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सांविधानिक विधि

राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति

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 22-Dec-2023

परिचय:

भारत का राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख होता है। भारत का संविधान, 1950 (Constitution of India- COI) राष्ट्रपति को विधायी, कार्यकारी और न्यायिक शक्तियाँ प्रदान करता है।

  • COI का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति की न्यायिक शक्ति से संबंधित है जिसे राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति भी कहा जाता है।

COI का अनुच्छेद 72:

  • यह अनुच्छेद राष्ट्रपति की क्षमादान आदि देने और कुछ मामलों में सज़ा को निलंबित करने, माफ करने या कम करने की शक्ति से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि -
    (1) राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिये सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की--
    (a) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश सैन्य न्यायालय ने दिया है,
    (b) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश ऐसे विषय संबंधी किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिये दिया गया है जिस विषय तक संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है,
    (c) उन सभी मामलों में, जिनमें दंडादेश, मृत्यु दंडादेश है, शक्ति होगी।
    (2) खंड (1) के उपखंड (a) की कोई बात संघ के सशस्त्र बलों के किसी अधिकारी की सैन्य न्यायालय द्वारा पारित दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की विधि द्वारा प्रदत्त शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।

क्षमादान शक्ति के लक्षण:

  • क्षमादान अनुग्रह का कार्य है। इसे अधिकार के तौर पर नहीं मांगा जा सकता।
  • क्षमादान से न केवल सज़ा को माफ हो जाती है बल्कि, कानून के अनुसार अपराधी को उसी स्थिति में पहुँचा देती है जैसे कि उसने कभी अपराध किया ही न हो।
  • क्षमादान शक्ति का प्रयोग अपराध होने के बाद किसी भी समय किया जा सकता है।
  • यह पूर्णतः एक कार्यकारी कार्य है।

क्षमादान शक्ति की सीमा:

  • राष्ट्रपति सरकार से स्वतंत्र होकर क्षमादान की अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।
  • COI का अनुच्छेद 74 राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति को सीमित करता है। यह प्रकट करता है कि-

(1) राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिये एक मंत्रि-परिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा:

परंतु राष्ट्रपति मंत्रि-परिषद से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकेगा और राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात्‌ दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।

(2) इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जाँच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राष्ट्रपति को कोई सलाह दी, और यदि दी तो क्या दी।

क्षमादान शक्ति की प्रक्रिया:

  • राष्ट्रपति भवन कैबिनेट की सलाह के लिये दया याचिका (Mercy Plea) गृह मंत्रालय को भेजता है।
  • यह मंत्रालय इसे संबंधित राज्य सरकार को भेजता है; उत्तर के आधार पर यह मंत्रिपरिषद की ओर से अपनी सलाह तैयार करता है।

क्षमादान शक्ति पर पुनर्विचार:

  • हालाँकि राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह मानने के लिये बाध्य है, लेकिन अनुच्छेद 74(1) उसे इसे एक बार पुनर्विचार के लिये लौटाने का अधिकार देता है।
  • यदि मंत्रिपरिषद किसी परिवर्तन के विरुद्ध निर्णय लेती है तो राष्ट्रपति के पास उसे स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।

निर्णयज विधि:

  • मारू राम बनाम भारत संघ (1981) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि COI के अनुच्छेद 72 के तहत क्षमादान, लघुकरण व निर्मुक्ति की शक्ति दंगे का आधार नहीं हो सकती और इसे एक स्थिर पाठ्यक्रम (Steady Course) के लिये समझदारी से काम लेना चाहिये तथा लोक शक्ति का प्रयोग कभी भी मनमाने ढंग से नहीं किया जाना चाहिये।
  • केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की शक्ति के क्षेत्र का प्रश्न न्यायिक क्षेत्र में आता है तथा न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा के माध्यम से इसकी जाँच की जा सकती है।
  • धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1994) में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति को दया याचिकाओं पर निर्णय लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होगा।