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सिविल कानून

CPC के तहत प्रतिनिधि वाद

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 21-Nov-2024

परिचय

प्रतिनिधि वाद एक कानूनी प्रावधान होता है जो एक या एक से अधिक व्यक्तियों को समान हितों या शिकायतों वाले लोगों के एक बड़े समूह की ओर से वाद दायर करने में सक्षम बनाता है।

  • यह तंत्र विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी है जहाँ वादी की संख्या अधिक होती है, जिससे व्यक्तिगत वाद अव्यावहारिक हो जाता है।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) मुख्य रूप से आदेश I, नियम 8 के तहत प्रतिनिधि वादों को नियंत्रित करने के लिये विशिष्ट प्रावधान प्रदान करती है।

CPC का आदेश I, नियम 8

CPC के आदेश I, नियम 8 में प्रतिनिधि वाद दायर करने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।

  • वाद दायर करने की शर्तें:
    • प्रतिनिधि वाद तब दायर किया जा सकता है जब किसी वाद में समान हित रखने वाले अनेक व्यक्ति हों।
    • यह वाद सभी हितधारक पक्षकारों की ओर से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा दायर किया जा सकता है।
  • नोटिस की आवश्यकता:
    • न्यायालय यह निर्देश दे सकता है कि मामले में रुचि रखने वाले सभी व्यक्तियों को वादी के व्यय पर वाद की सूचना दी जाए।
    • इससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी प्रभावित पक्षकारों को सूचित किया जाए और वे कार्यवाही में भाग ले सकें।
  • बाध्यकारी निर्णय:
    • प्रतिनिधि वाद में निर्णय प्रतिनिधित्व करने वाले सभी व्यक्तियों पर बाध्यकारी होता है, बशर्ते कि वाद में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व किया गया हो।
    • यह निर्धारित करने के उद्देश्य से कि क्या वाद करने वाले या उन पर वाद चलाने वाले या बचाव करने वाले व्यक्तियों का एक वाद में समान हित होता है, यह स्थापित करना आवश्यक नहीं होता है कि ऐसे व्यक्तियों का कार्रवाई का वही कारण है जो उस व्यक्ति का है जिसकी ओर से या जिसके लाभ के लिये वे वाद चलाते हैं या उन पर वाद चलाया जाता है या वाद का बचाव करते हैं।

प्रतिनिधि वादों का उद्देश्य

  • प्रतिनिधि वादों की अनुमति देने का प्राथमिक उद्देश्य न्यायिक दक्षता को बढ़ावा देना और वादों की बहुलता से बचना है। यह निम्नलिखित कार्य करता है:
    • समान दावों को एकीकृत करके न्यायालयों पर भार कम करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि समान हितों वाले सभी व्यक्तियों का कानूनी कार्यवाही में प्रतिनिधित्व हो।
    • शिकायतों के सामूहिक निवारण के लिये एक तंत्र प्रदान करना।

प्रतिनिधि वाद दायर करने के लिये आवश्यक तत्त्व

गंगाविष्णु बनाम नाथूलाल (1955) और कुमारवेलु बनाम रामास्वामी (1933) मामले में उच्चतम न्यायालय ने प्रतिनिधि वाद दायर करने के लिये निम्नानुसार दिशानिर्देश निर्धारित किये:

  • सामान्य हित:
    • यह महत्त्वपूर्ण है कि प्रतिनिधित्व करने वाले पक्षकार वाद के विषय-वस्तु में समान रुचि साझा करें।
    • यह समानता वाद की प्रतिनिधि प्रकृति का आधार होती है।
  • पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व:
    • प्रतिनिधि वादी को सभी संबंधित पक्षकारों के हितों का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्त्व करने में सक्षम होना चाहिये।
    • यदि यह पाया जाता है कि प्रतिनिधित्त्व अपर्याप्त है, तो न्यायालय वाद खारिज कर सकता है।
    • प्रतिनिधि वाद बनाने के लिये कई पक्षकार होने चाहिये।
  • सीमाएँ:
    • प्रतिनिधि वादों पर कुछ सीमाएँ लागू होती हैं, जिसमें यह आवश्यकता भी शामिल होती है कि वादों को निर्धारित सीमा अवधि के भीतर दायर किया जाना चाहिये।
    • इसे न्यायालय की अनुमति या निर्देश के साथ दायर किया जाना चाहिये।
    • प्रतिनिधि वादों में पक्षकारों को विधिवत नोटिस जारी किया जाना चाहिये।

प्रतिनिधि वाद और पूर्व न्याय (रेस जूडीकेटा)

  • CPC की धारा 11 के स्पष्टीकरण VI में कहा गया है कि जहाँ किसी सामान्य निजी या सार्वजनिक अधिकार के संबंध में सद्भावनापूर्ण वाद दायर किया जाता है, ऐसे वाद का निर्णय उस अधिकार में हित रखने वाले सभी व्यक्तियों पर रेस जूडीकेटा के रूप में कार्य करेगा।
  • स्पष्टीकरण VI के अंतर्गत किसी निर्णय को रेस जूडीकेटा के रूप में संचालित करने से पहले निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिये:
    • एक या एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपने लिये तथा वाद में स्पष्ट रूप से नामित न किये गए अन्य व्यक्तियों के लिये समान रूप से अधिकार का दावा किया जाना चाहिये।
    • वाद सद्भावनापूर्वक तथा सभी संबंधित पक्षकारों की ओर से चलाया जाना चाहिये।
    • यदि मुकदमा CPC के आदेश 1 नियम 8 के अंतर्गत है, तो उसमें निर्धारित सभी शर्तों का सख्ती से अनुपालन किया जाना चाहिये।

प्रतिनिधि वाद में समझौता

  • आदेश XXII, नियम 3B में कहा गया है कि न्यायालय की अनुमति के बिना किसी प्रतिनिधि वाद में कोई करार या समझौता नहीं किया जाएगा, क्योंकि -
    • प्रतिनिधि वाद में कोई भी करार या समझौता कार्यवाही में अभिलिखित न्यायालय की अनुमति के बिना नहीं किया जाएगा; और अभिलिखित न्यायालय की अनुमति के बिना किया गया ऐसा कोई भी करार या समझौता शून्य होगा।
    • ऐसी अनुमति प्रदान करने से पहले, न्यायालय ऐसे व्यक्तियों को, जो उसे वाद में हितबद्ध प्रतीत होते हैं, ऐसी रीति से सूचना देगा, जैसा वह ठीक समझे।

निष्कर्ष

CPC के तहत प्रतिनिधि वाद सामूहिक कानूनी कार्रवाई के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करते हैं, जिससे साझा हितों वाले व्यक्तियों को कुशलतापूर्वक न्याय पाने की अनुमति मिलती है। प्रतिनिधि वादों से संबंधित प्रावधानों और प्रक्रियाओं को समझकर, पक्षकार कानूनी परिदृश्य को प्रभावी ढंग से नेविगेट कर सकते हैं और सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके अधिकारों की रक्षा की जाए। यह तंत्र न केवल न्यायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करता है बल्कि समान चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों के बीच समुदाय की भावना को भी बढ़ावा देता है।