भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142
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सांविधानिक विधि

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142

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 23-Jul-2024

परिचय:

भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्ति एक अंतर्निहित शक्ति है तथा इसका प्रयोग पूर्ण न्याय प्रदान करने के लिये किया जा सकता है।

  • इस अनुच्छेद का उद्देश्य न्यायालय को पूर्वनिर्णय आधारित विधि निर्माण करने तथा ऐसे निर्देश या आदेश का निष्पादन करने में सक्षम बनाना है जो पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक होते हैं।

COI का अनुच्छेद 142

COI का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय के आदेशों एवं डिक्री के प्रवर्तन तथा प्रकटीकरण का प्रावधान करता है।

  • अनुच्छेद 142 (1) में यह प्रावधान है कि उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश दे सकेगा, जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो तथा इस प्रकार पारित कोई डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो कि संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित किया जा सकता है और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।
  • अनुच्छेद 142 (2) में यह प्रावधान है कि संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के विषय में किसी व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करने, किसी दस्तावेज़ को प्रस्तुत करने या प्रकटीकरण, अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण या दण्ड देने के प्रयोजन के लिये कोई भी आदेश करने की समस्त एवं प्रत्येक शक्ति होगी।
  • पिछले कई वर्षों से इस उपबंध का उपयोग मुख्यतः दो उद्देश्यों के लिये किया जाता रहा है: पहला, किसी मामले में "पूर्ण न्याय" करना तथा दूसरा, न्यायालय द्वारा विधायी कमियों को दूर करना।

महत्त्वपूर्ण निर्णयज विधियों द्वारा अनुच्छेद 142 का विकास

  • प्रेम चंद गर्ग बनाम आबकारी आयुक्त, उत्तर प्रदेश (1963):
    • संविधान पीठ के समक्ष यह प्रश्न था कि क्या उच्चतम न्यायालय कोई ऐसा विधि का निर्माण कर सकता है या आदेश निष्पादित कर सकता है जो किसी भी मौलिक अधिकार के साथ असंगत हो।
    • न्यायमूर्ति गजेंद्र गडकर ने कहा कि यद्यपि अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्तियाँ व्यापक हैं, फिर भी यह न्यायालय अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्ति का प्रयोग करते हुए किसी भी संवैधानिक उपबंध के साथ स्पष्ट रूप से असंगत आदेश नहीं दे सकता।
    • इस मामले में न्यायालय ने प्रावधान की प्रतिबंधात्मक व्याख्या की।
  • आई.सी. गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (1967):
    • भविष्यलक्षी विनिर्णय के सिद्धांत का आह्वान करते हुए न्यायालय ने कहा कि COI के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अंतर्निहित शक्ति व्यापक एवं लचीली है तथा यह न्यायालय को न्यायिक उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिये विधिक सिद्धांत का निर्माण करने में सक्षम बनाती है।
  • यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम भारत संघ (1991):
    • न्यायालय ने कहा कि सामान्य विधियों में निहित सीमाएँ या निषेध COI के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्तियों के प्रयोग पर स्वतः ही प्रतिबंध नहीं हो सकते।
    • उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार एवं यूनियन कार्बाइड के मध्य हुए समझौते को यथावत रखा तथा UCC के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में लंबित सभी दीवानी एवं आपराधिक कार्यवाही को अपास्त कर दिया ताकि उसके समक्ष लंबित मामले में पूर्ण न्याय हो सके।
  • दिल्ली न्यायिक सेवा संघ बनाम गुजरात राज्य (1991):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अंतर्निहित शक्ति, अनुच्छेद 32 एवं अनुच्छेद 136 के अंतर्गत शक्ति के साथ मिलकर उसे उच्चतम न्यायालय के समक्ष मामले में पूर्ण न्याय करने के लिये किसी भी न्यायालय के समक्ष कार्यवाही को अपास्त करने की शक्ति प्रदान करती है।
  • सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1998):
    • उच्चतम न्यायालय (SC) ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय की पूर्ण शक्तियाँ न्यायालय में अंतर्निहित हैं तथा उन शक्तियों की पूरक हैं जो विभिन्न विधियों द्वारा न्यायालय को विशेष रूप से प्रदान की गई हैं, हालाँकि वे उन विधियों द्वारा सीमित नहीं हैं।
    • ये शक्तियाँ बहुत व्यापक आयाम की हैं तथा पूरक शक्तियों की प्रकृति की हैं।
    • इस प्रकार, जब भी ऐसा करना न्यायसंगत एवं समतापूर्ण हो तथा विशेष रूप से विधि की उचित प्रक्रिया का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये, विधि के अनुसार न्याय करते हुए पक्षकारों के मध्य पूर्ण न्याय करने के लिये इसका प्रयोग उच्चतम न्यायालय आवश्यकतानुसार कर सकता है। यह पूर्ण अधिकारिता शक्ति का अवशिष्ट स्रोत है।

