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सांविधानिक विधि
भारत का महान्यायवादी
« »05-Feb-2024
परिचय
भारत के महान्यायवादी को देश का सर्वोच्च विधि अधिकारी माना जाता है। भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 76 में भारत के महान्यायवादी के संबंध में प्रावधान हैं।
COI का अनुच्छेद 76
इस अनुच्छेद में कहा गया है कि -
(1) राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये अर्हत किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा |
(2) महान्यायवादी का यह कर्त्तव्य होगा कि वह भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करे जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करें या सौंपे तथा उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गए हों |
(3) महान्यायवादी को अपने कर्त्तव्यों के पालन में भारत के राज्य क्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा |
(4) महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति अवधारित करे |
नियुक्ति एवं कार्यकाल
- महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये योग्य होना चाहिये।
- दूसरे शब्दों में, वह भारत का नागरिक होना चाहिये और राष्ट्रपति की राय में, उसे पाँच वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या दस वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय का वकील या एक प्रख्यात न्यायविद् होना चाहिये।
- महान्यायवादी के कार्यालय का समय COI द्वारा तय नहीं किया जाता है। वह राष्ट्रपति की मर्ज़ी तक पद पर बना रहता है।
- COI में उसे हटाने की प्रक्रिया और आधार शामिल नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है।
- वह राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपकर भी अपना पद छोड़ सकता है।
- महान्यायवादी का पारिश्रमिक COI द्वारा तय नहीं किया जाता है। उसे वैसा पारिश्रमिक मिलता है जैसा राष्ट्रपति निर्धारित कर सकता है।
महान्यायवादी के कर्त्तव्य
- महान्यायवादी के कर्त्तव्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- ऐसे विधिक मामलों पर भारत सरकार को सलाह देना, जो राष्ट्रपति द्वारा उसे संदर्भित किये जाते हैं।
- विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करना जो राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंपे गए हैं।
- COI या किसी अन्य विधि द्वारा उसे प्रदत्त कार्यों का निर्वहन करना।
- उच्चतम न्यायालय में उन सभी मामलों में भारत सरकार की ओर से उपस्थित होना जिनमें भारत सरकार का संबंध हो।
- COI के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय में किये गए किसी भी संदर्भ में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
- भारत सरकार से संबंधित किसी भी मामले में किसी भी उच्च न्यायालय में (जब भारत सरकार द्वारा आवश्यक हो) उपस्थित होना।
महान्यायवादी के अधिकार
- महान्यायवादी के अधिकारों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों के पालन में, महान्यायवादी को भारत के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार है।
- उसे संसद के दोनों सदनों या उनकी संयुक्त बैठक और संसद की किसी भी समिति की कार्यवाही में वोट देने के अधिकार के बिना, बोलने तथा भाग लेने का अधिकार है, जिसका उसे सदस्य नामित किया जा सकता है।
- उसे वे सभी विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ प्राप्त होती हैं जो एक संसद सदस्य को उपलब्ध होती हैं।
महान्यायवादी की सीमाएँ
- किसी भी जटिलता और कर्त्तव्य के टकराव से बचने के लिये महान्यायवादी पर निम्नलिखित सीमाएँ लगाई गई हैं:
- उसे भारत सरकार के विरुद्ध सलाह या संक्षिप्त जानकारी नहीं देनी चाहिये।
- उसे उन मामलों में सलाह नहीं देनी चाहिये या संक्षिप्त जानकारी नहीं देनी चाहिये जिनमें उसे भारत सरकार को सलाह देने या उसकी ओर से पेश होने के लिये कहा जाता है।
- उसे भारत सरकार की अनुमति के बिना आपराधिक मुकदमों में अभियुक्त व्यक्तियों की प्रतिरक्षा नहीं करनी चाहिये।
- उसे भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी कंपनी या निगम में निदेशक के रूप में नियुक्ति स्वीकार नहीं करनी चाहिये।
- उसे भारत सरकार के किसी भी मंत्रालय या विभाग या किसी वैधानिक संगठन या किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को सलाह नहीं देनी चाहिये जब तक कि इस संबंध में प्रस्ताव या संदर्भ विधि एवं न्याय मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग के माध्यम से प्राप्त न हो।