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सिविल कानून

डिक्री के निष्पादन की रीती

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 03-Mar-2025

परिचय 

  • किसी डिक्री का निष्पादन सिविल मुकदमेबाजी में अंतिम और निर्णायक चरण का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ निर्णय को केवल अधिकारों की घोषणा से डिक्रीदार के लिये वास्तविक अनुतोष में परिवर्तित कर दिया जाता है। 
  • आदेश 21 के अधीन सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) एक मजबूत ढाँचा प्रदान करता है जो अपने दावों की संतुष्टि चाहने वाले डिक्रीदारों को उनके हितों को  अनुचित कठिनाई से निर्णीत-ऋणी से संरक्षण देने की आवश्यकता के विरुद्ध संतुलित करता है। 
  • किसी भी नागरिक न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता अंततः निर्णयों को लागू करने की उसकी क्षमता पर निर्भर करती है। 
  • उचित निष्पादन तंत्र के बिना, न्यायालय के आदेश केवल कागजी घोषणाएँ बनकर रह जाएँगे, जिनका कोई व्यावहारिक मूल्य नहीं होगा। इसे ध्यान में रखते हुए, विधि निष्पादन के लिये कई रास्ते प्रदान करती है, जो डिक्री की प्रकृति और प्रत्येक मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुरूप होते हैं। 
  • ये विधियाँ निर्णीत-ऋणी के निरोध से लेकर संपत्ति की कुर्की और विक्रय तक होती हैं, जो एक क्रमिक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं जो अनावश्यक दबाव को कम करते हुए अनुपालन सुनिश्चित करने का प्रयास करती हैं। 
  • न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये डिक्री का प्रभावी निष्पादन आवश्यक है। 
  • जब निष्पक्षता और सभी पक्षकारों के हितों के प्रति संवेदनशीलता के साथ लागू किया जाता है, तो निष्पादन प्रक्रिया न्याय की प्राप्ति में अंतिम चरण के रूप में कार्य करती है, न्यायिक घोषणाओं को वास्तविक अनुतोष में परिवर्तित किया जाता है और विधि के शासन को सुदृढ़ किया जाता है। 

डिक्री के निष्पादन की रीती 

धन के संदाय के लिये डिक्री (नियम 30) 

  • धन के संदाय के लिये डिक्री को निम्न माध्यम से निष्पादित किया जा सकता है: 
    • निर्णीत ऋणी को सिविल कारागार में निरोध द्वारा 
    • निर्णीत -ऋणी की संपत्ति की कुर्की और विक्रय द्वारा 
    • निरोध और कुर्की दोनों एक साथ द्वारा 
  • यह उपबंध उन सभी डिक्री पर लागू होता है, जहाँ मौद्रिक संदाय का आदेश दिया जाता है, जिसमें वे भी सम्मिलित हैं, जहाँ मौद्रिक संदाय किसी अन्य अनुतोष का विकल्प है। 

विनिर्दिष्ट जंगम संपत्ति के लिये डिक्री (नियम 31) 

  • जब कोई डिक्री विनिर्दिष्ट जंगम संपत्ति या ऐसी संपत्ति में किसी अंश से संबंधित होती है, तो निष्पादन इस प्रकार हो सकता है: 
    • जंगम संपत्ति या अंश के अभिग्रहण (यदि संभव हो) द्वारा 
    • उस पक्षकार को सुपुर्दगी द्वारा, जिसके लिये यह निर्णय दिया गया है या उनके नियुक्त प्रतिनिधि। 
    • सिविल कारागार में निर्णीत-ऋणी के निरोध द्वारा 
    • निर्णीत-ऋणी की संपत्ति की कुर्की द्वारा 
    • निरोध और कुर्की दोनों द्वारा 
  • यदि निर्णीत-ऋणी द्वारा डिक्री का पालन किये बिना कुर्की तीन महीने तक जारी रहती है, और डिक्रीदार कुर्क की गई संपत्ति के विक्रय के लिये आवेदन करता है, तो न्यायालय:  
    • संपत्ति का विक्रय कर सकता है। 
    • डिक्रीदार को परिदान के विकल्प के रूप में डिक्री द्वारा निर्धारित राशि या उचित प्रतिकर प्रदान कर सकता है 
    • आवेदन करने पर निर्णीत-ऋणी को कोई भी शेष राशि का संदाय कर सकता है 
  • कुर्की समाप्त हो जाती है यदि: 
    • निर्णीत-ऋणी डिक्री का पालन करता है और सभी निष्पादन योग्य खर्चों का संदाय करता है। 
    • कुर्की की तारीख से तीन मास के पश्चात् विक्रय के लिये कोई आवेदन नहीं किया जाता है। 
    • विक्रय के लिये आवेदन, यदि किया जाता है, तो नामंजूर कर दिया जाता है। 

