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सांविधानिक विधि

धन विधेयक

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 24-Oct-2023

परिचय

  • धन विधेयक एक वित्त कानून है जिसमें विशेष रूप से राजस्व, कराधान, सरकारी व्यय और उधार से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
  • यह केंद्रीय बजट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

धन विधेयक की परिभाषा

भारत के संविधान, 1950 (COI) का अनुच्छेद 110 धन विधेयक को परिभाषित करता है। यह प्रकट करता है कि -

(1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये, एक विधेयक को धन विधेयक माना जाएगा यदि इसमें निम्नलिखित सभी या किसी भी मामले से संबंधित प्रावधान शामिल हैं, अर्थात्
(a) किसी कर का अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन या विनियमन;
(b) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने या कोई गारंटी देने का विनियमन, या भारत सरकार द्वारा किये गए या किये  जाने वाले किसी भी वित्त दायित्वों के संबंध में कानून में संशोधन;
(c) भारत की समेकित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसे किसी भी निधि में धन का भुगतान या धन की निकासी;
(d) भारत की संचित निधि से धन का विनियोग;
(e) किसी भी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की राशि में वृद्धि करना;
(f) भारत की संचित निधि या भारत के सार्वजनिक खाते से धन की प्राप्ति या ऐसे धन की अभिरक्षा या जारी करना या संघ या राज्य के खातों का ऑडिट; या
(g) उप खंड (a) से (f) में निर्दिष्ट किसी भी मामले से संबंधित कोई भी मामला

(2) किसी विधेयक को केवल इस कारण से धन विधेयक नहीं माना जाएगा कि इसमें जुर्माना या अन्य आर्थिक दंड लगाने, या लाइसेंस के लिये शुल्क की मांग या भुगतान या प्रदान की गई सेवाओं के लिये शुल्क लगाने,या समाप्त करने, छूट, परिवर्तन या स्थानीय उद्देश्यों के लिये किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा कोई कर विनियमन का प्रावधान है।

(3) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, तो उस पर लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।

(4) जब कोई धन विधेयक अनुच्छेद 109 के तहत राज्यसभा को भेजा जाता है, और जब इसे अनुच्छेद 111 के तहत सहमति के लिये राष्ट्रपति को दिया जाता है, तो लोकसभा के अध्यक्ष को एक प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करना होगा जिसमें कहा गया हो कि यह एक धन विधेयक है।

धन विधेयक की प्रक्रिया

भारत के संविधान का अनुच्छेद 109 धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया प्रदान करता है। यह प्रकट करता है कि -

(1) धन विधेयक राज्यों की परिषद (राज्यसभा) में पेश नहीं किया जाएगा

(2) लोकसभा द्वारा धन विधेयक पारित होने के बाद इसे राज्यसभा में सिफारिश के लिये भेजा जाएगा और राज्यसभा इसकी प्राप्ति की तारीख से चौदह दिनों की अवधि के अंदर विधेयक अपनी सिफ़ारिशों के साथ विधेयक को लोकसभा को वापस भेजेगी और लोकसभा उसके बाद राज्यसभा की सभी या किसी सिफ़ारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।

(3) यदि लोकसभा राज्यसभा के द्वारा दी गई सिफारिश को स्वीकार करती है, तो धन विधेयक को राज्यसभा द्वारा अनुशंसित संशोधनों के साथ दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाएगा

(4) यदि लोकसभा राज्यसभा के किसी भी सुझाव को अस्वीकार कर देती है, तो धन विधेयक को राज्यसभा द्वारा अनुशंसित किसी भी संशोधन के बिना दोनों सदनों द्वारा उसी रूप में अधिनियमित माना जाता है जिस रूप में इसे लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।

(5) यदि लोकसभा द्वारा पारित और उसकी सिफारिशों के लिये राज्यसभा को प्रेषित धन विधेयक चौदह दिनों की उक्त अवधि के भीतर लोकसभा को वापस नहीं किया जाता है, उक्त अवधि की समाप्ति पर दोनों सदनों द्वारा उसी रूप में पारित माना जाएगा,जिसे लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।

राष्ट्रपति किसी धन विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है लेकिन उसे पुनर्विचार के लिये वापस नहीं कर सकता

  • धन विधेयक के मामले में संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है

धन विधेयक एवं वित्त विधेयक के बीच अंतर

धन विधेयक

वित्त विधेयक

■     भारत के संविधान का अनुच्छेद 110 धन विधेयक से संबंधित है।

■     भारत के संविधान का अनुच्छेद 117  वित्त विधेयक से संबंधित है।

■     कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, यह तय करने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष के पास है।

■     वित्त विधेयकों के लिये स्पीकर के समर्थन की आवश्यकता नहीं है।

■     सभी धन विधेयक अनिवार्य रूप से वित्त विधेयक होते हैं।

■     सभी वित्त विधेयकों को धन विधेयक नहीं माना जा सकता।

■     राष्ट्रपति धन विधेयक को या तो अपनी सहमति देगा या अस्वीकार कर देगा।

■     राष्ट्रपति वित्तीय विधेयक पर पुनर्विचार करने की सिफारिश कर सकता है और इसे सदन को वापस भेज सकता है।

■     संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की कोई संभावना नहीं है।

■     किसी गतिरोध की स्थिति में राष्ट्रपति संयुक्त बैठक का आदेश दे सकते हैं।

 निष्कर्ष

  • यह धन विधेयक की विषय वस्तु की विशेष प्रकृति के कारण है कि संसद के माध्यम से धन विधेयक पारित करने के लिये  अलग-अलग संविधानिक प्रक्रियाएंँ स्थापित की गई हैं और जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के सदन को विशेष विशेषाधिकार प्रदान वित्त गए हैं।