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सांविधानिक विधि
न्यायपालिका
« »26-Sep-2023
परिचय-
- भारतीय न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका से पृथक् एक स्वतंत्र निकाय है।
- लोकतंत्र के तीन अंगों में से न्यायपालिका ही विधायिका द्वारा निर्मित तथा कार्यपालिका द्वारा निष्पादित कानूनों की व्याख्या करने के लिये उत्तरदायी होती है।
- वैध तरीके से विवाद का समाधान न्यायपालिका का मूल सिद्धांत है।
- कई निर्णयज़ विधियों के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ है, कि न्यायपालिका भारत के संविधान, 1950 (COI) की संरक्षक है।
- यह प्रणाली भारत में ब्रिटिश कालीन औपनिवेशिक प्रणाली से अपनाई गई या विरासत में मिली है।
- न्यायपालिका का प्राथमिक कार्य न्याय प्रदान करना है।
ऐतिहासिक विवरण
- भारत में कानूनी व्यवस्था धार्मिक ग्रंथ मनुस्मृति, श्रुति और स्मृति द्वारा संचालित की जाती थी।
- वर्ष 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट को कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय के निर्माण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम माना जाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय को बाद में लेटर्स पेटेंट एक्ट, 1774 द्वारा अभिलेखों का न्यायालय (कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड) घोषित किया गया।
- 18वीं सदीं के दौरान मद्रास और बॉम्बे में सर्वोच्च न्यायालय स्थापित किये गए।
- उच्च न्यायालयों की स्थापना भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 द्वारा की गई थी, जिसने बाद में कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित प्रेसीडेंसी टाउन और सर्वोच्च न्यायालय (SC) में सदर अदालतों को समाप्त कर दिया।
- बाद में, SC की स्थापना हुई और इसकी पहली बैठक 28 जनवरी 1950 को हुई।
न्यायपालिका की विशेषताएँ
1. विश्व की सबसे पुरानी न्यायिक प्रणाली में से एक
- भारत की न्यायिक प्रणाली विश्व की सबसे प्रमुख और सबसे पुरानी न्यायिक प्रणालियों में से एक है।
- देश की न्यायिक संरचना का उपयोग देश के कानूनों की व्याख्या करने और उन्हें लागू करने के लिये किया जाता है। यह देश के लिये वैधानिक कानून का निर्माण नहीं करता है।
2. एकल एवं एकीकृत न्यायिक प्रणाली
- भारत में एक एकीकृत एवं अद्वितीय न्यायिक प्रणाली है।
- सर्वोच्च न्यायालय एकीकृत पदानुक्रम में शीर्ष पर है।
- सर्वोच्च न्यायालय के बाद राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय हैं।
- उच्च न्यायालयों के अंतर्गत, ज़िला न्यायालयों और निचले न्यायालयों से मिलकर एक सुव्यवस्थित पदानुक्रम है।
3. न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- इंग्लैंड में सांविधानिक प्रणाली संसदीय संप्रभुता की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें शक्ति पृथक्करण को मान्यता नहीं दी गई है।
- ऐसा आंशिक रूप से भारत में भी होता है, क्योंकि भारत में संसदीय और सांविधानिक संप्रभुता के सिद्धांत मिश्रित हैं।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता से तात्पर्य न्यायाधीशों द्वारा निष्पक्ष तरीके से अर्थात् किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त होकर अपने कार्यों को करने की स्वतंत्रता से है।
4. न्यायिक सक्रियता
- न्यायिक सक्रियता शब्द की उत्पत्ति संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई।
- न्यायिक सक्रियता की अवधारणा विगत कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ी है, जिसमें सरकार के विधायी और कार्यकारी अंगों के अनियंत्रित व्यवहार के संदर्भ में भारतीय लोगों के बीच एक बड़ी वैधता हासिल की।
5. न्यायिक समीक्षा
- भारत में संवैधानिक समीक्षा की शक्ति संविधान के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में निहित है।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक समीक्षा शक्ति को संविधान के मूल ढाँचे में स्पष्ट किया है, जिसका अधिग्रहण संवैधानिक संशोधन के माध्यम से नहीं किया जा सकता है।
- यदि न्यायिक समीक्षा के दौरान, राज्य सरकार या केंद्र सरकार का कोई विधायी अधिनियम या कार्यकारी आदेश संविधान का उल्लंघन करता है तो उसे अमान्य घोषित कर दिया जाएगा।
- ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1950), मामले में यह माना गया कि यह संविधान जो सर्वोच्च है, इसमें एक वैधानिक विधि को वैध होने के लिये संवैधानिक आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिये। यह न्यायपालिका को तय करना है कि कोई अधिनियम सांविधानिक है या नहीं।
6. संविधान के व्याख्याकार
- भारत का संविधान (COI) विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
- सर्वोच्च न्यायालय COI के व्याख्याकार के रूप में कार्य करता है।
- यह संविधान की व्याख्या करने वाली सर्वोच्च संस्था है।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सभी निचले न्यायालयों पर बाध्यकारी होगा।
7. मौलिक अधिकारों के संरक्षक
- COI के भाग III में मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित किया गया है।
- COI द्वारा मान्यता प्राप्त छह मौलिक अधिकार हैं।
- वे हैं समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
- भारतीय न्यायपालिका लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता के संरक्षक के रूप में कार्य करती है।
8. जनहित याचिका प्रणाली
- जनहित याचिका की अवधारणा भारत में वर्ष 1860 में पी.एन. भगवती और कृष्णा अय्यर द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
- PIL एक अतिरिक्त-न्यायिक उपाय है, जो लोगों को अपने अधिकारों को लागू करने में सहायता करता है।
- PIL न्यायिक सक्रियता का एक भाग है, जो न्यायिक प्रक्रिया को अधिक लोकतांत्रिक बनाता है।
क्या "राज्य" में न्यायपालिका शामिल है?
