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सिविल कानून

CPC का आदेश XII

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 20-Sep-2024

परिचय

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश XII में अभिस्वीकृति की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।

  • भारत में सिविल एवं आपराधिक दोनों मामलों के लिये अभिस्वीकृति एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया हैं।
  • अभिस्वीकृति ने मुकदमेबाजी की प्रक्रिया में कमी करने तथा मामलों के शीघ्र निपटान में सहायता की है।
  • न्यायालयों के पास अभिस्वीकृति के आधार पर डिक्री पारित करने की विवेकाधीन शक्ति है।

अभिस्वीकृति

  • CPC के अंतर्गत अभिस्वीकृति को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 15 के अंतर्गत अभिस्वीकृति को साक्षियों द्वारा दिये गए अभिकथन के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी मामले में किसी मुद्दे या प्रासंगिक तथ्य के विषय में अनुमान प्रदर्शित करता है।
  • इस धारा के अनुसार, अभिस्वीकृति एक दस्तावेज, मौखिक अभिकथन के रूप में हो सकती है या इलेक्ट्रॉनिक रूप में हो सकती है।

CPC का आदेश XII  

  • आदेश XII में अभिस्वीकृति के विषय में प्रावधानित किया गया है।
  • नियम 1: मामले की अभिस्वीकृति की सूचना:
    • किसी वाद का कोई भी पक्षकार अपने अभिकथन द्वारा या अन्यथा लिखित रूप में यह सूचना दे सकता है कि वह किसी अन्य पक्षकार के सम्पूर्ण मामले या उसके किसी भाग को सत्य मानता है।
  • नियम 2: दस्तावेज़ स्वीकार करने की सूचना:
    • कोई भी पक्षकार, सभी अपवादों को छोड़कर, नोटिस की तामील की तिथि से सात दिन के अंदर, दूसरे पक्षकार से किसी दस्तावेज को स्वीकार करने की मांग कर सकेगा; और ऐसी सूचना के पश्चात् स्वीकार करने से इंकार या उपेक्षा करने की दशा में, ऐसे किसी दस्तावेज को सिद्ध करने का खर्च उपेक्षा या इनकार करने वाले पक्षकार द्वारा दिया जाएगा, चाहे वाद का परिणाम कुछ भी हो, जब तक कि न्यायालय अन्यथा निर्देश न दे; और किसी दस्तावेज को सिद्ध करने का कोई खर्च तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि ऐसी सूचना न दे दी जाए, सिवाय उस स्थिति के जहाँ न्यायालय की राय में सूचना न देने से व्यय की बचत होती हो।
  • नियम 2A: दस्तावेजों को स्वीकार करने के लिये नोटिस की तामील के बाद अस्वीकार नहीं किये जाने पर उन्हें स्वीकार किया हुआ माना जाएगा:
    • खंड (1) में कहा गया है कि प्रत्येक दस्तावेज जिसे किसी पक्षकार से स्वीकार करने के लिये कहा जाता है, यदि उसे विशेष रूप से या आवश्यक निहितार्थ द्वारा अस्वीकार नहीं किया जाता है, या उस पक्षकार की दलील में या दस्तावेजों को स्वीकार करने के नोटिस के उत्तर में स्वीकार नहीं किया जाता है, तो उसे स्वीकार किया गया माना जाएगा, सिवाय किसी विकलांगता वाले व्यक्ति के विरुद्ध।
    • यह प्रावधान है कि न्यायालय अपने विवेकानुसार तथा ऐसे कारणों से, जो अभिलिखित किये जाएंगे, इस प्रकार स्वीकार किये गए किसी दस्तावेज को ऐसी अभिस्वीकृति के अतिरिक्त किसी अन्य तरीके से सिद्ध करने की अपेक्षा कर सकता है।
    • खंड (2) में कहा गया है कि जहाँ कोई पक्षकार दस्तावेजों को स्वीकार करने की सूचना की तामील के पश्चात अनुचित रूप से उपेक्षा करता है या दस्तावेज को स्वीकार करने से इनकार करता है, वहाँ न्यायालय उसे प्रतिकर के रूप में दूसरे पक्षकार को लागत का भुगतान करने का निर्देश दे सकता है।
  • नियम 3: नोटिस का प्रारूप:
    • दस्तावेजों को स्वीकार करने की सूचना परिशिष्ट C में फॉर्म संख्या 9 में दी जाएगी, जिसमें परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है।
  • नियम 3A: अभिस्वीकृति दर्ज करने की न्यायालय की शक्ति:
