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सिविल कानून

प्रत्यास्थापन

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 22-Nov-2023

परिचय:

इसका अर्थ है किसी चीज़ को उसके सही मालिक को लौटाने का कार्य।

  • इसे किसी पक्ष को उस लाभ को वापस करने के रूप में भी माना जा सकता है जो दूसरे पक्ष को बाद में गलत ठहराए गए डिक्री(किसी सक्षम न्यायालय के निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति) के तहत प्राप्त हुआ है।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 144 में प्रत्यास्थापन से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।

धारा 144, CPC:

  • CPC की धारा 144 प्रत्यास्थापन के लिये आवेदन से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि:

(1) जहाँ की ​​और जहाँ तक ​​डिक्री या आदेश किसी अपील, पुनरीक्षण या अन्य कार्यवाही में भिन्न या उलट दी जाती है या डिक्री पारित करने वाले न्यायालय के उद्देश्य के लिये स्थापित किसी भी मुकदमे में अलग कर दी जाती है या संशोधित की जाती है या आदेश पुनर्स्थापन के माध्यम से या अन्यथा किसी भी लाभ के हकदार किसी भी पक्ष के आवेदन पर, ऐसा पुनर्स्थापन कराएगा जिससे, जहाँ तक ​​हो सके, पार्टियों को उस स्थिति में रखा जा सके जिसमे वे होते यदि वह डिक्री या आदेश या उसका वह भाग जिसमे फेरफार किया गया है या जिसे उल्टा गया है या अपास्त किया गया है या उपांतरित किया गया है, न दिया गया होता और न्यायालय इस प्रयोजन से कोई ऐसे आदेश जिनके अंतर्गत खर्चों के प्रतिदाय के लिये एवं ब्याज, नुकसानी, प्रतिकर तथा अंतःकालीन लाभों के संदाय के लिये आदेश होंगे, कर सकेगा जो उस डिक्री या आदेश को ऐसे फेरफार करने, उलटने, आपस्त करने या उपांतरण के उचित रूप में पारिणामिक है। 

स्पष्टीकरण: उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिये, “वह न्यायालय जिसने डिक्री या आदेश पारित किया था” पद के बारे में यह समझा जाएगा कि उसके अंतर्गत निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं-

उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिये, शब्द "न्यायालय जिसने डिक्री या आदेश जारी किया" शामिल है।

(a) जहाँ डिक्री या आदेश में फेरफार या उलटाव अपीली या पुनरीक्षण अधिकारिता के प्रयोग में किया गया है वहाँ प्रथम दृष्टया न्यायालय।

(b) जहाँ डिक्री या आदेश पृथक वाद में आपस्त किया गया है वहाँ प्रथम दृष्टया न्यायालय जिसने ऐसी डिक्री या आदेश को पारित किया था।

(c) जहाँ प्रथम दृष्टया न्यायालय विद्यमान नहीं रहा है या उसकी निष्पादित करने की अधिकारिता नहीं रही है वहाँ न्यायालय, जिसे ऐसे वाद का विचरण करने की अधिकारिता होती, यदि वह वाद जिसमे डिक्री या आदेश पारित किया गया था, इस धारा के अधीन प्रत्यास्थापन के लिये आवेदन किये जाने के समय संस्थित किया गया होता।

(2) कोई भी वाद ऐसा कोई प्रत्यास्थापन या अन्य अनुतोष अभिप्राप्त करने के प्रयोजन से संस्थित नहीं किया जाएगा जो उपधारा (1) के अधीन आवेदन द्वारा अभिप्राप्त किया जा सकता था।

प्रत्यास्थापन की अनिवार्यताएँ:

  • प्रत्यास्थापन एक कहावत “actus curiae neminem gravabit” पर आधारित है जिसका अर्थ है कि न्यायलय किसी को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
  • यह समान सिद्धांतों पर आधारित है।
  • यह कोई मूल अधिकार प्रदान नहीं करता है।
  • यह न्यायालय की शक्ति को नियंत्रित करता है जो वैवेकिक नहीं बल्कि बाध्यकर है।
  • यह न केवल मुकदमे के पक्षकार के विरुद्ध बल्कि उसके कानूनी प्रतिनिधि के विरुद्ध भी दिया जा सकता है।
  • जब CPC की धारा 144 के तहत एक आवेदन द्वारा प्रत्यास्थापन का दावा किया जा सकता है, तो ऐसी राहत के लिये कोई अलग मुकदमा नहीं किया जाएगा।

प्रत्यास्थापन के लिये शर्तें:

CPC की धारा 144 के तहत प्रत्यास्थापन के आदेश देने से पूर्व निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिये:

  • प्रत्यास्थापन की माँग उस डिक्री या आदेश के संबंध में होनी चाहिये जिसे बदल या उलट दिया गया था।
  • प्रत्यास्थापन के लिये आवेदन करने वाली पार्टी को उलटे डिक्री या आदेश के तहत लाभ पाने का हकदार होना चाहिये।
  • दावा की गई राहत डिक्री या आदेश के उलटने या बदलाव के लिये उचित रूप से पारिणामिक होनी चाहिये।

दृष्टांत:

  • A, 5,000 रुपए के लिये B के खिलाफ डिक्री प्राप्त करता है और निष्पादन में राशि वसूल करता है। अपील में डिक्री को उलट दिया जाता है। B प्रतिसंदाय की तिथि तक ब्याज सहित राशि की वापसी का हकदार है, हालाँकि अपील डिक्री ब्याज के संबंध में निष्क्रिय हो सकती है।
  • A स्थावर संपत्ति के कब्ज़े के लिये B के खिलाफ डिक्री प्राप्त करता है और डिक्री के निष्पादन में उस पर कब्ज़ा प्राप्त करता है। बाद में अपील में डिक्री को उलट दिया जाता है। भले ही अपीलीय न्यायालय के आदेश में प्रत्यास्थापन के लिये कोई निर्देश नहीं है, ऐसे में B प्रत्यास्थापन के लिये हकदार है।

निर्णय विधि:

  • महजीभाई मोहनभाई बरोट बनाम पटेल मणिभाई गोकलभाई (1965) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रत्यास्थापन के लिये किया गया एक आवेदन एक डिक्री के निष्पादन के लिये आवेदन है।
  • मेखा राम और अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य (2022) मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि CPC की धारा 144 सिविल कोर्ट को पार्टियों को उस स्थिति में वापस लाने की शक्ति प्रदान करती है जो मुकदमा या मामला दायर करने से पूर्व मौजूद थी।