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सिविल कानून

कैविएट

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 14-Sep-2023

परिचय (Introduction)

  • प्रायः ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति को अपने विरुद्ध वाद दायर किये जाने की आशंका होती है और उसे भय होता है कि उसकी अनुपस्थिति में कोई ऐसा निर्णय दिया जा सकता है जो उसे प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • ऐसे परिदृश्यों में, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) अपने विरुद्ध वाद दायर किये जाने की आशंका वाले व्यक्ति द्वारा कैविएट दाखिल करने का प्रावधान करती है।
  • कैविएट शब्द को CPC में परिभाषित नहीं किया गया है और यह लैटिन शब्द "cavere" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "चेतावनी," "सावधानी का संकेत," या "सचेत रहें।"
  • विधि के अंतर्गत, कैविएट व्यक्ति द्वारा भेजा गया एक औपचारिक नोटिस है जिसमें उससे जुड़े कोई भी निर्णय देने से पूर्व सूचित करने का अनुरोध किया जाता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में कैविएट (Caveat in Civil Procedure Code, 1908)

  • यह कैविएट दाखिल करने वाले व्यक्ति द्वारा, जैसा भी मामला हो, प्रशासन पत्र या प्रोबेट के विरुद्ध उठाया गया एक एहतियाती कदम है।
  • कैविएट दाखिल या दायर करने वाले व्यक्ति को 'कैविएटर (Caveator)' कहा जाता है।
  • 1976 के संशोधन अधिनियम द्वारा उपबंधित, कैविएट की अवधारणा को CPC की धारा 148A के तहत परिभाषित किया गया है।
  • धारा 148A किसी व्यक्ति को उस वाद या कार्यवाही में कैविएट दाखिल करने की अनुमति देती है जो उसके विरुद्ध शुरू किया गया है या शुरू होने वाला है।
  • यह धारा वादों, अपीलों, पुनरीक्षणों, रिट याचिकाओं, निष्पादन कार्यवाही आदि पर लागू होती है। 

धारा 148A- कैविएट दाखिल करने का अधिकार

कैविएट से संबंधित कुछ मुख्य तथ्य

कैविएट के उद्देश्य

  • कैविएट के अंतर्निहित उद्देश्य इस प्रकार हैं:
    • यह कैविएटर के हितों की रक्षा करता है ताकि किसी भी एकपक्षीय अधिनिर्णय से बचा जा सके।
    • इसका उद्देश्य कार्यवाहियों की बहुलता (multiplicity of proceedings) से बचना है।
    • कैविएट दाखिल करने से, कैविएटर को सुनवाई का न्यायोचित अवसर मिलता है।

CPC, 1908 के तहत कैविएट की अनिवार्यताएँ (Essentials of a Caveat Under CPC, 1908)

  • कैविएट दाखिल करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध एक आवेदन, न्यायालय में दायर किये जा चुके या दायर किये जाने वाले वाद या कार्यवाही में किया जा सकता है या किया जा चुका है।
  • कैविएटर उस व्यक्ति को, जिसके द्वारा आवेदन किया गया है या किये जाने की संभावना है, पंजीकृत डाक से, पावती के रूप में, कैविएट का नोटिस भेजेगा।

कैविएट दाखिल करने के पश्चात् प्रक्रिया (Process After Filing of Caveat)

  • CPC की धारा 148A (3) के अनुसार, जहाँ, कैविएट दाखिल किये जाने के बाद, किसी मुकदमे या कार्यवाही में कोई आवेदन दायर किया जाता है, न्यायालय कैविएटर को आवेदन का नोटिस देगा।
  • जहाँ आवेदक को किसी भी कैविएट का नोटिस दिया गया है, वह तुरंत कैविएटर को उसके खर्च पर, उसके द्वारा किये गए आवेदन की एक प्रति और साथ ही किसी भी कागज या दस्तावेज़ की प्रतियों के साथ प्रस्तुत करेगा, जो उनके द्वारा आवेदन के समर्थन में दायर किया गया है, या किया जा सकता है।

कब एक कैविएट दाखिल की जा सकती है (When a Caveat May be Lodged)

  • निर्णय दिये जाने या आदेश पारित होने के बाद कैविएट दाखिल की जा सकती है।
  • असाधारण मामलों में, निर्णय दिये जाने या आदेश पारित होने से पहले भी कैविएट दाखिल किया जा सकता है।

कैविएट की समाप्ति की अवधि (Period of Expiration of Caveat)

  • धारा 148A के अनुसार, एक कैविएट, दायर की गई तिथि से नब्बे दिन की समाप्ति के बाद लागू नहीं रहेगी।

कैविएट का स्वरूप (Form of Caveat)

  • संहिता के तहत, कैविएट का कोई स्वरूप निर्धारित नहीं किया गया है।
  • एक कैविएट एक याचिका के रूप में दायर किया जा सकता है जिसमें कैविएटर को दिये गए या दिये जाने वाले आवेदन की प्रकृति को निर्दिष्ट करना होगा।

कैविएटर के अधिकार और कर्त्तव्य (Rights and Duties of the Caveator)

  • धारा 148A की उपधारा (2) में प्रावधान है कि जब उप-धारा (1) के तहत कैविएट दाखिल की गई है, तो कैविएटर उपधारा (1) के तहत उस व्यक्ति को कैविएट का नोटिस देगा, जिसके द्वारा आवेदन किया गया है या किये जाने की संभावना है।

न्यायालय के अधिकार एवं कर्त्तव्य (Rights and Duties of the Court)

  • एक बार कैविएट दाखिल हो जाने और आवेदक को नोटिस भेज दिये जाने के बाद न्यायालय के कर्त्तव्य प्रारम्भ होते हैं।
  • धारा 148A की उप-धारा (3) में प्रावधान है कि कैविएट दाखिल किये जाने के बाद और उसके बाद किसी भी वाद या कार्यवाही में कोई आवेदन दायर किया जाता है तो न्यायालय को कैविएटर को एक नोटिस देना होगा।

आवेदक के अधिकार और कर्त्तव्य (Rights and Duties of the Applicant)

  • धारा 148A की उप-धारा (4), आवेदक को निर्देश देती है कि वह अपने द्वारा किये गए आवेदन की एक प्रति के साथ-साथ कोई अन्य दस्तावेज़ या कागज़ात प्रस्तुत करे जो उसके द्वारा कैविएटर को अपने आवेदन के समर्थन में दायर किया गया हो।

ऐतिहासिक विधिक मामले (Landmark Case Laws)

  • कट्टिल वायलिल पार्ककुम कोइलोथ बनाम मन्निल पदिकायिल कदीसा उम्मा (Kattil Vayalil Parkkum Koiloth v. Mannil Paadikayil Kadeesa Umma (1991) के मामले में, केरल उच्च न्यायालय ने माना कि किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा कैविएट दाखिल नहीं किया जाना चाहिये जो मामले से पूर्णतः विरत (total stranger) है। अतएव, कैविएटर मामले में पक्षकार होगा।
  • दीपक खोसला बनाम भारत संघ एवं अन्य (Deepak Khosla v. Union of India & Ors) (2011) के मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया था कि किसी आपराधिक या संवैधानिक मामले में नागरिक संहिता की धारा 148A के तहत कैविएट दाखिल नहीं किया जा सकता है।