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सांविधानिक विधि
103वाँ संविधान संशोधन अधिनियम
« »06-Aug-2024
परिचय:
103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 ने समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण की व्यवस्था की गई।
- इस अधिनियम द्वारा भारत के संविधान, 1950 (COI) में "नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग" शब्द को शामिल किया गया था।
संशोधन का विधायी इतिहास
- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने लोकसभा में संविधान (124वाँ संशोधन) विधेयक, 2019 प्रस्तुत किया।
- लोकसभा में 323 सदस्यों ने पक्ष में मतदान कर विधेयक पारित किया।
- इसके बाद इसे राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया, जिसमें 165 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया।
- संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019 को 12 जनवरी, 2019 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई तथा यह 14 जनवरी, 2019 को लागू हुआ।
103वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तुत संशोधन
- 103वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से निम्नलिखित अनुच्छेद जोड़े गए हैं:
- अनुच्छेद 15(6) जोड़ा गया जिसमें यह प्रावधान किया गया कि इस अनुच्छेद या अनुच्छेद 19(1)(g) या अनुच्छेद 29(2) का कोई भी उपबंध राज्य को ऐसा करने से नहीं रोक सकती।
- खंड (4) एवं (5) में उल्लिखित वर्गों के अतिरिक्त नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों की उन्नति के लिये कोई विशेष उपबंध तथा
- खंड (4) एवं (5) में उल्लिखित वर्गों के अतिरिक्त नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग की उन्नति के लिये कोई विशेष प्रावधान, जहाँ तक ऐसे विशेष प्रावधान निजी शैक्षणिक संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में उनके प्रवेश से संबंधित हैं, चाहे वे राज्य द्वारा सहायता प्राप्त हों या नहीं, अनुच्छेद 30 के खंड (1) में निर्दिष्ट अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अतिरिक्त, जो आरक्षण के मामले में मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा तथा प्रत्येक श्रेणी में कुल सीटों के अधिकतम दस प्रतिशत के अधीन होगा।
- स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद एवं अनुच्छेद 16 के प्रयोजनों के लिये, "आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग" वे होंगे जिन्हें राज्य द्वारा समय-समय पर पारिवारिक आय एवं आर्थिक असुविधा के अन्य संकेतकों के आधार पर अधिसूचित किया जा सकेगा।'
- अनुच्छेद 16 (6) जोड़ा गया जिसमें यह प्रावधान किया गया कि इस अनुच्छेद का कोई उपबंध राज्य को विद्यमान आरक्षण के अतिरिक्त तथा प्रत्येक श्रेणी में पदों के अधिकतम दस प्रतिशत के अधीन, खंड (4) में उल्लिखित वर्गों के अतिरिक्त नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये कोई प्रावधान करने से नहीं रोकेगी।
- अनुच्छेद 15(6) जोड़ा गया जिसमें यह प्रावधान किया गया कि इस अनुच्छेद या अनुच्छेद 19(1)(g) या अनुच्छेद 29(2) का कोई भी उपबंध राज्य को ऐसा करने से नहीं रोक सकती।
आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग का लाभ का पात्र कौन हो सकता है?
- वे व्यक्ति जिनकी वार्षिक सकल घरेलू आय 8 लाख रुपए तक है।
- निम्नलिखित लोग आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते हैं:
- 5 एकड़ से ज़्यादा कृषि भूमि के स्वामी परिवार।
- 1000 वर्ग फीट से ज़्यादा का घर।
- अधिसूचित नगरपालिका क्षेत्र में 100 गज से ज़्यादा का प्लॉट।
- गैर-अधिसूचित नगरपालिका क्षेत्र में 200 गज से ज़्यादा का प्लॉट।
- जिन समुदायों को पहले से ही आरक्षण प्राप्त है, जैसे- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, उन्हें भी इससे बाहर रखा गया है।
103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिकता
- जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022) के मामले में मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने इस संशोधन की संवैधानिक वैधता को यथावत रखा।
- आरक्षण को 3:2 बहुमत से यथावत रखा गया।
- जबकि न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी एवं न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने 103वें संशोधन को यथावत रखा। न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने अल्पमत की राय लिखी तथा मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने अल्पमत के दृष्टिकोण से सहमति जताई।
- यहाँ विचारण करने के लिये तीन मुख्य मुद्दे थे:
- क्या संशोधन ने संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन किया है?
