Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / भारत का संविधान

सांविधानिक विधि

संघ और उसका क्षेत्र

    «    »
 15-Dec-2023

परिचय:

भारत के संविधान, 1950 (Constitution of India- COI) के भाग I में निहित अनुच्छेद 1 से 4 संघ और उसके क्षेत्र से संबंधित है तथा भारत संघ के राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों के संविधान में परिवर्तन करने के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।

भारत का क्षेत्र:

  • COI का अनुच्छेद 1 इंडिया, यानी भारत को 'राज्यों के संघ' (Union of States) के रूप में परिभाषित करता है।
  • देश को संघ के रूप में वर्णित किया गया है, हालाँकि संविधान की संरचना संघीय है।
  • राज्यों के परिसंघ (Federation of States) की तुलना में राज्यों के संघ (Union of States) वाक्यांश को प्राथमिकता दी गई है क्योंकि भारतीय संघ अमेरिकी संघ की तरह राज्यों के बीच किसी समझौते का परिणाम नहीं है और राज्यों को संघ से पृथक होने का कोई अधिकार नहीं है।
    • परिसंघ (Federation) एक संघ है क्योंकि यह अविनाशी है।
  • हालाँकि प्रशासन की सुविधा के लिये देश और लोगों को अलग-अलग राज्यों में विभाजित किया जा सकता है, लेकिन देश एक अभिन्न अंग है।
  • अनुच्छेद 1 के अनुसार, भारत के क्षेत्र को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • राज्यों के क्षेत्र
    • केंद्रशासित प्रदेश
    • वे क्षेत्र जिनका भारत सरकार द्वारा किसी भी समय अधिग्रहण किया जा सकता है
  • भारत का क्षेत्र भारत संघ की तुलना में एक व्यापक अभिव्यक्ति है क्योंकि भारत संघ में केवल वे राज्य शामिल हैं जो संघीय प्रणाली के सदस्य होने का दर्जा प्राप्त करते हैं और संघ के साथ शक्तियों का वितरण साझा करते हैं।
  • जबकि भारत के क्षेत्र में न केवल राज्य बल्कि केंद्रशासित प्रदेश और अन्य क्षेत्र भी शामिल हैं जिन्हें भारत द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है।

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का विकास:

  • संविधान के प्रारंभ के समय, भारत संघ में राज्य शामिल थे जिन्हें चार मुख्य श्रेणियों अर्थात् भाग A, B, C और D में वर्गीकृत किया गया था।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 तथा 7वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा भाग A और भाग B के राज्यों के बीच अंतर को खत्म कर दिया गया तथा भाग C के राज्यों को समाप्त कर दिया गया।
    • और इस प्रकार 1 नवंबर, 1956 को 14 राज्य और 6 केंद्रशासित प्रदेश बनाकर सभी श्रेणियों को कम करके केवल दो कर दिया गया।
  • वर्ष 1956 के बाद भी भारत के राजनीतिक मानचित्र में जन आंदोलनों के दबाव और राजनीतिक परिस्थितियों के कारण लगातार परिवर्तन होते रहे।
  • वर्तमान में भारत में 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं।
  • COI की पहली अनुसूची में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के नाम तथा उनकी क्षेत्रीय सीमा शामिल हैं।

राज्यों की चार मुख्य श्रेणियों के विभाजन का आधार 7वाँ संवैधानिक संशोधन:

  • भाग A: इसमें वे राज्य शामिल थे जो ब्रिटिश भारत के दौरान राज्यपालों द्वारा शासित थे या जिन्हें राज्यपाल के प्रांत के रूप में जाना जाता था।
  • भाग B: इसमें वे राज्य शामिल थे जो रियासतें थीं और रियासतों के समूह थे।
  • भाग C: इसमें वे राज्य शामिल थे जो ब्रिटिश भारत के दौरान पूर्व मुख्य आयुक्तों के प्रांत थे और कुछ रियासतें थीं।
  • भाग D: इसमें लेफ्टिनेंट गवर्नर के नेतृत्व वाला राज्य शामिल था।

जम्मू-कश्मीर की स्थिति:

  • 5 अगस्त, 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 प्रख्यापित किया।
  • इस आदेश ने अनुच्छेद 370 के प्रावधान के तहत जम्मू और कश्मीर को दिये गए विशेष दर्जे को प्रभावी ढंग से रद्द कर दिया।
  • इसने संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश, 1954 को समाप्त कर दिया जिसके तहत COI में अनुच्छेद 35A जोड़ा गया था।
    • अनुच्छेद 35A को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत शामिल किया गया है और जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य के स्थायी निवासियों तथा उनके विशेषाधिकारों को परिभाषित करने का अधिकार देता है।
  • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019, जो 31 अक्तूबर, 2019 को प्रभावी हुआ, राज्य को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर (विधानमंडल के साथ) तथा लद्दाख (विधानमंडल के बिना) में विभाजित करने का प्रावधान करता है।