    • इस तथ्य के होते हुए भी कि नियम 2 के अधीन दस्तावेजों को स्वीकार करने की कोई सूचना नहीं दी गई है, न्यायालय अपने समक्ष कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम पर स्वप्रेरणा से किसी पक्षकार को कोई दस्तावेज स्वीकार करने के लिये कह सकेगा तथा ऐसी स्थिति में यह अभिलिखित करेगा कि क्या पक्षकार ऐसे दस्तावेज को स्वीकार करता है या अस्वीकार करता है या स्वीकार करने में उपेक्षा करता है।
  • नियम 4: कृत्य स्वीकार करने की सूचना:
    • कोई भी पक्षकार, सुनवाई के लिये नियत दिन से नौ दिन पूर्व किसी भी समय लिखित में नोटिस द्वारा किसी अन्य पक्षकार को केवल वाद के प्रयोजनों के लिये, ऐसे नोटिस में उल्लिखित किसी विशिष्ट तथ्य या तथ्यों को स्वीकार करने के लिये कह सकता है।
    • और ऐसे नोटिस की तामील के बाद छह दिनों के अंदर या न्यायालय द्वारा अनुमत ऐसे अतिरिक्त समय के अंदर उसे स्वीकार करने से इनकार या उपेक्षा की स्थिति में, ऐसे तथ्य या तथ्यों को सिद्ध करने की लागत उपेक्षा या इनकार करने वाले पक्षकार द्वारा भुगतान की जाएगी, चाहे वाद का परिणाम कुछ भी हो, जब तक कि न्यायालय अन्यथा निर्देश न दे।
    • यह उपबंधित है कि ऐसी सूचना के अनुसरण में की गई कोई अभिस्वीकृति केवल विशिष्ट वाद के प्रयोजनों के लिये ही की गई मानी जाएगी, न कि किसी अन्य अवसर पर पक्षकार के विरुद्ध या सूचना देने वाले पक्षकार से भिन्न किसी व्यक्ति के पक्ष में प्रयोग की जाने वाली स्वीकृति के रूप में:
  • नियम 5: अभिस्वीकृति का प्रारूप:
    • तथ्यों को स्वीकार करने की सूचना परिशिष्ट C में प्रपत्र संख्या 10 में होगी, तथा तथ्यों को स्वीकार करना परिशिष्ट C में प्रपत्र संख्या 11 में होगा, जिसमें परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है।
  • नियम 6: अभिस्वीकृति पर निर्णय:
    • खंड (1) में कहा गया है कि जहाँ तथ्यों की अभिस्वीकृति या तो अभिवचन में या अन्यथा, मौखिक रूप से या लिखित रूप में की गई है, वहाँ न्यायालय वाद के किसी भी चरण में, किसी भी पक्षकार के आवेदन पर या स्वप्रेरणा से और पक्षकारों के बीच किसी अन्य प्रश्न के निर्धारण की प्रतीक्षा किये बिना, ऐसी अभिस्वीकृति को ध्यान में रखते हुए ऐसा आदेश दे सकता है या ऐसा निर्णय दे सकता है, जैसा वह उचित समझे।
    • खंड (2) में कहा गया है कि जब कभी उपनियम (1) के अधीन निर्णय सुनाया जाता है, तो निर्णय के अनुसार डिक्री तैयार की जाएगी तथा डिक्री पर वह तिथि अंकित होगी, जिस तिथि को निर्णय दिया गया था।
  • नियम 7: शपथ पत्र पर हस्ताक्षर:
    • दस्तावेजों या तथ्यों को स्वीकार करने के लिये किसी नोटिस के अनुसरण में की गई किसी भी अभिस्वीकृति पर अधिवक्ता या उसके क्लर्क का सम्यक् हस्ताक्षर वाला शपथपत्र, ऐसी अभिस्वीकृति का पर्याप्त साक्ष्य होगा, यदि उसका साक्ष्य अपेक्षित हो।
  • नियम 8: दस्तावेज प्रस्तुत करने का नोटिस:
    • दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिये नोटिस परिशिष्ट C में फॉर्म संख्या 12 में होगा, जिसमें परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन हो सकते हैं।
    • प्रस्तुत करने के लिये किसी नोटिस की तामील एवं उसे तामील करने के समय के विषय में अधिवक्ता या उसके क्लर्क का शपथपत्र, प्रस्तुत करने के लिये नोटिस की एक प्रति के साथ, सभी मामलों में नोटिस की तामील और उसे तामील करने के समय का पर्याप्त साक्ष्य होगा।
  • नियम 9: लागत:
    • यदि ऐसे विनिर्दिष्ट दस्तावेजों को स्वीकार करने या प्रस्तुत करने के लिये नोटिस दिया जाता है जो आवश्यक नहीं हैं, तो इससे होने वाली लागत का वहन नोटिस देने वाले पक्ष द्वारा किया जाएगा।

निष्कर्ष

CPC के आदेश XII के अंतर्गत पारित आदेश एवं आदेश मामले की योग्यता के आधार पर होना चाहिये। इस आदेश का उद्देश्य मामलों का शीघ्र निपटान करना है। त्वरित विचारण के मामले में न्याय से समझौता नहीं किया जाना चाहिये तथा न्यायाधीशों को किये गए संस्वीकृति की सूक्ष्मता से जाँच करनी चाहिये।