- यह प्रश्न कि क्या राज्य में न्यायपालिका भी शामिल है? सर्वकालिक पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक है।
- न्यायपालिका को राज्य के दायरे में आना चाहिये या नहीं, इस पर समय-समय पर न्यायालयों ने विभिन्न व्याख्याएँ दी हैं।
- कुछ मामलों में न्यायपालिका को एक राज्य माना गया है, कुछ मामलों में इसे एक राज्य नहीं माना गया है। न्यायपालिका राज्य का भाग है या नहीं, इसकी तस्वीर भ्रामक है।
- रतिलाल बनाम बॉम्बे राज्य (वर्ष 1954) के मामले में, न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य की परिभाषा में 'न्यायपालिका' शब्द का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। तो न्यायपालिका एक राज्य नहीं है। इसलिये, मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिये न्यायालयों के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती।
- ए.आर. अंतुले बनाम आर.एस. नायक (वर्ष 1988) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 7 न्यायाधीशों की सांविधानिक पीठ की अध्यक्षता में माना कि न्यायालय ऐसे आदेश और निर्देश नहीं दे सकता, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हों अर्थात् भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य शब्द में न्यायालय को भी शामिल किया जा सकता है।
न्यायपालिका की संरचना
- सर्वोच्च न्यायालय
- उच्च न्यायालय
- ज़िला न्यायालय
- अन्य अधीनस्थ न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय
- इसे भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत स्थापित भारत में संघीय न्यायालय के उत्तराधिकारी के रूप में जाना जाता है।
- ब्रिटिश प्रिवी काउंसिल का स्थान भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने लिया।
- 28 जनवरी, 1950 को इसकी पहली बैठक हुई। अनुच्छेद 124 - 147 के अंतर्गत संघीय न्यायपालिका को सांविधानिक दर्जा प्राप्त है।
- भारत का सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली में स्थित है। यह भारत का शीर्ष न्यायालय है और किसी मामले का निर्णय करने वाला अंतिम प्राधिकारी है।
- सर्वोच्च न्यायालय का गठन 33 न्यायाधीशों और 1 भारत के मुख्य न्यायाधीश से होता है।
क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 131 के अंतर्गत मूल क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 132 और 133 के अंतर्गत अपीलीय क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 143 के अंतर्गत सलाहकार क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 136 के अंतर्गत अंतर्निहित क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 137 के अंतर्गत समीक्षात्मक क्षेत्राधिकार
- जनहित याचिका के रूप में विशेष क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 32 के अंतर्गत रिट क्षेत्राधिकार
शक्तियाँ
- संवैधानिक मामलों की सुनवाई करना
- मौलिक अधिकारों के संरक्षक
- राष्ट्रपति को सलाह देना
- संविधान के निरीक्षक
- अवमानना के लिये दंड देना - अभिलेखों का न्यायालय
- उदाहरण स्थापित करना
- बार और बेंच के लिये नियम और कानून तैयार करना
- न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता
- राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद का समाधान
- अन्य न्यायालयों से स्वयं तथा एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में मामलों का हस्तांतरण
उच्च न्यायालय
- यह किसी राज्य का शीर्ष न्यायालय होता है।
- दो राज्यों के लिये एक उच्च न्यायालय हो सकता है।
- यह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधीन है।
- वर्ष 1858 में प्रस्तुत विधि आयोग की सिफारिश के बाद वर्ष 1861 में भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम पारित किया गया था।
- प्रारंभ में, उच्च न्यायालयों की स्थापना वर्ष 1866 में भारत के संविधान (COI) के अनुच्छेद 217(1) के अंतर्गत कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास में की गई थी।
- राज्य न्यायपालिका को भारत के संविधान में अनुच्छेद 214 से 231 के अंतर्गत कवर किया गया है।
क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 225 के अंतर्गत मूल क्षेत्राधिकार
- अपीलीय क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 227 के अंतर्गत पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रिट क्षेत्राधिकार
शक्तियाँ
- अपनी अवमानना के लिये दंडित कर सकता है - अभिलेख न्यायालय
- अनुच्छेद 228 के अंतर्गत यदि विधि पर कोई प्रश्न उठता है तो इससे संबंधित अपील पर सुनवाई कर सकता है।
- इसका व्यवहार परामर्शात्मक है।
- मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से परे रिट का विचार कर सकते हैं।
- हरबंसलाल साहनिया बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (वर्ष 2003) के मामले में यह कहा गया था कि भले ही कोई वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो, तब भी उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों या प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के लिये रिट लागू कर सकता है।
अधीनस्थ न्यायालय
- अधीनस्थ न्यायालय राज्य में उच्च न्यायालयों के अधीन निचले न्यायालयों के रूप में कार्य करते हैं।
- यह ज़िला न्यायालयों और अन्य निचले न्यायालयों के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है।
- इन न्यायालयों को अनुच्छेद 233-237 के अंतर्गत संवैधानिक उपस्थिति प्राप्त है।
- राज्य का राज्यपाल उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद ज़िला न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।
- अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के परामर्श से की जा सकती है।
अधीनस्थ न्यायालयों का वर्गीकरण
सिविल न्यायालय
- ज़िला न्यायाधीश
- वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश
- प्रधान कनिष्ठ सिविल न्यायाधीश
- मुंसिफ न्यायालय
आपराधिक न्यायालय
- सत्र न्यायाधीश
- मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट
- न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी
- न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय श्रेणी