विनिर्दिष्ट पालन के लिये दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिये, या व्यादेश के लिये डिक्री (नियम 32) 

  • जहाँ कोई पक्षकार ऐसा करने का अवसर होने के बावजूद जानबूझकर डिक्री का पालन करने में असफल रहता है, तो डिक्री को निम्नलिखित द्वारा प्रवृत्त किया जा सकता है: 
    • दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के मामले में: संपत्ति की कुर्की द्वारा 
    • विनिर्दिष्ट पालन या व्यादेश के मामले में: सिविल कारागार में निरोध, संपत्ति की कुर्की, या दोनों द्वारा 
  • जिन निगमों के विरुद्ध ऐसे डिक्री पारित की जाती हैं, उनके लिये प्रवर्तन निम्नलिखित के माध्यम से हो सकता है: 
    • निगम की संपत्ति की कुर्की द्वारा 
    • निदेशकों या प्रमुख अधिकारियों को सिविल कारागार में निरोध में रख कर (न्यायालय की अनुमति से)। 
    • कुर्की और निरोध दोनों। 
  • यदि कुर्की छह मास तक बिना अनुपालन के जारी रहती है, तो डिक्रीदार द्वारा आवेदन करने पर संपत्ति बेची जा सकती है, जिसमें न्यायालय आय से उचित प्रतिकर प्रदान करेगा। 
  • कुर्की समाप्त हो जाती है यदि: 
    • निर्णीत-ऋणी डिक्री का पालन करता है और सभी निष्पादन योग्य खर्चों का संदाय करता है। 
    • कुर्की की तारीख से छह मास के पश्चात् विक्रय के लिये कोई आवेदन नहीं किया जाता है। 
    • विक्रय के लिये आवेदन, यदि किया जाता है, तो नामंजूर कर दिया जाता है। 
  • विनिर्दिष्ट या व्यादेश के लिये डिक्री के आज्ञानुवर्तन नहीं किया गया उन मामलों में, न्यायालय यह भी कर सकता है: 
    • निदेश दें  सकेगा कि अपेक्षित कार्य डिक्रीदार या किसी अन्य नियुक्त व्यक्ति द्वारा किया जाए। 
    • व्ययों को वसूल करें जैसे कि वे डिक्री में सम्मिलित थे।  
  • " वह कार्य जिसके किये जाने की अपेक्षा की गई थी" शब्द में प्रतिषेधात्मक और आज्ञापक व्यादेश दोनों आते हैं। 

दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिये डिक्रियों के निष्पादन करने में न्यायालय का विवेकाधिकार (नियम 33) 

  • न्यायालयों के पास दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिये डिक्री निष्पादित करने में विवेकाधिकार है और वे निम्न कर सकता हैं: 
    • आदेश दे सकेगा कि डिक्री को न्यायालय द्वारा उपबंधित रीती से निष्पादित किया जाएगा। 
    • यदि डिक्री का पालन निश्चित अवधि के भीतर नहीं किया जाता है, तो डिक्रीदार को कालिक संदाय का आदेश दे सकेगा 
    • ऐसे संदयों को प्रतिभूत करने के लिये निर्णीत-ऋणी को बाध्य कर सकेगा 
    • समय, राशि में परिवर्तन करके या भुगतान को अस्थायी रूप से निलंबित करके कालिक संदयों के आदेशों में परिवर्तन या संशोधन कर सकेगा 
    • आदेशित संदयों को डिक्री के अधीन देय धन के रूप में वसूल करें। 

दस्तावेज़ के निष्पादन या परक्राम्य लिखत के पृष्ठांकन के लिये डिक्री (नियम 34) 

