये 

निष्कर्ष 

किशोर न्याय बोर्ड एक विशेष प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है जिसे बाल-केंद्रित दृष्टिकोण के माध्यम से विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों से संबंधित मामलों को संबोधित करने के लिये बनाया गया है। बोर्ड की संरचना - सामाजिक कार्य अनुभव के साथ न्यायिक विशेषज्ञता को जोड़ती है - यह समझ दर्शाती है कि बालकों को विधिक सुरक्षा और सहायक पुनर्वास दोनों की आवश्यकता होती है। 

किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) को नियंत्रित करने वाला विधिक ढाँचा बाल-अनुकूल प्रक्रियाओं, बालकों के अधिकारों को संरक्षण और बालकों और उनके संरक्षकों की सूचनाबद्ध सहभागिता की आवश्यकता पर बल देता है।