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सांविधानिक विधि
उपचारात्मक याचिका
« »13-Oct-2023
परिचय:
उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) की अवधारणा हमारे देश में कानून के विषय में नई है। उपचारात्मक याचिकाएँ अंतिम उपाय है जहाँ सर्वोच्च न्यायालय खारिज की गई समीक्षा याचिका पर पुनर्विचार कर सकता है।
उपचारात्मक याचिका (Curative Petition):
- The concept of curative petition is contained in Article 137 of the Constitution of India, 1950 (COI). It deals with the review of judgments or orders by the Supreme Court. It states that -
- उपचारात्मक याचिका की अवधारणा भारत के संविधान, 1950 (Constitution of India- COI) के अनुच्छेद 137 में निहित है। यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णयों या आदेशों की समीक्षा से संबंधित है। यह निर्दिष्ट करता है कि -
- संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों या अनुच्छेद 145 के तहत बनाए गए किसी भी नियम के अधीन, सर्वोच्च न्यायालय को उसके द्वारा सुनाए गए किसी भी निर्णय या दिये गए आदेश की समीक्षा करने की शक्ति होगी।
- अंतिम दोषसिद्धि के खिलाफ समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद उपचारात्मक याचिका दायर की जा सकती है।
- इन याचिकाओं की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश और समीक्षा याचिका को खारिज करने वाले न्यायाधीशों सहित सर्वोच्च न्यायालय के शीर्ष तीन न्यायाधीशों द्वारा की जाती है।
- न्यायालय ऐसी याचिकाओं पर केवल दुर्लभ परिस्थितियों में ही विचार करती है ताकि निरर्थक मुकदमेबाजी को रोका जा सके।
- यह शिकायतों के निवारण के लिये उपलब्ध अंतिम विकल्प है।
उपचारात्मक याचिका की शुरुआत
- उपचारात्मक याचिका की अवधारणा रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा और अन्य (2002) के मामले में उत्पन्न हुई।
- इस मामले में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने प्रश्न यह था कि क्या कोई पीड़ित व्यक्ति समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम फैसले/आदेश के खिलाफ किसी राहत का हकदार है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की गई समीक्षा याचिकाओं पर पुनर्विचार करने के लिये उपचारात्मक याचिका को अंतिम उपाय के रूप में मान्यता दी और अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपने निर्णयों पर पुनर्विचार कर सकता है।
उपचारात्मक याचिका के उद्देश्य
- सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय में न्याय देने के सन्दर्भ में हुई घोर त्रुटी को सुधारने के लिये उपचारात्मक याचिका की अवधारणा को मान्यता दी गई थी जिसे दोबारा चुनौती नहीं दी जा सकती।
- इसका उद्देश्य कानून की प्रक्रियाओं के किसी भी दुरुपयोग को कम करना और न्याय के दुरुपयोग को रोकना है।
उपचारात्मक याचिका की शर्तें
उपचारात्मक याचिकाओं पर विचार करने के उद्देश्य से, सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित विशिष्ट शर्तें रखी हैं:
- याचिकाकर्त्ता को यह स्थापित करना होगा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है और इस निर्णय से उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- याचिका में विशेष रूप से कहा जाएगा कि उल्लिखित आधार समीक्षा याचिका में लिये गए थे और इसे परिचालन द्वारा खारिज कर दिया गया था।
- एक उपचारात्मक याचिका को पहले सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों और यदि उपलब्ध हो तो संबंधित निर्णय पारित करने वाले न्यायाधीशों की पीठ को प्रसारित किया जाना चाहिये।
- यदि अधिकांश न्यायाधीश यह निष्कर्ष निकालते हैं कि मामले को सुनवाई की आवश्यकता है तो इसे उसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाता है।
- उपचारात्मक याचिका के किसी भी चरण में पीठ किसी वरिष्ठ परामर्शदाता को एमिकस क्यूरी (न्यायालय के मित्र) के रूप में सहायता करने के लिये कह सकती है।
- उपचारात्मक याचिका पर आमतौर पर न्यायाधीशों द्वारा चैंबर में निर्णय लिया जाता है, जब तक कि ओपन-कोर्ट में सुनवाई के लिये किसी विशिष्ट अनुरोध की अनुमति नहीं दी जाती है।
- यदि याचिका में योग्यता नहीं है, तो न्यायालय याचिकाकर्त्ता पर अनुकरणीय ज़ुर्माना लगा सकती है।
निर्णय विधि
- भारत संघ बनाम यूनियन कार्बाइड (2023) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आरोग्यकारी क्षेत्राधिकार के दायरे को सीमित कर दिया और माना कि इस पर तब विचार किया जा सकता है जब न्याय में भारी गड़बड़ी, धोखाधड़ी या भौतिक तथ्यों का दमन हो।
निष्कर्ष
भारतीय कानूनी प्रणाली में उपचारात्मक याचिका एक नवीन विचार और न्यायिक नवाचार है। यह सुनवाई का एक तरीका प्रदान करता है और न्यायालय में प्रतिनिधित्व का उचित मौका देता है। यह पालन की जाने वाली प्रक्रिया या फैसला सुनाने में उत्पन्न होने वाली किसी भी भ्रांति को रोकता है।