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सांविधानिक विधि

COI का अनुच्छेद 16

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 24-Sep-2024

परिचय

भारतीय संविधान, 1950 (COI) का अनुच्छेद 16 संविधान के भाग III में उपबंधित किया गया है। अनुच्छेद 16 एक मौलिक अधिकार है जो भारत के सभी नागरिकों को राज्य के सार्वजनिक रोजगारों में समान अवसर की गारंटी देता है। यह राज्य के अंतर्गत किसी भी रोजगार या कार्यालय के संबंध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव को निषेध करता है।

  • अनुच्छेद 16 यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को सरकारी रोजगार में समान अवसर प्राप्त हों तथा कुछ विशेषताओं के आधार पर अनुचित व्यवहार पर रोक लगाई जाए।
  • इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 16 ऐतिहासिक एवं सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिये अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों जैसे वंचित समूहों के लिये सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण की अनुमति देता है।

COI का अनुच्छेद 16 क्या है?

  • अनुच्छेद 16 में संक्षेप में उन उपबंधों का उल्लेख किया गया है जो एक सामान्य नियम के रूप में, किन्तु कुछ अपवादों के अधीन, बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों को सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर की गारंटी देते हैं।

सामान्य नियम

  • खंड (1) में समान अवसर का उपबंध इस प्रकार है:
    • राज्य के अधीन सार्वजनिक रोजगार के मामलों में सभी नागरिकों को अवसर की समानता।
    • यह केवल केंद्र एवं राज्य सरकारों के अधीन कार्यालयों पर लागू होता है।
  • खंड (2) सार्वजनिक रोजगार तक समान पहुँच का उपबंध इस प्रकार हैं:
    • यह राज्य को सार्वजनिक रोजगार के मामले में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर नागरिकों के विरुद्ध कोई भेदभाव करने से रोकता है।

सामान्य नियम के अपवाद

  • खंड (3) में संसद द्वारा विधि निर्माण करने के उपबंध इस प्रकार हैं:
    • यह संसद को किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में निवास को संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में या उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के अंदर स्थानीय प्राधिकारियों या अन्य प्राधिकारियों में विशेष रोजगार या नियुक्ति के लिये पूर्व शर्त के रूप में अनिवार्य बनाने वाला कोई भी विधि निर्माण करने का अधिकार देता है।
  • खंड (4) में आरक्षण के उपबंध इस प्रकार हैं:
    • यह राज्य को नागरिकों के किसी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये उपबंध करने की शक्ति प्रदान करता है, जिसका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • खंड (4A) में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये विशेष उपबंधों का उल्लेख इस प्रकार है:
    • यह सार्वजनिक रोजगार में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में पदों के आरक्षण का उपबंध करता है।
    • इसे 77वें संविधान संशोधन 1995 द्वारा जोड़ा गया था।
  • खंड (4B) में पदोन्नति में आरक्षण के उपबंध इस प्रकार हैं:
    • यह राज्य को अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में राज्य के अधीन सेवाओं में किसी भी वर्ग या वर्गों के पदों पर पदोन्नति के मामलों में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देता है।
    • इसे 81वें संविधान संशोधन, 2000 द्वारा जोड़ा गया था।
  • खंड (5) उन विधानों के अधिनियमन के उपबंधों को उपबंधित करता है जहाँ खंड (1) एवं खंड (2) लागू नहीं होंगे:
    यह किसी भी पद पर आसीन व्यक्ति को किसी विशेष धर्म या विशेष संप्रदाय से संबंधित व्यक्ति की नियुक्ति के लिये धार्मिक रूप से योग्य होने की अनुमति देता है।
  • खंड (6) में पदोन्नति में आरक्षण के उपबंध इस प्रकार उपबंधित करता हैं:
    यह राज्य को मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त खंड (4) में उल्लिखित वर्ग के अतिरिक्त किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर नागरिक वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों को आरक्षित करने की अनुमति देता है तथा प्रत्येक श्रेणी में अधिकतम 10% पदों के अधीन है।

अवसर

  • यह अनुच्छेद दो प्रकार के अवसरों के विषय में उपबंधित करता है,
    • अवसर की समानता
    • अवसर की मौलिक समानता

अवसर की समानता:

