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सांविधानिक विधि
संसदीय विशेषाधिकार
« »03-Jun-2024
परिचय:
संसदीय विशेषाधिकार संसद के सदस्यों एवं उनकी समितियों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्ति और छूट हैं। वे उनके कार्यों की स्वतंत्रता एवं प्रभावशीलता को सुरक्षित रखने के लिये आवश्यक हैं।
संसदीय विशेषाधिकार:
- इन विशेषाधिकारों के तहत, संसद के सदस्यों को अपने कर्त्तव्यों के दौरान दिये गए किसी भी बयान या किये गए कार्य के लिये किसी भी नागरिक दायित्व (लेकिन आपराधिक दायित्व से नहीं) से छूट दी जाती है।
- यहाँ यह स्पष्ट किया जाना चाहिये कि संसदीय विशेषाधिकार राष्ट्रपति तक विस्तारित नहीं होता है, जो संसद के एक अभिन्न अंग भी हैं।
- भारतीय संविधान, 1950(COI) ने संसदीय विशेषाधिकारों को उन व्यक्तियों तक भी बढ़ाया है, जो संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति की कार्यवाही में बोलने एवं भाग लेने के अधिकारी हैं। इनमें भारत के अटॉर्नी जनरल एवं केंद्रीय मंत्री शामिल हैं।
संसदीय विशेषाधिकार के स्रोत:
- संसद ने अब तक सभी विशेषाधिकारों को पूरी तरह से संहिताबद्ध करने के लिये कोई विशेष विधि का निर्माण नहीं किया है। वे पाँच स्रोतों पर आधारित हैं, जो कि निम्नलिखित हैं:
- संवैधानिक प्रावधान
- संसद द्वारा निर्मित विभिन्न विधियाँ
- दोनों सदनों के नियम
- संसदीय परंपरा
- न्यायिक व्याख्याएँ
संसदीय विशेषाधिकार के प्रकार:
- संसदीय विशेषाधिकारों को दो व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- सामूहिक विशेषाधिकार
- व्यक्तिगत विशेषाधिकार
सामूहिक विशेषाधिकार:
- संसद के प्रत्येक सदन को सामूहिक रूप से निम्नलिखित विशेषाधिकार प्राप्त हैं:
- किसी सदस्य की गिरफ्तारी, नज़रबंदी, दोषसिद्धि, कारावास एवं रिहाई की तत्काल सूचना प्राप्त करने का सदन का अधिकार।
- सभापति/अध्यक्ष की अनुमति प्राप्त किये बिना सदन के परिसर के भीतर गिरफ्तारी एवं विधिक प्रक्रिया के पालन के दायित्व से उन्मुक्ति।
- सदन की गुप्त बैठक की कार्यवाही के प्रकाशन का संरक्षण।
- संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य तथा उसकी रिपोर्ट एवं कार्यवाही को तब तक किसी के द्वारा प्रकट या प्रकाशित नहीं किया जा सकता, जब तक कि इन्हें सदन के पटल पर नहीं रख दिया जाता।
- सदन के सदस्य या अधिकारी सदन की अनुमति के बिना सदन की कार्यवाही से संबंधित साक्ष्य नहीं दे सकते या न्यायालय में दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं कर सकते।
व्यक्तिगत विशेषाधिकार:
- ये विशेषाधिकार सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त होते हैं तथा इस प्रकार हैं:
- संसद या उसकी किसी समिति में उसके द्वारा कहे गए किसी तथ्य या दिये गए किसी मत के संबंध में किसी भी न्यायालय में किसी कार्यवाही से किसी सदस्य को उन्मुक्ति।
- संसद के किसी भी सदन द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन किसी भी रिपोर्ट, पत्र, मत या कार्यवाही के प्रकाशन के संबंध में किसी व्यक्ति को किसी भी न्यायालय में कार्यवाही से उन्मुक्ति।
- संसद में किसी कथित अनियमितता के आधार पर किसी कार्यवाही की वैधता की जाँच करने के लिये न्यायालयों पर प्रतिबंध।
- सदन या उसकी किसी समिति की बैठक के जारी रहने के दौरान तथा उसके शुरू होने से चालीस दिन पहले और उसके समाप्त होने के चालीस दिन बाद तक सिविल मामलों में सदस्यों की गिरफ्तारी से स्वतंत्रता।
संवैधानिक प्रावधान:
- इन विशेषाधिकारों को COI के अनुच्छेद 105 में परिभाषित किया गया है।
- COI का अनुच्छेद 105 सदनों की शक्तियों, विशेषाधिकारों आदि से संबंधित है।
- संसद तथा उसके सदस्यों और समितियों के संबंध में कहा गया है कि-
(1) इस संविधान के उपबंधों तथा संसद की प्रक्रिया को विनियमित करने वाले नियमों एवं स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, संसद में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी।
(2) संसद के किसी सदस्य के विरुद्ध संसद या उसकी किसी समिति में उसके द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी तथा कोई भी व्यक्ति संसद के किसी सदन द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन किसी रिपोर्ट, पत्र, मत या कार्यवाही के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार उत्तरदायी नहीं होगा।
(3) अन्य विषयों में, संसद के प्रत्येक सदन की तथा प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ ऐसी होंगी, जो समय-समय पर संसद द्वारा विधि द्वारा और जब तक इस प्रकार परिभाषित न की जाएँ, तब तक प्रभावी रहेंगी।
(4) खंड (1), (2) और (3) के उपबंध उन व्यक्तियों के संबंध में लागू होंगे, जिन्हें इस संविधान के आधार पर संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का तथा उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, जिस प्रकार वे संसद के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं। - संविधान की धारा 194 राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों को भी समान विशेषाधिकार की गारंटी देती है।
निर्णयज विधि:
- केरल राज्य बनाम के. अजित (2021) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा देश की सामान्य विधि से छूट का दावा करने के लिये प्रवेश द्वार नहीं हैं, विशेष रूप से आपराधिक विधि के मामले में, जो प्रत्येक नागरिक की कार्यवाही को नियंत्रित करता है।