  • जब निर्णीत-ऋणी डिक्री के अनुसार किसी दस्तावेज़ को निष्पादित करने या परक्राम्य लिखत के पृष्ठांकन करने में उपेक्षा करता है या मना करता है, तो प्रक्रिया में निम्न सम्मिलित हैं: 
    • डिक्रीदार,  डिक्री की शर्तों के अनुसार एक मसौदा दस्तावेज़ /पृष्ठांकन को तैयार करता है। 
    • न्यायालय द्वारा इस मसौदे को निर्णीत-ऋणी को निर्दिष्ट समय के भीतर आक्षेप करने के लिये नोटिस के साथ भेजा जाता है 
    • निर्णीत-ऋणी द्वारा लिखित में आपत्तियाँ बताई जाती है 
    • न्यायालय द्वारा मसौदे को अनुमोदित या परिवर्तित किया जाता है 
    • डिक्रीदार द्वारा उचित स्टाम्प पेपर पर प्रतिलिपि प्रदान की जाती है 
    • न्यायाधीश या नियुक्त अधिकारी द्वारा दस्तावेज़ का निष्पादन। 
  • निष्पादन निर्दिष्ट प्रारूप का अनुसरण करता है और इसका वही प्रभाव होता है, जैसे कि निर्णय-ऋणी द्वारा निष्पादित किया गया हो। 
  • रजिस्ट्रीकरण की आवश्यकता वाले दस्तावेज़ों के लिये: 
    • न्यायालय या प्राधिकृत अधिकारी रजिस्ट्रीकरण कराएगा 
    • जहाँ दस्तावेज़ का इस प्रकार अपेक्षित नहीं है वहाँ रजिस्ट्रीकरण के लिये, यदि डिक्रीदार रजिस्ट्रीकरण चाहता है, तो न्यायालय उचित आदेश दे सकता है। 
    • न्यायालय रजिस्ट्रीकरण व्यय के संबंध में आदेश दे सकता है।  

स्थावर संपत्ति के लिये डिक्री (नियम 35) 

  • अचल संपत्ति का परिदान किया जाएगा: 
    • जिस पक्षकार के लिये यह न्यायनिर्णीत किया गया है या उनके नियुक्त प्रतिनिधि को। 
    • यदि आवश्यक हो, तो डिक्री द्वारा आबद्ध किसी ऐसे व्यक्ति को जो संपत्ति को खाली करने से इंकार करता है, हटा करके परिदत्त किया जाएगा 
  • अचल संपत्ति के संयुक्त कब्जे के लिये: 
    • वारण्ट की एक प्रति संपत्ति में किसी सहजदृश्य स्थान पर चिपकाई जाएगी। 
    • डिक्री का सार डोंडी पिटवा कर या अन्य रूढ़िक ढंग से घोषित किया जाएगा। 
  • किसी भवन का कब्ज़ा देते समय जहाँ रहने वाले के पास स्वतंत्र पहुँच नहीं है: 
    • न्यायालय युक्तयुक्त चेतावनी और महिलाओं को रूढ़ियों के अनुसार वापस हट जाने की सुविधा देने के पश्चात् कर सकता है। 
    • ताले या चटकनी को हटा या खोल सकेगा, दरवाज़े तोड़ कर खोल सकेगा या कब्ज़ा देने के लिये अन्य आवश्यक कार्रवाई कर सकेगा 

जब स्थावर संपत्ति अभिधारी के अभिभोग में है तब संपत्ति के परिदान के लिये डिक्री (नियम 36) 

  • जहाँ संपत्ति पर किसी किराएदार या ऐसे व्यक्ति का कब्ज़ा है जो कब्ज़ा छोड़ने के लिये आबद्ध नहीं है: 
  • वारण्ट की एक प्रति किसी सहजदृश्य पर चिपकाकर परिदान किया जाएगा 
  • डिक्री का सार ढोल बजाकर या प्रथागत तरीके से अधिभोगी को घोषित किया जाएगा। 

निष्पादन में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय 

कारागार में निरुद्ध किये जाने के विरुद्ध हेतुक दर्शित के लिये निर्णीत-ऋणी को अनुज्ञा देने की वैवेकिक शक्ति (नियम 37) 

  • संदाय न करने के लिये निर्णीत-ऋणी को गिरफ्तार करने से पूर्व: 
    • न्यायालय सिविल कारागार में प्रतिबद्धता के विरुद्ध कारण बताने के लिये उपस्थिति की आवश्यकता वाला नोटिस जारी करेगा। 
    • यदि न्यायालय को लगता है कि निर्णी-ऋणी फरार हो सकता है या निष्पादन में विलंब करने के लिये अधिकारिता छोड़ सकता है, तो नोटिस को समाप्त किया जा सकता है। 
    • यदि निर्णीत-ऋणी उपस्थित होने में असफल रहता है, तो डिक्रीदार के अनुरोध पर वारण्ट जारी किया जा सकता है। 

