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सिविल कानून

CPC के अंतर्गत मूल डिक्री से अपील

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 28-Aug-2024

परिचय:

अपील अधीनस्थ न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में किया गया आवेदन है, जिसमें न्यायालय द्वारा पारित आदेश की वैधता की जाँच की जाती है।

  • अपील किसी व्यक्ति का अंतर्निहित अधिकार नहीं है, बल्कि यह पीड़ित पक्ष के लिये उपलब्ध एक उपाय है।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के भाग VII में मूल डिक्री के विरुद्ध अपील के प्रावधान बताए गए हैं।

अपील क्या है?

  • CPC के अंतर्गत अपील को विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
  • यह अवर न्यायालय के आदेश की उच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक जाँच है, ताकि अवर न्यायालय के आदेश की सत्यता का परीक्षण किया जा सके।
  • अपील करने वाला व्यक्ति अपीलकर्त्ता होता है और जिस न्यायालय में अपील की जाती है वह अपीलीय न्यायालय होता है।
  • किसी न्यायालय के आदेश या डिक्री से व्यथित किसी भी व्यक्ति को उच्चतर न्यायालय में अपील करने का अधिकार है, बशर्ते कि उस डिक्री या आदेश के विरुद्ध ऐसी अपील की अनुमति हो।
  • ऐसे मामलों में जहाँ मूल क्षेत्राधिकार वाला न्यायालय कोई आदेश जारी करता है, प्रथम अपील सामान्यतः उस अपीलीय न्यायालय के पास होती है, जो उस विशिष्ट न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिये अधिकृत होता है।
  • इस नियम के अपवाद मौजूद हो सकते हैं यदि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) या किसी अन्य लागू विधान द्वारा स्पष्ट रूप से प्रावधान किया गया हो।
  • CPC की धाराएँ 96, 100, 104 और 109 अपील का अधिकार प्रदान करती हैं।

अपील कौन कर सकता है?

  • मूल पक्षों के विधिक प्रतिनिधि या स्वयं मूल पक्ष।
  • न्यायालय द्वारा नियुक्त अवयस्क का विधिक अभिभावक।
  • कोई भी पीड़ित व्यक्ति न्यायालय से अनुमति लेने के उपरांत।

अपील का अधिकार?

  • अपील वैधानिक एवं मौलिक अधिकार दोनों है।
  • अपील तभी वैधानिक अधिकार है जब विधि में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया गया हो कि अपील की जा सकती है।
  • अपील एक मौलिक अधिकार है जब यह पक्षकार को अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार देता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत प्रथम अपील क्या है?

  • CPC के आदेश 41 के साथ धारा 96 से 99-A, 107 प्रथम अपील से संबंधित हैं।
  • प्रथम अपील मूल क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध होती है।
  • प्रथम अपील किसी भी वरिष्ठ न्यायालय में दायर की जा सकती है, जो उच्च न्यायालय भी हो सकता है और नहीं भी।
  • प्रथम अपील तथ्य के प्रश्न पर, या विधि के प्रश्न पर, या तथ्य और विधि के मिश्रित प्रश्न पर सुनवाई योग्य होती है।

मूल डिक्री के विरुद्ध अपील:

परिचय:

  • CPC की धारा 96 में मूल डिक्री के विरुद्ध अपील के संबंध में प्रावधान बताए गए हैं।
  • इसमें कहा गया है कि जहाँ इस संहिता के मुख्य भाग में या किसी अन्य समय प्रवृत्त विधि द्वारा अन्यथा स्पष्ट रूप से उपबंधित किया गया है, वहाँ आरंभिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले किसी न्यायालय द्वारा पारित प्रत्येक डिक्री के विरुद्ध अपील उस न्यायालय में होगी जो ऐसे न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिये प्राधिकृत है।
    • एकपक्षीय रूप से पारित मूल डिक्री के विरुद्ध अपील की जा सकती है।
    • पक्षकारों की सहमति से न्यायालय द्वारा पारित किसी डिक्री के विरुद्ध कोई अपील नहीं होगी।
    • लघु वाद न्यायालय द्वारा संज्ञेय प्रकृति के किसी वाद में डिक्री के विरुद्ध कोई अपील विधि के प्रश्न पर ही होगी, सिवाय इसके कि उस स्थिति में होगी जब मूल वाद की विषय-वस्तु की राशि या मूल्य दस हज़ार रुपए से अधिक न हो।

विधिक प्रावधान:

  • CPC की धारा 96 में कहा गया है कि:
    • खंड (1) में कहा गया है कि जहाँ इस संहिता के मुख्य भाग में या किसी अन्य समय प्रवृत्त विधि द्वारा अन्यथा स्पष्ट रूप से उपबंधित है, उसके सिवाय, आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग करने वाले किसी न्यायालय द्वारा पारित प्रत्येक डिक्री के विरुद्ध अपील होगी, जो ऐसे न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिये प्राधिकृत है।
    • खंड (2) में कहा गया है कि एकपक्षीय रूप से पारित मूल डिक्री के विरुद्ध अपील की जा सकेगी।
    • खंड (3) में कहा गया है कि पक्षकारों की सहमति से न्यायालय द्वारा पारित डिक्री के विरुद्ध कोई अपील नहीं होगी।
    • खंड (4) में कहा गया है कि लघु वाद न्यायालय द्वारा संज्ञेय प्रकृति के किसी वाद में डिक्री के विरुद्ध कोई अपील विधि के प्रश्न पर ही होगी, सिवाय इसके कि मूल वाद की विषय-वस्तु की राशि या मूल्य दस हज़ार रुपए से अधिक न हो।

मूल डिक्री से अपील दायर करने की प्रक्रिया:

  • मूल डिक्री के विरुद्ध अपील दायर करने की प्रक्रिया आदेश XLI और नियमों के अंतर्गत आती है
  • नियम 1 में अपील का प्रारूप और ज्ञापन के साथ क्या-क्या संलग्न करना है, बताया गया है:
    • प्रत्येक अपील, अपीलकर्त्ता या उसके अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन के रूप में प्रस्तुत की जाएगी और न्यायालय या उसके द्वारा इस संबंध में नियुक्त अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी। ज्ञापन के साथ निर्णय की एक प्रति संलग्न की जाएगी।
    • परंतु जहाँ दो या अधिक वादों का एक साथ विचारण किया गया हो और उनके लिये एक सामान्य निर्णय दिया गया हो और उस निर्णय के अंतर्गत आने वाली किसी डिक्री के विरुद्ध दो या अधिक अपीलें, चाहे एक ही अपीलकर्त्ता द्वारा या भिन्न अपीलकर्त्ताओं द्वारा, दायर की गई हों, वहाँ अपील न्यायालय निर्णय की एक से अधिक प्रतियाँ फाइल करने से छूट दे सकेगा।
    • ज्ञापन की विषय-वस्तु:
      • ज्ञापन में अपील की गई डिक्री के विरुद्ध आपत्ति के आधारों को, बिना किसी तर्क या विवरण के, संक्षेप में तथा पृथक शीर्षकों के अंतर्गत उल्लिखित किया जाएगा; तथा ऐसे आधारों को क्रमवार क्रमांकित किया जाएगा।
    • जहाँ अपील धन के भुगतान के लिये किसी डिक्री के विरुद्ध है, वहाँ अपीलकर्त्ता, अपील न्यायालय द्वारा अनुज्ञात समय के भीतर, अपील में विवादित राशि जमा करेगा या उसके संबंध में ऐसी प्रतिभूति देगा, जैसी कि न्यायालय उचित समझे।
  • नियम 2 में अपील में अपनाए जा सकने वाले आधारों का उल्लेख है:
    • अपीलकर्त्ता, न्यायालय की अनुमति के बिना, अपील के ज्ञापन में उल्लिखित नहीं की गई किसी आपत्ति के आधार के समर्थन में आग्रह नहीं करेगा या उसकी बात नहीं सुनी जाएगी; किंतु अपील का विनिश्चय करते समय अपील न्यायालय, अपील के ज्ञापन में उल्लिखित या इस नियम के अधीन न्यायालय की अनुमति से लिये गए आपत्ति के आधारों तक ही सीमित नहीं रहेगा।
    • परंतु न्यायालय किसी अन्य आधार पर अपना निर्णय तब तक नहीं देगा जब तक कि उससे प्रभावित होने वाले पक्षकार को उस आधार पर मामला लड़ने का पर्याप्त अवसर न मिल गया हो।
  • नियम 3 में कहा गया है कि ज्ञापन को अस्वीकार या संशोधित किया जा सकता है:
    • जहाँ अपील का ज्ञापन इसमें पूर्व निर्धारित तरीके से तैयार नहीं किया गया है, वहाँ उसे अस्वीकृत किया जा सकता है या न्यायालय द्वारा निर्धारित समय के भीतर संशोधित करने के प्रयोजनार्थ अपीलकर्त्ता को वापस किया जा सकता है या तत्काल संशोधित किया जा सकता है।
    • जहाँ न्यायालय किसी अपील ज्ञापन को अस्वीकृत करता है, वहाँ वह ऐसी अस्वीकृति के कारणों को अभिलिखित करेगा।
    • जहाँ अपील ज्ञापन में संशोधन किया जाता है, वहाँ न्यायाधीश या उसके द्वारा इस संबंध में नियुक्त कोई अधिकारी संशोधन पर हस्ताक्षर करेगा या उस पर आद्याक्षर करेगा।
  • नियम 3A में कहा गया है कि विलंब की क्षमा के लिये आवेदन:
    • जब कोई अपील, विनिर्दिष्ट सीमा अवधि की समाप्ति के पश्चात् प्रस्तुत की जाती है, तो उसके साथ शपथ-पत्र द्वारा समर्थित एक आवेदन संलग्न किया जाएगा, जिसमें वे तथ्य बताए जाएंगे, जिन पर अपीलकर्त्ता निर्भर करता है, ताकि न्यायालय को यह संतुष्टि हो सके कि ऐसी अवधि के भीतर अपील न करने के लिये उसके पास पर्याप्त कारण था।
    • यदि न्यायालय को प्रत्यर्थी को अधिसूचना जारी किये बिना आवेदन को अस्वीकार करने का कोई कारण प्रतीत नहीं होता है, तो प्रत्यर्थी को अधिसूचना जारी की जाएगी और मामले पर न्यायालय द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाएगा, इससे पहले कि वह नियम 11 या नियम 13 के तहत अपील पर आगे बढ़े, जैसा भी मामला हो।
    • जहाँ उपनियम (1) के अधीन आवेदन किया गया है, वहाँ न्यायालय उस डिक्री के निष्पादन पर रोक लगाने का आदेश नहीं देगा जिसके विरुद्ध अपील दायर करने का प्रस्ताव है, जब तक कि न्यायालय नियम 11 के अधीन सुनवाई के पश्चात् अपील पर सुनवाई करने का विनिश्चय नहीं कर लेता।
  • नियम 4 में कहा गया है कि कई वादी या प्रतिवादी में से कोई एक संपूर्ण डिक्री को पलट सकता है, जहाँ यह सभी के लिये सामान्य आधार पर आगे बढ़ता है:
    • जहाँ किसी वाद में एक से अधिक वादी या प्रतिवादी हों और जिस डिक्री के लिये अपील की गई है वह सभी वादियों या सभी प्रतिवादियों के लिये समान आधार पर प्राप्त होती है, वहाँ वादियों या प्रतिवादियों में से कोई भी संपूर्ण डिक्री के विरुद्ध अपील कर सकता है और तदुपरांत अपील न्यायालय, यथास्थिति, सभी वादियों या प्रतिवादियों के पक्ष में डिक्री को पलट सकता है या उसमें परिवर्तन कर सकता है।