नये राज्यों का प्रवेश या स्थापना:

  • अनुच्छेद 2 में प्रावधान है कि संसद, विधि द्वारा, संघ में प्रवेश कर सकती है या ऐसे नियमों एवं शर्तों पर नए राज्यों की स्थापना कर सकती है जो वह उचित समझे।
    • इस प्रकार, यह संसद को पूर्ण विवेकाधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 2 संसद को दो शक्तियाँ प्रदान करता है, जो हैं:
    • भारत संघ में नए राज्यों को शामिल करने की शक्ति - वे राज्य जो विधिवत स्थापित हैं और पहले से ही अस्तित्त्व में हैं।
    • नये राज्यों की स्थापना की शक्ति- ऐसे राज्य का गठन जो अस्तित्त्व में नहीं हैं।
  • अनुच्छेद 2 नए राज्यों के प्रवेश या स्थापना से संबंधित है जो भारत संघ का हिस्सा नहीं हैं।

नए राज्यों का गठन और मौज़ूदा राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं या नामों में परिवर्तन:

  • अनुच्छेद 3 के अनुसार, एक नया राज्य संसद द्वारा निम्नलिखित तरीकों से बनाया या स्थापित किया जा सकता है:
    • किसी राज्य से क्षेत्र को अलग करके या दो या दो से अधिक भागों या राज्यों के हिस्सों को एकजुट करके या किसी क्षेत्र को किसी राज्य के एक हिस्से में एकजुट करके।
    • किसी भी राज्य का क्षेत्रफल बढ़ाकर।
    • किसी भी राज्य का क्षेत्रफल कम करके।
    • किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन करके।
    • किसी भी राज्य का नाम परिवर्तित करके।

यहाँ राज्य शब्द में केंद्रशासित प्रदेश भी शामिल है।

  • इस अनुच्छेद के अंतर्गत किसी नए राज्य के गठन या मौज़ूदा राज्यों की सीमाओं या नामों में परिवर्तन के लिये निम्नलिखित दो शर्तें रखी गई हैं:
    • उपरोक्त परिवर्तनों पर विचार करने वाला कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के अतिरिक्त संसद के किसी भी सदन में पेश नहीं किया जाएगा।
    • यदि विधेयक राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं या नामों को प्रभावित करता है, तो राष्ट्रपति को एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर अपना विचार व्यक्त करने के लिये विधेयक को संबंधित राज्य विधानमंडल को भेजना आवश्यक है।

उपरोक्त शर्तों में राज्य शब्द में केंद्रशासित प्रदेश शामिल नहीं है।

  • राष्ट्रपति निर्दिष्ट अवधि को बढ़ा सकते हैं। यदि राज्य विधानमंडल निर्दिष्ट या विस्तारित अवधि के भीतर अपने विचार व्यक्त नहीं करता है, तो विधेयक संसद में पेश किया जा सकता है।
  • यदि राज्य विधानमंडल निर्दिष्ट या विस्तारित अवधि के भीतर अपने विचार व्यक्त करता है, तो संसद विचारों से बंधी नहीं है और उन्हें स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
  • इसके अलावा, हर बार विधेयक में संशोधन प्रस्तावित या स्वीकृत होने पर राज्य विधानमंडल का नया संदर्भ देना अनिवार्य नहीं है।
  • केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में संसद स्वयं कोई भी कार्रवाई कर सकती है जो वह उचित समझे।
  • इस प्रकार, यह साफ तौर पर स्पष्ट है कि COI संसद को उनकी सहमति के बिना नए राज्य बनाने या मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों को परिवर्तित करने के लिये अधिकृत करता है।

पहली और चौथी अनुसूची का संशोधन:

  • अनुच्छेद 4 घोषित करता है कि नए राज्यों के प्रवेश या स्थापना (अनुच्छेद 2 के तहत) और नए राज्यों के गठन एवं मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन (अनुच्छेद 3 के तहत) के लिये बनाए गए कानूनों को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के संशोधन के रूप में नहीं माना जाएगा।
  • ऐसे कानून साधारण बहुमत और सामान्य विधायी प्रक्रिया द्वारा पारित किये जा सकते हैं।
  • अनुच्छेद 4 पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची (प्रत्येक राज्य द्वारा राज्यसभा के लिये आवंटित सीटों की संख्या) में परिणामी बदलाव की भी अनुमति देता है।

निर्णयज विधि:

  • बेरुबारी संघ वाद (1960) में उच्चतम न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 3 के तहत किसी राज्य के क्षेत्र को कम करने की संसद की शक्ति भारतीय क्षेत्र को किसी विदेशी देश को सौंपने का प्रावधान नहीं करती है। अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करके ही भारतीय क्षेत्र को किसी विदेशी राज्य को सौंपा जा सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 370 (2023) के संबंध में इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A को निरस्त करने को बरकरार रखा तथा यह माना है कि संसद के पास एक राज्य से केंद्रशासित प्रदेश घोषित करने की शक्ति है।