गिरफ्तारी के वारण्ट में निर्णीत-ऋणी के लाए जाने के लिये निदेश होगा  (नियम 38) 

  • प्रत्येक गिरफ्तारी वारण्ट में अधिकारी को निदेश दिया जाएगा कि: 
    • निर्णीत-ऋणी को सभी सुविधानुसार पूर्ण शीघ्रता से न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए 
    • जब तक कि आदेशित राशि, ब्याज और खर्चे का संदाय उपस्थिति से पूर्व न कर दिया जाए। 

जीवन-निर्वाह भत्ता (नियम 39)  

  • निर्णीत-ऋणी को अनावश्यक कठिनाई से बचाने के लिये: 
    • जब तक डिक्रीदार न्यायालय द्वारा निर्धारित निर्वाह भत्ते का संदाय नहीं करता, तब तक कोई गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। 
    • सिविल कारागार में भेजने के लिये, न्यायालय स्थापित पैमाने के अनुसार या निर्णीत-ऋणी की श्रेणी के अनुसार मासिक निर्वाह भत्ता निश्चित करेगा। 
    • डिक्रीदार को मासिक संदाय अग्रिम रूप से करना होगा। 
    • पहला संदाय चालू मास के शेष भाग की बात करता है। 
    • बाद के संदाय जेल अधिकारी को जाते हैं। 
    • संवितरित की राशि को वाद में संदाय का खर्चा माना जाता है, किंतु इन राशियों का संदाय करने में असफलता के लिये निर्णीत-ऋणी को कारागार में निरुद्ध नहीं किया जा सकता है। 

सूचना के आज्ञानुवर्तन में गिरफ़्तारी के पश्चात् निर्णीत-ऋणी के उपसंजात होने पर कार्यवाहियाँ (नियम 40) 

  • जब निर्णीत-ऋणी न्यायालय के समक्ष पेश होता है: 
    • न्यायालय डिक्रीदार को सुनेगा और निष्पादन आवेदन का समर्थन करने वाले साक्ष्य पर विचार करेगा। 
    • निर्णीत-ऋणी को सिविल कारागार में जाने के विरुद्ध कारण बताने का अवसर दिया जाता है। 
    • जांच लंबित रहने तक, न्यायालय निर्णीत-ऋणी को निरोध में रख सकता है या प्रतिभूति पर रिहा कर सकता है। 
    • निष्कर्ष पर, न्यायालय विधिक उपबंधों के अधीन निरोध का आदेश दे सकता है। 
    • न्यायालय निर्णीत-ऋणी को पंद्रह दिनों तक अभिरक्षा में रखकर या प्रतिभूति पर रिहा करके डिक्री को संतुष्ट करने का अवसर दे सकता है। 
    • छोड़े गए निर्णीत-ऋणी को पुन: गिरफ्तार किया जा सकता है। 

निष्कर्ष 

ऊपर उल्लिखित निष्पादन ढाँचा न्यायिक आदेशों के प्रभावी प्रवर्तन को सुनिश्चित करने और निर्णीत-ऋणी को मनमाने या अत्यधिक उपायों से बचाने के बीच एक सावधानीपूर्वक संतुलन को दर्शाता है। विधि विभिन्न प्रकार के आदेशों के लिये उपयुक्त निष्पादन की कई  रीतियाँ प्रदान करता है, साथ ही प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय भी प्रदान करता है जो पूरी प्रक्रिया में निष्पक्षता बनाए रखते हैं। 

जबकि विधिक न्यायालयों को विभिन्न प्रवर्तन तंत्रों के साथ सशक्त बनाता है, यह उन्हें प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के आधार पर निष्पादन को संशोधित करने के लिये विवेकाधीन अधिकार भी प्रदान करता है। यह विवेकाधिकार निष्पादन के अंतर्निहित उद्देश्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण है - न केवल अनुपालन के लिये आबद्ध करने के लिये, अपितु लोक नीति और मानवीय विचारों के अनुरूप तरीके से डिक्रीदार के लिये न्याय सुनिश्चित करने के लिये