  • अनुच्छेद 16 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिकों को उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना सरकारी सेवाओं में नियोजित होने का समान अवसर मिले।
  • अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) का उद्देश्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की अवसर की समानता सुनिश्चित करना है, एक वर्ग के अंदर उप-वर्गीकरण के लिये मानदंड (चाहे वह अन्य पिछड़ा वर्ग हो या अनुसूचित जाति या जनजाति) सामाजिक पिछड़ेपन का संकेतक होना चाहिये।
  • अवसर की समानता को इन दो शर्तों के अधीन समान प्रतिनिधित्व की भाषा में तैयार किया गया था।

अवसर की मौलिक समानता:

  • मौलिक समानता की अवधारणा औपचारिक समानता से आगे जाती है, क्योंकि इसमें यह मान्यता दी गई है कि ऐतिहासिक अलाभों एवं सामाजिक असमानताओं के कारण सभी के साथ समान व्यवहार करने से वास्तविक समानता नहीं हो सकती है।
  • COI के अनुच्छेद 16, खंड 4, 4A और 4B के अंतर्गत इसे स्पष्ट किया गया है।

COI के अनुच्छेद 16 का क्रमिक विकास

  • मद्रास राज्य बनाम चम्पकम दोराईराजन (1951):
    • उच्चतम न्यायालय ने प्रारंभ में औपचारिक दृष्टिकोण अपनाया तथा आरक्षण को समान अवसर के अपवाद के रूप में पाया।
    • न्यायालय ने माना कि शैक्षणिक संस्थानों में सीटों का आरक्षण स्पष्ट उपबंध के बिना असंवैधानिक है।
  • वेंकटरमण बनाम मद्रास राज्य (1951):
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि केवल हरिजन एवं पिछड़े हिंदुओं को ही सार्वजनिक नौकरियों में आरक्षण के लिये "पिछड़ा वर्ग" माना जा सकता है।
  • एम. आर. बालाजी बनाम मैसूर राज्य (1962):
    • उच्चतम न्यायालय ने पहली बार आरक्षण के लिये 50% की अधिकतम सीमा निर्धारित की।
  • केरल राज्य बनाम एन एम थॉमस (1975)
    • उच्चतम न्यायालय ने समानता संहिता का "व्यापक एवं सारगर्भित अध्ययन" किया तथा केरल के उस विधि को यथावत रखा, जिसमें सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों के लिये योग्यता मानदंडों में ढील दी गई थी।
  • इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) (मंडल निर्णय):
    • न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) विशेष उपबंध हैं, जो कि समानता के सिद्धांत के अपवाद हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि पदोन्नति में आरक्षण से प्रशासन की कार्यकुशलता कम होगी।
  • संविधान (सत्तरवाँ) संशोधन अधिनियम (1995):
    • पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देने तथा "कैच-अप नियम" को समाप्त करने के लिये अनुच्छेद 16(4A) जोड़ा गया।
  • ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य (2004):
    • परिणामी वरिष्ठता संबंधी विधि को यथावत रखा गया, जिसमें कहा गया कि इस नियम से प्रशासन की कार्यकुशलता में केवल ढील दी गई है, उसे "नष्ट" नहीं किया गया है।
  • पंजाब राज्य एवं अन्य बनाम दविंदर सिंह एवं अन्य (2020):
    • इस मामले में न्यायालय ने कोटा बनाम दक्षता के प्रश्न को नए सिरे से परिभाषित किया तथा तर्क दिया कि आरक्षण संविधान में मूल समानता के आदेश को दर्शाता है, न कि समानता के नियम का अपवाद।
    • दक्षता के विषय पर CJI चंद्रचूड़ की राय: तर्क दिया गया कि किसी परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करना आवश्यक रूप से उच्च दक्षता में योगदान नहीं देता है, तथा न्यूनतम योग्यताएँ पूरी करना कुशल प्रशासन बनाए रखने के लिये पर्याप्त है।
    • दक्षता की पारंपरिक धारणाओं पर संभावित प्रभावों के बावजूद आरक्षण को वास्तविक समानता सुनिश्चित करने के साधन के रूप में देखा जाता है।
    • आरक्षण बनाम योग्यता की दोहरे आधार एवं तर्क को अस्वीकार कर दिया गया है, संवैधानिक संशोधनों को इसका "एक जोरदार खंडन" माना जाता है।

COI के अनुच्छेद 16 के अंतर्गत कौन से ऐतिहासिक निर्णय दिये गए हैं?

