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सांविधानिक विधि
भारत की आधिकारिक राजभाषा में संशोधन
« »11-Nov-2024
परिचय
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची (COI) में भारत की आधिकारिक भाषाओं की सूची उपबंधित की गई है।
- भारतीय संविधान के भाग XVII में अनुच्छेद 343 से 351 तक आधिकारिक भाषाओं का उल्लेख है।
आधिकारिक भाषाएँ:
- संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएँ शामिल हैं:
- असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली एवं डोगरी।
- इनमें से 14 भाषाओं को प्रारंभ में संविधान में शामिल किया गया था।
- यह ध्यान देने योग्य है कि आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिये किसी भी भाषा के लिये कोई निश्चित मानदंड नहीं है।
शास्त्रीय भाषाएँ:
- वर्तमान में भारत में छह भाषाओं को 'शास्त्रीय' दर्जा प्राप्त है:
- तमिल (2004 में घोषित), संस्कृत (2005), कन्नड़ (2008), तेलुगु (2008), मलयालम (2013) एवं उड़िया (2014)।
- संस्कृति मंत्रालय शास्त्रीय भाषाओं के संबंध में दिशानिर्देश प्रदान करता है जो नीचे दिये गए हैं:
- 1500-2000 वर्षों की अवधि में इसके प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की उच्च प्राचीनता;
- प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।
- साहित्यिक परंपरा मूल है तथा किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई है।
- शास्त्रीय भाषा एवं साहित्य आधुनिक से अलग होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।
प्रासंगिक संवैधानिक उपबंध
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है। अनुच्छेद में यह उपबंधित किया गया है कि नागरिकों का कोई भी वर्ग जिसकी अपनी “विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।”
- अनुच्छेद 343 भारत संघ की आधिकारिक भाषा के विषय में है। इस अनुच्छेद के अनुसार, यह देवनागरी लिपि में हिंदी होनी चाहिये तथा अंकों में भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीयकरण होना चाहिये। इस अनुच्छेद में यह भी उपबंधित किया गया है कि संविधान लागू होने के 15 वर्ष तक अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता रहेगा।
- अनुच्छेद 344 में संविधान के प्रारंभ से पाँच वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति द्वारा एक आयोग के गठन का उपबंध है।
- अनुच्छेद 345 में यह उपबंध है कि कोई राज्य विधि द्वारा राज्य में प्रयुक्त किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किसी भी राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त की जाने वाली भाषा या भाषाओं के रूप में अपना सकता है।
- अनुच्छेद 346 राज्यों के बीच तथा राज्य एवं संघ के बीच संचार के लिये आधिकारिक भाषा के विषय में है। अनुच्छेद में यह उपबंधित किया गया है कि "अधिकृत" भाषा का उपयोग किया जाएगा। हालाँकि, यदि दो या अधिक राज्य इस बात पर सहमत होते हैं कि उनका संचार हिंदी में होगा, तो हिंदी का उपयोग किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 347 राष्ट्रपति को किसी भाषा को किसी दिये गए राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की शक्ति देता है, बशर्ते कि राष्ट्रपति संतुष्ट हों कि उस राज्य का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि भाषा को मान्यता दी जाए। ऐसी मान्यता राज्य के किसी हिस्से या पूरे राज्य के लिये हो सकती है।
- अनुच्छेद 350A प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 350B भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की स्थापना का उपबंध करता है। अधिकारी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी तथा वह भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करेगा, तथा सीधे राष्ट्रपति को रिपोर्ट करेगा। राष्ट्रपति इसके बाद संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकते हैं या उन्हें संबंधित राज्यों की सरकारों को भेज सकते हैं।
- अनुच्छेद 351 संघ सरकार को हिंदी भाषा के विकास के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति देता है।
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 मान्यता प्राप्त भाषाओं की सूची है।
राजभाषा के संबंध में संवैधानिक संशोधन
- 21वाँ संशोधन अधिनियम 1967
- सिंधी भाषी लोगों की ओर से लगातार मांग की जा रही है कि सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
- यद्यपि वर्तमान में सिंधी किसी सुपरिभाषित क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा नहीं है, लेकिन यह अविभाजित भारत के एक प्रांत की भाषा हुआ करती थी तथा विभाजन के बिना, ऐसा ही बनी रहती।
- भाषाई अल्पसंख्यक आयुक्त ने भी सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की अनुशंसा की है।
- 4 नवंबर 1966 को यह घोषणा की गई कि सरकार ने सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का निर्णय लिया है।
- विधेयक इस निर्णय को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है।
- 71वाँ संशोधन अधिनियम 1992
- यह वर्ष 1992 में अधिनियमित किया गया था, जिसके अंतर्गत कोंकणी, मणिपुरी एवं नेपाली भाषाओं को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया तथा उन्हें मान्यता दी गई।
- यह संशोधन इसलिये महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने भारत की सांस्कृतिक एवं भाषाई विविधता को मान्यता दी।
- इन भाषाओं को जोड़ने का उद्देश्य गोवा, मणिपुर एवं सिक्किम में भाषाई समुदायों को समर्थन एवं मान्यता देना था।
- 92वाँ संशोधन अधिनियम 2003
- बोडो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली को संविधान के 92वें संशोधन के अंतर्गत संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया, जिसे आधिकारिक तौर पर ‘92वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003’ के रूप में जाना जाता है।
- इससे अनुसूची में सूचीबद्ध भाषाओं की कुल संख्या 22 हो गई।
निष्कर्ष
भारत के संविधान ने हिंदी को देवनागरी लिपि में संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में नामित किया है, साथ ही अंग्रेजी को एक अतिरिक्त आधिकारिक भाषा के रूप में भी शामिल किया है। विभिन्न संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से भारत की आधिकारिक भाषा नीति का विकास राष्ट्रीय एकता एवं भाषाई विविधता की जटिलताओं को दूर करने के देश के प्रयासों को प्रकटन करता है। आधिकारिक भाषा के इर्द-गिर्द चर्चा भारत के राजनीतिक विमर्श का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है।