वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
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सांविधानिक विधि

वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

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 21-Nov-2023

परिचय:

  • वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित है।
  • वाक् स्वतंत्रता का सार सरकार द्वारा प्रतिशोध, प्रतिबंध या निरोध के भय के बिना स्वतंत्र रूप से सोचने एवं बोलने तथा प्रकाशनों और सार्वजनिक प्रवचन के माध्यम से दूसरों से जानकारी प्राप्त करने की क्षमता से है।

अनुच्छेद 19(1)(a), COI:

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में कहा गया है कि देश के सभी नागरिकों के पास वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा।
    • इस अनुच्छेद के पीछे का दर्शन संविधान की प्रस्तावना में निहित है, जहाँ सभी नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का संकल्प दिया गया है।
  • अनुच्छेद 19(1)(a) में निम्नलिखित पहलू शामिल हैं:
    • प्रेस की स्वतंत्रता
    • व्यावसायिक वाक् की स्वतंत्रता
    • प्रसारण का अधिकार
    • सूचना का अधिकार
    • निंदा/आलोचना करने का अधिकार
    • राष्ट्र की सीमाओं से परे अभिव्यक्ति का अधिकार
    • न बोलने का अधिकार या चुप रहने का अधिकार

अनुच्छेद 19(1)(a), COI के आवश्यक तत्त्व:

  • यह अधिकार केवल भारत के नागरिक को ही उपलब्ध है, विदेशी नागरिकों को नहीं।
  • इसमें किसी भी मुद्दे पर किसी भी माध्यम से अपने विचार एवं राय व्यक्त करने का अधिकार शामिल है, जैसे मौखिक शब्दों से लेखन, मुद्रण, चित्र, चलचित्र आदि से।
  • हालाँकि यह अधिकार पूर्ण नहीं है तथा यह सरकार को उचित प्रतिबंध लगाने हेतु कानून बनाने की अनुमति देता है।

अनुच्छेद 19(2), COI:

  • हालाँकि इस अधिकार का प्रयोग अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए गए कुछ उद्देश्यों के लिये उचित प्रतिबंधों के अधीन है।
  • अनुच्छेद 19(2) में कहा गया है कि खंड (1) के उपखंड (a) का कोई कथन उक्त उपखंड द्वारा दिये गए अधिकार के प्रयोग पर (भारत की प्रभुता और अखंडता) राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमानना, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन, जहाँ तक कोई विधि विद्यमान अधिरोपित करती है, तक उसके प्रवर्तन को प्रभावित करेगी।

अनुच्छेद 19(1)(a), COI का महत्त्व:

  • सामाजिक कल्याण: यह बिना किसी बाधा के राय एवं विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता तथा विशेष रूप से सज़ा के भय के बिना किसी विशेष समाज के विकास में प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • आत्म-विकास: वाक् स्वतंत्रता प्रत्येक व्यक्ति के आत्म-विकास तथा संतुष्टि के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है। प्रतिबंध हमारे व्यक्तित्त्व और उसके विकास को रोकते हैं।
  • लोकतांत्रिक मूल्य: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक सरकार का आधार है। यह स्वतंत्रता लोकतांत्रिक प्रक्रिया के समुचित कार्य के लिये आवश्यक है क्योंकि यह लोगों को लोकतंत्र में सरकार की आलोचना करने की अनुमति देती है, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मुद्दों पर स्वतंत्र चर्चा के माध्यम बनाती है।
  • बहुलवाद सुनिश्चित करना: वाक् स्वतंत्रता बहुलवाद को प्रतिबिंबित एवं सुदृढ़ करती है, यह सुनिश्चित करती है कि विविधता मान्य है तथा एक विशेष जीवन शैली का पालन करने वालों के आत्म-सम्मान को बढ़ावा देती है।

निर्णयज़ विधि:

  • रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950) में: उच्चतम न्यायालय (SC) ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव पर आधारित है।
  • अब्बास बनाम भारत संघ (1970) में: उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्री-सेंसरशिप सहित फिल्मों की सेंसरशिप भारत में संवैधानिक रूप से वैध थी क्योंकि यह COI के अनुच्छेद 19(1)(a) पर लगाया गया एक उचित प्रतिबंध था।
  • बेनेट कोलमैन एंड कंपनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1972): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने न्यूज़प्रिंट कंट्रोल ऑर्डर की वैधता को खारिज़ कर दिया, जिसने पृष्ठों की अधिकतम संख्या तय की थी, इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने सामान्य रूप से पूर्व सेंसरशिप एवं सेंसरशिप के बीच अंतर को स्वीकार नहीं किया और दोनों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) के भीतर उचित प्रतिबंधों के मानकों द्वारा शासित माना।
  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) मामले में: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं है।
  • इंडियन एक्सप्रेस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1985) में: उच्चतम न्यायालय ने माना कि प्रेस लोकतांत्रिक मशीनरी में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। न्यायालयों का कर्तव्य है कि वे प्रेस की स्वतंत्रता को बरकरार रखें तथा उस स्वतंत्रता को बाधित करने वाले सभी कानूनों एवं प्रशासनिक कार्रवाइयों को अमान्य कर दें।
  • बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य (1986): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि बोलने के अधिकार में चुप रहने या कोई शब्द नहीं बोलने का अधिकार भी शामिल है।
  • भारत संघ बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स: इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि एकपक्षीय जानकारी, दुष्प्रचार, गलत सूचना तथा गैर-सूचना, सभी समान रूप से एक अज्ञानी नागरिक वर्ग का निर्माण करते हैं जो लोकतंत्र को निरर्थक बना देता है। वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में जानकारी प्रदान करने तथा प्राप्त करने का अधिकार शामिल है जिसके अंतर्गत राय रखने की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।