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आपराधिक कानून

राज्य के विरुद्ध अपराध

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 01-Nov-2024

परिचय

राज्य से अभिप्राय:

  • भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 12 में उपबंधित है कि जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, राज्य में भारत सरकार एवं संसद और प्रत्येक राज्य की सरकार एवं विधानमंडल तथा भारत के क्षेत्र में या भारत सरकार के नियंत्रण में सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण शामिल हैं।
  • राज्य की परिभाषा समावेशी है तथा इसमें उपबंध है कि राज्य में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • भारत की सरकार एवं संसद अर्थात संघ की कार्यपालिका एवं विधानमंडल।
    • प्रत्येक राज्य की सरकार एवं विधानमंडल अर्थात भारत के विभिन्न राज्यों की कार्यपालिका एवं विधानमंडल।
    • भारत के क्षेत्र के अंदर या भारत सरकार के नियंत्रण में सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण।
  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अध्याय VII में उन उपबंधों का उल्लेख है, जिसमें राज्य के विरुद्ध अपराध किये जाते हैं।
  • धारा 147 से धारा 158 तक ऐसे अपराधों को शामिल करती हैं।

राज्य के विरुद्ध अपराधों के लिये विधिक उपबंध क्या हैं?

  • भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ना, युद्ध छेड़ने का प्रयास करना, या युद्ध छेड़ने के लिये दुष्प्रेरण (धारा 147):
    • इस धारा में यह प्रावधान किया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ता है, या ऐसा युद्ध छेड़ने का प्रयास करता है, या ऐसे युद्ध छेड़ने के लिये दुष्प्रेरण है, उसे मौत की सजा दी जाएगी, या आजीवन कारावास दिया जाएगा तथा वह अर्थदण्ड का भी उत्तरदायी होगा।
    • इस धारा को एक उदाहरण के साथ आगे स्पष्टीकृत किया गया है कि A भारत सरकार के विरुद्ध विद्रोह में शामिल होता है। A ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
  • धारा 147 (धारा 148) द्वारा दण्डनीय अपराध करने का षड्यंत्र:
    • इस धारा में यह प्रावधान किया गया है कि जो कोई भी भारत के अंदर या बाहर और भारत से बाहर धारा 147 द्वारा दण्डनीय किसी भी अपराध को करने की षड़यंत्र कारित करता है, या आपराधिक बल या आपराधिक बल के प्रदर्शन के माध्यम से, केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार को डराने की षड़यंत्र रचता है, उसे आजीवन कारावास या दोनों में से किसी भी प्रकार के कारावास से, जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और अर्थदण्ड भी देना होगा।
    • इस धारा के साथ एक स्पष्टीकरण भी दिया गया है कि इस धारा के अधीन षड़यंत्र का अपराध कारित करने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि उसके अनुसरण में कोई कार्य या अवैध लोप हो।
  • भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के आशय से हथियार आदि एकत्रित करना (धारा 149):
    • इस धारा में यह प्रावधान किया गया है कि जो कोई भी व्यक्ति, हथियार, गोलाबारूद एकत्रित करता है तथा किसी भी तरह से सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की तैयारी करता है, उसे आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दण्डित किया जाएगा तथा अर्थदण्ड भी देना होगा।
  • युद्ध छेड़ने की योजना को सुविधाजनक बनाने के आशय से छिपाना (धारा 150):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी कार्य या चूक द्वारा भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की किसी योजना को इस आशय से छुपाता है कि युद्ध को सुगम बनाया जाए, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और वह अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।
  • किसी वैध शक्ति के प्रयोग को बाध्य करने या रोकने के आशय से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना (धारा 151):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति राज्य में वैध शक्ति के प्रयोग को रोकने के आशय से राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल को आपराधिक बल के माध्यम से विवश या प्रेरित करता है या उन पर हमला करता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, तथा वह अर्थदण्ड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
  • भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को खतरे में डालने वाला कार्य (धारा 152):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो जानबूझकर या जानबूझकर अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करता है या उत्तेजित करने का प्रयास करता है, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या संकेतों द्वारा, या दृश्य चित्रण द्वारा, या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा या वित्तीय साधनों के उपयोग से भारत की संप्रभुता या एकता एवं अखंडता को खतरे में डालता है।