  • टी. देवदासन बनाम भारत संघ (1964): कैरी फॉरवर्ड नियम का मामला
    • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि असमानुपातिक आरक्षण लागू करके समान अवसर के विचार का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिये, अन्यथा यह COI के अनुच्छेद 14 को प्रभावित करेगा।
    • उच्चतम न्यायालय ने यह भी स्पष्ट रूप से माना कि यदि आरक्षण 50% से अधिक हो जाता है तो कैरी फॉरवर्ड नियम (अग्रनयन का नियम) कार्य करना बंद कर देगा।
  • इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ (1993): मंडल आयोग मामला
    • नौ न्यायाधीशों की पीठ के अनुसार, अनुच्छेद 16(4) पदोन्नति में आरक्षण प्रदान नहीं करता है, क्योंकि यह केवल नियुक्तियों में आरक्षण पर लागू होता है। सरकारी नौकरियों में SC/ST को दिये जाने वाले सभी पदोन्नति आरक्षण अब इस निर्णय के कारण खतरे में हैं।
    • 16 नवंबर 1992 के बाद, न्यायालय के निर्णय ने पदोन्नति में आरक्षण को अगले पाँच वर्षों तक जारी रखने की अनुमति दी।
  • अजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1999): कैच-अप नियम एवं परिणामी वरिष्ठता का मामला
    • उच्चतम न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 16(1) पर जोर देते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति पदोन्नति के लिये पात्रता एवं मानदंडों को पूरा करता है, लेकिन फिर भी उसे पदोन्नति के लिये नहीं माना जाता है, तो यह उसके मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन होगा।
  • एम. नागराज बनाम भारत संघ (2006):
    • उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित सभी विवादित संशोधनों की संवैधानिक वैधता को यथावत बनाए रखा।
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14, 15 एवं 16 के अंतर्गत समानता के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं करते हैं।
    • न्यायालय ने कहा कि संशोधन सक्षम उपबंध हैं, जो राज्यों को पिछड़ेपन, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व की पहचान करने एवं समग्र दक्षता बनाए रखने पर पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देते हैं, लेकिन बाध्य नहीं करते हैं।
  • जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामला (2018):
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि पदोन्नति में आरक्षण के लिये राज्य को अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के पिछड़ेपन पर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है।
    • न्यायालय ने कहा कि क्रीमी लेयर का बहिष्कार SC/ST तक विस्तृत है तथा इसलिये राज्य SC/ST व्यक्तियों को पदोन्नति में आरक्षण नहीं दे सकता है जो अपने समुदाय के क्रीमी लेयर से संबंधित हैं।
  • अजय कुमार शुक्ला एवं अन्य बनाम अरविंद राय एवं अन्य (2021)
    • गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इस मामले में माना कि पदोन्नति पाने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि किसी कर्मचारी को केवल तभी पदोन्नति के लिये विचार किये जाने का अधिकार है, जब प्रासंगिक नियमों के तहत ऐसा आवश्यक हो।
  • जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022):
    • 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई। उच्चतम न्यायालय ने 103वें संविधान संशोधन की वैधता को यथावत रखा।
    • उच्चतम न्यायालय ने, अनुच्छेद 15 एवं 16 में संशोधन करके 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के अंतर्गत 10% EWS आरक्षण के उपबंध को न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत संवैधानिक माना।
    • इसने अनुच्छेद 15 (6) एवं अनुच्छेद 16 (6) को उपबंधित किया।

निष्कर्ष

समानता के अधिकार को सबसे महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकार माना जाता है। यह समाज के आर्थिक एवं सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित लोगों के समान अवसर एवं उत्थान की गारंटी देता है। इसने सार्वजनिक रोजगार के अंतर्गत समान वेतन एवं समान कार्य की अवधारणा को भी सामने लाया। यह उपबंध राष्ट्र के समग्र विकास एवं सभी को समान अवसर प्रदान करने के लिये महत्त्वपूर्ण था।