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सांविधानिक विधि

भारतीय संविधा न की अनुसूचियाँ

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 13-Jun-2024

परिचय:

भारतीय संविधान, 1950 (COI) में निर्धारित अनुसूचियाँ प्रशासनिक गतिविधि एवं शासन नीति को वर्गीकृत और सारणीबद्ध करने वाली सूची हैं। अनुसूचियों का उद्देश्य किसी भी प्रकार की अस्पष्टता को दूर करना तथा संविधान के अनुच्छेदों के संदर्भ में अत्यधिक विवरण प्रदान करना है।

  • प्रारंभ में संविधान में आठ अनुसूचियाँ थीं, लेकिन अब बारह हो गई हैं।

पहली अनुसूची: 

  • पहली अनुसूची को संविधान के अनुच्छेद 1 एवं 2 के साथ पढ़ा जाता है।
  • इसमें उन अनुसूचियों को सूचीबद्ध किया गया है जिनमें राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के नाम एवं उनके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र निर्धारित किये गए हैं।
  • राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के नाम और सीमाओं में परिवर्तन को दर्शाने के लिये इसमें कई बार संशोधन किया गया है।
    • वर्तमान में भारत संघ में 28 राज्य एवं 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं।

दूसरी अनुसूची:

  • दूसरी अनुसूची में वेतन, भत्ते एवं विशेषाधिकारों का उल्लेख है।
    • भारत के राष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपाल। (भाग A)
    • लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्य सभा तथा राज्यों की विधान परिषदों के सभापति एवं उपसभापति। (भाग C)
    • उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश। (भाग D)
    • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक। (भाग E)

तीसरी अनुसूची:

  • तीसरी अनुसूची में निम्नलिखित के लिये शपथ एवं प्रतिज्ञान के प्रारूप शामिल हैं:
    • केंद्रीय मंत्री
    • संसद के लिये चुनाव के प्रत्याशी
    • संसद के सदस्य
    • उच्चतम न्यायालय और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
    • राज्यमंत्री
    • राज्य विधानमंडल के लिये चुनाव के प्रत्याशी
    • राज्य विधानमंडल के सदस्य
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश

चौथी अनुसूची:

  • चौथी अनुसूची संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा (राज्यों की परिषद) में प्रत्येक राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश के लिये सीटें आवंटित करती है।
  • यह आवंटन प्रत्येक राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश की जनसंख्या के आधार पर होता है।

पाँचवी अनुसूची:

  • पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिज़ोरम राज्यों को छोड़कर किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण से संबंधित है।
    • वर्तमान में, 10 राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान एवं तेलंगाना में पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र हैं।
  • इसमें जनजातीय सलाहकार परिषदों की स्थापना तथा इन क्षेत्रों के प्रशासन पर रिपोर्ट देने के लिये राज्यपाल की नियुक्ति का प्रावधान है।

छठी अनुसूची:

  • छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान करती है।
  • इसमें विधायी एवं न्यायिक शक्तियों के साथ स्वायत्त ज़िला परिषदों और स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदों के गठन के प्रावधान शामिल हैं।

सातवीं अनुसूची:

  • सातवीं अनुसूची को संविधान के अनुच्छेद 246 के साथ पढ़ा जाता है, जो संसद एवं राज्य विधानमंडल को उनके विधायी क्षेत्र में आने वाले किसी भी विषय पर विधि निर्माण का अधिकार देता है।
  • सातवीं अनुसूची संघ एवं राज्यों के मध्य शक्तियों और उत्तरदायित्वों के वितरण को निर्दिष्ट करती है। इसमें तीन सूचियाँ शामिल हैं:
    • संघ सूची: संघ सरकार के अनन्य अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय। वर्तमान में संघ सूची में 100 विषय हैं।
    • राज्य सूची: राज्य सरकार के अनन्य अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय। वर्तमान में राज्य सूची में 61 विषय हैं।
    • समवर्ती सूची: संघ एवं राज्य सरकारों के संयुक्त अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय। वर्तमान में समवर्ती सूची में 52 विषय हैं।

आठवीं अनुसूची:  

  • आठवीं अनुसूची में COI द्वारा मान्यता प्राप्त आधिकारिक भाषाओं की सूची दी गई है।
  • मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ शामिल थीं, लेकिन अब इसमें 22 भाषाएँ शामिल हैं, जैसे- असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू।
  • ये भाषाएँ राजभाषा आयोग में प्रतिनिधित्व और कुछ आधिकारिक उद्देश्यों के लिये पात्र हैं।

नौवीं अनुसूची:  

  • संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के साथ असंगत विधियों को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिये वर्ष 1951 में प्रथम संशोधन अधिनियम द्वारा नौवीं अनुसूची जोड़ी गई थी।
  • यह मुख्य रूप से भूमि सुधार एवं अन्य विधियों की सुरक्षा के लिये था।
  • शुरुआत में, नौवीं अनुसूची में केवल 13 विधियाँ निहित थे लेकिन वर्तमान में, अनुसूची के अंतर्गत 284 विधियाँ सम्मिलित किये गए हैं।

दसवीं अनुसूची:

  • वर्ष 1985 में 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई दसवीं अनुसूची, दलबदल के आधार पर संसद एवं राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित है।
  • इसे आमतौर पर "दलबदल विरोधी विधि" के रूप में जाना जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 102(2) एवं 191(2) में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति दसवीं अनुसूची के अंतर्गत अयोग्य घोषित किया जाता है, तो वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य होने के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

ग्यारहवीं अनुसूची:    

  • वर्ष 1992 में 73वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई ग्यारहवीं अनुसूची में पंचायतों (ग्रामीण स्थानीय सरकारों) की शक्तियों, अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों को रेखांकित करने वाले प्रावधान हैं।
  • इसमें ग्रामीण विकास एवं नियोजन से संबंधित 29 विषय शामिल हैं।

बारहवीं अनुसूची:  

  • वर्ष 1992 में 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई बारहवीं अनुसूची में ऐसे प्रावधान हैं जो नगर पालिकाओं (शहरी स्थानीय सरकारों) की शक्तियों, अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों को रेखांकित करते हैं।
  • इसमें शहरी नियोजन एवं विकास से संबंधित 18 विषय शामिल हैं।

निर्णयज विधियाँ:

  • किहोटो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हु एवं अन्य (1992)
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दलबदल के आधार पर किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने का अध्यक्ष/सभापति का निर्णय, संविधान के अनुच्छेद 136, 226 एवं 227 के अंतर्गत समीक्षा को निरस्त या बाधित नहीं करता है।
  • आई. आर. कोएल्हो बनाम तमिलनाडु राज्य एवं अन्य (2007)
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि भाग III में किसी अधिकार का उल्लंघन करने वाला कोई विधि 24 अप्रैल, 1973 के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो ऐसे उल्लंघन/अतिक्रमण को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह अनुच्छेद 21 के साथ अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 19 में अंतर्निहित सिद्धांतों के अनुसार मूल ढाँचे को क्षति पहुँचाता है।

निष्कर्ष:

इनमें से प्रत्येक अनुसूची भारत के संघीय ढाँचे एवं शासन के कार्यप्रणाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वे देश के सुचारु संचालन के लिये आवश्यक विशाल एवं विविध प्रशासनिक कार्यों व नीतियों को व्यवस्थित करने में सहायता करते हैं।