    • उसे सात वर्ष तक के कारावास से दण्डित किया जाएगा तथा अर्थदण्ड भी देना होगा।
    • इस धारा में एक स्पष्टीकरण दिया गया है, जिसमें यह प्रावधानित किया गया है कि इस धारा में निर्दिष्ट गतिविधियों को उत्तेजित किये बिना या उत्तेजित करने का प्रयास किये बिना, वैध तरीकों से उनमें परिवर्तन प्राप्त करने के उद्देश्य से सरकार के उपायों, या प्रशासनिक या अन्य कार्रवाई के प्रति अस्वीकृति व्यक्त करने वाली टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध नहीं मानी जाती हैं।
  • भारत सरकार के साथ शांति स्थापित करने वाले किसी विदेशी राज्य की सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ना (धारा 153):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी विदेशी राज्य की सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ता है या युद्ध का प्रयास करता है या युद्ध के लिये दुष्प्रेरण कारित करता है, जिसके साथ भारत सरकार का शांति संबंध है।
    • उसे किसी भी प्रकार के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक हो सकेगी, या अर्थदण्ड से, दण्डित किया जाएगा।
  • भारत सरकार के साथ शांति स्थापित करने वाले विदेशी राज्य के क्षेत्रों पर लूटपाट करना (धारा 154):
    • कोई भी व्यक्ति जो भारत सरकार के साथ शांति स्थापित करने वाले किसी विदेशी राज्य के भू-भाग पर लूटपाट करता है, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, तथा वह अर्थदण्ड से भी दण्डित किया जाएगा, तथा ऐसी लूटपाट करने में प्रयुक्त या प्रयुक्त होने के लिये आशयित या ऐसी लूटपाट द्वारा अर्जित किसी भी सम्पत्ति को जब्त किया जा सकेगा।
  • धारा 153 एवं 154 में वर्णित युद्ध या लूटपाट द्वारा ली गई संपत्ति प्राप्त करना (धारा 155):
    • कोई भी व्यक्ति जो धारा 153 एवं धारा 154 में वर्णित अपराध की आय की संपत्ति प्राप्त करता है।
    • उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक हो सकेगी तथा वह अर्थदण्ड एवं इस प्रकार प्राप्त संपत्ति को जब्त करने के लिये भी उत्तरदायी होगा।
  • लोक सेवक द्वारा राज्य या युद्ध बंदी को स्वेच्छा से भागने देना (धारा 156):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि कोई भी व्यक्ति, जो किसी राज्य बंदी या युद्ध बंदी की अभिरक्षा में है, यदि वह लोक सेवक होते हुए ऐसे बंदी को किसी ऐसे स्थान से, जिसमें वह बंदी है, स्वेच्छा से भागने देता है, तो उसे आजीवन कारावास या दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा तथा अर्थदण्ड भी देना होगा।
  • लोक सेवक द्वारा लापरवाही से ऐसे कैदी को भागने दिया जाना (धारा 157):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि कोई भी व्यक्ति, जो किसी राजकीय कैदी या युद्ध कैदी की अभिरक्षा में है, लापरवाही से ऐसे कैदी को किसी कारावास स्थान से भागने देता है, जिसमें वह कैदी लोक सेवक होते हुए परिरुद्ध है।
    • उसे साधारण कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा तथा अर्थदण्ड भी देना होगा।
  • ऐसे कैदी को भागने में सहायता करना, बचाना या शरण देना (धारा 158):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो जानबूझकर किसी राज्य कैदी या युद्ध बंदी को वैध अभिरक्षा से भागने में सहायता करता है, या किसी ऐसे कैदी को बचाता है या छुड़ाने का प्रयास करता है, या किसी ऐसे कैदी को शरण देता है या छुपाता है जो वैध अभिरक्षा से भाग गया है, या ऐसे कैदी को पुनः पकड़ने में कोई प्रतिरोध प्रस्तुत करता है या प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।
    • आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा तथा अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।
    • इस धारा के साथ यह स्पष्टीकरण भी दिया गया है कि कोई राज्य बंदी या युद्ध बंदी, जिसे भारत में कुछ सीमाओं के अंदर पैरोल पर स्वतंत्र रहने की अनुमति है, यदि वह उन सीमाओं के बाहर चला जाता है, जिनके अंदर उसे स्वतंत्र रहने की अनुमति है, तो यह कहा जाता है कि वह वैध अभिरक्षा से भाग गया है।

निष्कर्ष

राज्य के विरुद्ध अपराध किसी भी विधिक व्यवस्था में सबसे गंभीर अपराधों में से एक हैं, क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संवैधानिक व्यवस्था की नींव पर प्रहार करते हैं। जबकि राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिये ऐसे अपराधों के अभियोजन को सख्ती से चलाया जाना चाहिये, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं नागरिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक लोकतंत्रों को मौलिक मानवाधिकारों एवं उचित प्रक्रिया को संरक्षित करते हुए राज्य सुरक्षा के लिये खतरों का प्रभावी ढंग से सामना करने की निरंतर चुनौती का सामना करना पड़ता है।