मूल डिक्री से अपील की महत्त्वपूर्ण निर्णयज विधियाँ:

  • वाडा अरुण एस्बेस्टोस (P) लिमिटेड बनाम गुजरात जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड (2009):  
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जहाँ किसी डिक्री के विरुद्ध अपील की जाती है, वहाँ मामले के निर्णय को प्रभावित करने वाले किसी आदेश में कोई त्रुटि, दोष या अनियमितता को अपील ज्ञापन में आपत्ति के आधार के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • बलदेव सिंह बनाम सुरिंदर मोहन शर्मा (2003):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि डिक्री के विरुद्ध सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 96 के अंतर्गत की गई अपील स्वीकार्य होगी।
    • हालाँकि ऐसी अपील केवल उस व्यक्ति के अनुरोध पर ही स्वीकार्य होगी जो निर्णय और डिक्री से व्यथित और असंतुष्ट हो।
  • महाराष्ट्र राज्य बनाम हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (2010):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्त्ता न्यायालय  को अपील ज्ञापन में संशोधन करने की अनुमति देने का अधिकार है।

निष्कर्ष:

अपील, अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णय से व्यथित व्यक्ति को दिया जाने वाला एक उपाय है। यह विधि के अनुसार उपलब्ध एक मौलिक एवं वैधानिक अधिकार है। मूल डिक्री से अपील उस न्यायालय से उच्चतर न्यायालय में होती है जिसने डिक्री पारित की है। अपील सामान्यतः निर्णीत-ऋणी द्वारा की जाती है।