COI के अनुच्छेद 142 पर हालिया निर्णयज विधियाँ

  • शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन (2023):
    • न्यायालय ने इस मामले में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत निम्नलिखित बिंदु विहित किये:
  • न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्तियों का प्रयोग करते हुए न्यायालय प्रक्रिया के साथ-साथ मूल विधियों से भी अलग हट सकता है, बशर्ते निर्णय सार्वजनिक नीति के विचारों पर आधारित हो।
  • इसके अतिरिक्त यह भी माना गया कि अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अधिकारिता का प्रयोग करते हुए न्यायालय:
    • न्यायालय को पक्षकारों के मध्य समझौते को ध्यान में रखते हुए आपसी सहमति से बिना किसी दूसरी याचिका दायर करने की प्रक्रियागत आवश्यकता से बंँधे हुए विवाह विच्छेद का आदेश पारित करके विवाह को भंग करने का विवेकाधिकार है,
    • न्यायालय COI के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए आपराधिक कार्यवाही सहित सिविल कार्यवाही और आदेशों को अपास्त एवं निपटान कर सकता है।
    • न्यायालय को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142(1) के अंतर्गत शक्ति का प्रयोग करते हुए विवाह को उसके अपरिवर्तनीय विघटन के आधार पर विघटित करने का विवेकाधिकार प्राप्त है।
    • इस विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग पक्षकारों के साथ 'पूर्ण न्याय' करने के लिये किया जाता है, जिसमें यह न्यायालय इस बात से संतुष्ट है कि स्थापित तथ्य दर्शाते हैं कि विवाह पूर्ण रूपेण विफल हो गया है तथा इसकी कोई संभावना नहीं है कि पक्षकार एक साथ रहेंगे एवं औपचारिक विधिक संबंध का बने रहना अनुचित है।
  • डॉ. निर्मल सिंह पनेसर बनाम श्रीमती परमजीत कौर पनेसर उर्फ अजिंदर कौर पनेसर (2023):
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विवाह को ‘अपूरणीय रूप से भंग होने’ के आधार पर भी भंग किया जा सकता है, भले ही पति-पत्नी में से कोई एक विवाह विच्छेद का विरोध करता हो।
    • हालाँकि न्यायालय ने कहा कि इस तरह के विवेक का प्रयोग बहुत सावधानी एवं सतर्कता के साथ किया जाना चाहिये।
  • हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2024):
    • इस मामले में न्यायालय ने कुछ महत्त्वपूर्ण मानदण्ड विहित किये जो अनुच्छेद 142 के अंतर्गत प्रासंगिक हैं:
      • अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अधिकारिता पूर्ण न्याय करना है तथा इसका प्रयोग बड़ी संख्या में वादियों द्वारा उनके पक्ष में पारित न्यायिक आदेशों के आधार पर प्राप्त लाभों को अस्वीकृत करने के लिये नहीं किया जा सकता है।
      • अनुच्छेद 142 इस न्यायालय को वादियों के मौलिक अधिकारों की अनदेखी करने का अधिकार नहीं देता है।
      • न्यायालय इस प्रावधान के अंतर्गत अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए सदैव प्रक्रियात्मक पहलुओं को सुव्यवस्थित करने के लिये प्रक्रियात्मक निर्देश निर्गत कर सकता है, लेकिन यह न्यायालय उन वादियों के मूल अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता जो उसके समक्ष मामले में पक्षकार नहीं हैं।
      • अनुच्छेद 142 के अंतर्गत इस न्यायालय की शक्ति का प्रयोग प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को असफल करने के लिये नहीं किया जा सकता है, जो हमारे न्यायशास्त्र का एक अभिन्न अंग हैं।

निष्कर्ष:

अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त अंतर्निहित शक्ति है तथा इसका प्रयोग केवल उच्चतम न्यायालय ही करता है। न्यायालय पूर्ण न्याय करने के लिये इस शक्ति का प्रयोग करता है। यह न्यायालय की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण शक्ति है जो विधानमंडल द्वारा किसी भी चूक की भरपाई करने में न्यायालय की सहायता करती है।