होम / भारत का संविधान
सांविधानिक विधि
जनहित याचिका
« »29-Dec-2023
परिचय:
जनहित याचिका (Public Interest Litigation- PIL) की अवधारणा 1960 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न और विकसित हुई। भारत में इसे पहली बार 1980 के दशक में न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती द्वारा पेश किया गया था। तब से यह लोक हित के मुद्दों को संबोधित करने के लिये एक प्रमुख विधिक तंत्र बन गया है।
जनहित याचिका:
- उच्चतम न्यायालय ने जनहित याचिका को लोक हित या सामान्य हित में लागू करने के लिये न्यायालय में शुरू की गई विधिक कार्रवाई के रूप में परिभाषित किया है जिसमें जनता या समुदाय के एक वर्ग का आर्थिक या कोई अन्य हित होता है जिसके द्वारा उनके विधिक अधिकार या दायित्व प्रभावित होते हैं।
- इस प्रकार, एक जनहित याचिका में पर्याप्त हित रखने वाला जनता का कोई भी सदस्य अन्य व्यक्तियों के अधिकारों को लागू करने और एक सामान्य शिकायत के निवारण के लिये न्यायालय में अपील कर सकता है।
- भारत के संविधान, 1950 (Constitution of India- COI) के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी याचिका पर विचार कर सकता है।
- कानून का शासन बनाए रखने, न्याय को बढ़ावा देने और संवैधानिक उद्देश्यों की प्राप्ति में गतिशीलता लाने हेतु जनहित याचिका नितांत आवश्यक है।
PIL के लिये दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिये:
- व्यक्तिगत मामले से जुड़ी किसी भी याचिका पर जनहित याचिका के रूप में विचार नहीं किया जाएगा।
- केवल निम्नलिखित श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले पत्रों या याचिकाओं पर ही सामान्यतः जनहित याचिका के रूप में विचार किया जाएगा:
- बँधुआ मज़दूरी का मामला
- उपेक्षित बच्चे
- श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान न करना और नैमित्तिक श्रमिकों का शोषण एवं श्रम कानूनों के उल्लंघन की शिकायतें।
- कारावासों से याचिकाएँ उत्पीड़न की शिकायत करती हैं, समय से पूर्व रिहाई की मांग करती हैं और कारावास में 14 वर्ष पूरे करने के बाद रिहाई की मांग करती हैं, कारावास में मृत्यु, स्थानांतरण, व्यक्तिगत बॉण्ड पर रिहाई, त्वरित सुनवाई को मूल अधिकार के रूप में शामिल करती हैं।
- मामला दर्ज करने से इनकार करने या पुलिस द्वारा उत्पीड़न और पुलिस अभिरक्षा में मौत के लिये पुलिस के खिलाफ याचिकाएँ।
- महिलाओं पर अत्याचार, विशेष रूप से दुल्हन का उत्पीड़न, दुल्हन को जलाना, बलात्कार, हत्या, अपहरण के खिलाफ याचिकाएँ।
- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के व्यक्तियों द्वारा सह-ग्रामीणों या पुलिस द्वारा ग्रामीणों के उत्पीड़न या यातना की शिकायत करने वाली याचिकाएँ।
- पर्यावरण प्रदूषण, पारिस्थितिकी असंतुलन, दवाओं, खाद्य पदार्थों में मिलावट, विरासत और संस्कृति का रखरखाव, प्राचीन वस्तुओं, वन एवं वन्य जीवन व लोक महत्त्व के अन्य मामलों से संबंधित याचिकाएँ।
- दंगा-पीड़ितों की याचिकाएँ
- पारिवारिक पेंशन
PIL के लिये अनुसरण किये जाने वाले सिद्धांत:
- उच्चतम न्यायालय ने जनहित याचिका के दुरुपयोग को रोकने के लिये निम्नलिखित सिद्धांत निर्धारित किये:
- न्यायालय को वास्तविक एवं प्रामाणिक जनहित याचिका को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा बाह्य विचारों के लिये जनहित याचिका के क्षेत्र को प्रभावी ढंग से हतोत्साहित और नियंत्रित करना चाहिये।
- न्यायालय को जनहित याचिका पर विचार करने से पूर्व प्रथम दृष्टया याचिकाकर्त्ता की साख का सत्यापन करना चाहिये।
- याचिका पर विचार करने से पूर्व न्यायालय को इस बात से पूरी तरह संतुष्ट होना चाहिये कि इसमें पर्याप्त लोकहित शामिल हैं।
- न्यायालय को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि जनहित याचिका दायर करने के पीछे कोई व्यक्तिगत लाभ, निजी या परोक्ष उद्देश्य नहीं है।f