- क्या संशोधन SC/ST/OBC श्रेणियों के गरीबों को EWS कोटे से बाहर रखने के लिये मूल ढाँचे का उल्लंघन करता है?
- क्या यह 50% की अधिकतम सीमा का उल्लंघन करने के लिये मूल ढाँचे का उल्लंघन करता है?
- न्यायालय ने कहा कि यदि संशोधन बुनियादी ढाँचे का उल्लंघन करता है तो कोई भी ऐसा विधिक सूत्र या सिद्धांत नहीं हो सकता जो इस प्रश्न का उत्तर दे सके। न्यायालय ने कहा कि संविधान में ‘आर्थिक’ शब्द का प्रयोग 30 बार किया गया है।
- इस प्रकार, वास्तविक एवं मौलिक समानता के सभी संदर्भों में आर्थिक न्याय की अवधारणा ने समान ध्यान प्राप्त कर लिया है।
- न्यायालय ने माना कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 एवं 16 में निहित प्रावधान, जो सकारात्मक कार्यवाही के माध्यम से आरक्षण प्रदान करते हैं, समानता के सामान्य नियम के अपवाद होने के कारण, एक बुनियादी विशेषता के रूप में नहीं माना जा सकता है।
- दूसरे मुद्दे के संबंध में न्यायालय ने माना कि कुछ वर्गों को पहले से ही आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है। संसद ने अपनी समझदारी से उस वर्ग को एक और लाभ नहीं दिया जो पहले से ही आरक्षण का लाभ उठा रहा था।
- न्यायालय ने माना कि SC/ST/OBC जिनके लिये अनुच्छेद 15(4), 15(5) एवं 16(4) के अंतर्गत विशेष प्रावधान किये गए हैं, वे सामान्य या अनारक्षित श्रेणी से अलग एक अलग श्रेणी बनाते हैं। उन्हें सामान्य एवं अनारक्षित श्रेणी के नागरिकों के तुल्य नहीं माना जा सकता।
- न्यायालय ने आगे कहा कि मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त 10% तक EWS आरक्षण से संविधान के मूल ढाँचे को क्षति नहीं होती है। 50% की सीमा अनम्य नहीं है तथा किसी भी मामले में केवल अनुच्छेद 15(4), 15(5) एवं 16(4) द्वारा परिकल्पित आरक्षण पर लागू होती है।
निर्णय के विरुद्ध समीक्षा याचिका
- सोसाइटी फॉर द राइट्स ऑफ बैकवर्ड कम्युनिटीज़ बनाम जनहित अभियान एवं अन्य (2023) मामले में उच्चतम न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर की गई थी।
- उच्चतम न्यायालय ने समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया।
- समीक्षा याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि रिकॉर्ड को देखने पर कोई त्रुटि स्पष्ट नहीं थी तथा इसलिये सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश XLVII नियम 1 के अंतर्गत समीक्षा का कोई मामला नहीं बनता है।
निष्कर्ष:
जब संविधान लागू हुआ था, तब आरक्षण देने के लिये आर्थिक मानदंड कभी भी एकमात्र आधार नहीं था। हालाँकि 103वें संशोधन अधिनियम ने आरक्षण देने के लिये इस मानदंड को प्रस्तुत किया। इसे न्यायालय ने भी यथावत रखा है। इस प्रकार, यह संशोधन संविधान की भावना के अनुरूप है तथा संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं करता है।