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सांविधानिक विधि

भारतीय संविधान के तहत निर्वाचन

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 21-Jan-2025

परिचय

चुनावी प्रक्रिया भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे की आधारशिला का प्रतिनिधित्व करती है, जो नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने और राष्ट्र के भविष्य को आकार देने में भाग लेने में सक्षम बनाती है।

  • भारतीय संविधान के भाग XV - चुनाव के माध्यम से अनुच्छेद 324 से 329 तक एक परिष्कृत चुनाव प्रणाली स्थापित की गई है जो विश्वव के सबसे बड़े लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करती है।
  • ये प्रावधान न केवल आवश्यक संस्थागत ढाँचे का निर्माण करते हैं, बल्कि संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया के आधारभूत लोकतांत्रिक सिद्धांतों की भी रक्षा करते हैं।

संवैधानिक प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण

  • अनुच्छेद 324: चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण निर्वाचन आयोग में निहित होगा।
    • यह अनुच्छेद भारत में चुनाव संचालन के लिये निर्वाचन आयोग को सर्वोच्च प्राधिकारी के रूप में स्थापित करता है।
  • पहला खंड सभी चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण को एक एकल स्वतंत्र निकाय - भारत के निर्वाचन आयोग को सौंपता है।
  • इसमें निम्नलिखित विकल्प शामिल हैं:
    • राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति का कार्यालय।
    • संसद के दोनों सदन (लोकसभा और राज्यसभा)।
    • राज्य विधान सभाएँ और परिषदें।
  • दूसरा खंड निर्वाचन आयोग की संरचना प्रदान करता है:
    • इसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान है।
    • यह राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की अनुमति देता है।
    • निर्वाचन आयोग की सहायता के लिये क्षेत्रीय आयुक्तों की नियुक्ति की जा सकती है।
    • सभी नियुक्तियाँ राष्ट्रपति द्वारा प्रासंगिक कानूनों के अधीन की जाती हैं।
  • तीसरे खंड में निर्वाचन आयुक्तों के लिये सेवा की शर्तें बताई गई हैं:
    • निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल और सेवा की शर्तें संसद द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
    • नियुक्ति के बाद इन शर्तों में उनके नुकसान के अनुसार बदलाव नहीं किया जा सकता।
    • मुख्य निर्वाचन आयुक्त को केवल उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान प्रक्रिया के माध्यम से ही हटाया जा सकता है।
    • अन्य निर्वाचन आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश के बिना हटाया नहीं जा सकता।
  • चौथा और पाँचवाँ खंड प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करता है:
    • निर्वाचन आयोग द्वारा अनुरोध किये जाने पर राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल को आवश्यक स्टाफ उपलब्ध कराना होगा।
    • यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि आयोग के पास अपने संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन हों।
  • अनुच्छेद 325: कोई भी व्यक्ति धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी विशेष मतदाता सूची में शामिल होने के लिये अपात्र नहीं होगा या शामिल होने का दावा नहीं करेगा।
    • यह अनुच्छेद एकीकृत मतदाता सूची का सिद्धांत स्थापित करता है:
    • प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिये एक सामान्य मतदाता सूची होगी।
    • किसी भी व्यक्ति को धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जा सकता।
    • यह प्रावधान COI के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार को मज़बूत करता है।
    • यह स्वतंत्रता-पूर्व के अनुभवों से सीख लेते हुए पृथक निर्वाचिका मंडलों के निर्माण को रोकता है।
  • अनुच्छेद 326: लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के लिये चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे।
    • यह लेख मतदान प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बनाता है:
      • वयस्क मताधिकार के आधार पर लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के लिये चुनाव की स्थापना।
      • मतदान की आयु 18 वर्ष निर्धारित करना (61वें संशोधन के माध्यम से 21 वर्ष से घटा दिया गया)।
    • निम्नलिखित आधारों को छोड़कर मताधिकार में भेदभाव का निषेध:
      • गैर-निवास।
      • चित्त-विकृति।
      • अपराध।
      • भ्रष्ट या अवैध चुनावी प्रथाएँ।
  • अनुच्छेद 327: विधानमंडलों के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति।
    • यह प्रावधान संसद को निम्नलिखित के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है:
      • संसद के किसी भी सदन के निर्वाचन से संबंधित सभी मामले।
      • राज्य विधानमंडलों के निर्वाचन से संबंधित सभी मामले।
      • इसमें मतदाता सूची तैयार करना, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और निर्वाचन प्रशासन के अन्य सभी पहलू शामिल होते हैं।
  • अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल की ऐसे विधानमंडल के लिये चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की शक्ति।
    • यह लेख COI के अनुच्छेद 327 का पूरक है:
      • राज्य विधानमंडलों को राज्य चुनावों के लिये कानून बनाने की शक्ति देना।
      • यह सुनिश्चित करना कि ये कानून संवैधानिक प्रावधानों के अधीन रहें।
      • केंद्रीय और राज्य चुनाव कानूनों के बीच सामंजस्य बनाए रखना चाहिये।
  • अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप का निषेध।
    • इस महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद में निम्नलिखित बातें बताई गई हैं:
      • चुनाव अवधि के दौरान न्यायिक हस्तक्षेप से चुनावी प्रक्रिया का संरक्षण।
      • चुनाव विवादों के समाधान के लिये एक विशेष तंत्र की स्थापना।
      • यह अपेक्षा है कि चुनाव संबंधी चुनौतियाँ केवल चुनाव याचिकाओं के माध्यम से ही दी जाएँ।
      • चुनाव विवादों की सुनवाई के लिये उपयुक्त मंचों का निर्धारण।

चुनावी सुरक्षा और कार्यान्वयन

  • संवैधानिक प्रावधान चुनावी प्रक्रिया के लिये सुरक्षा के कई स्तर बनाते हैं:
    • संस्थागत स्वतंत्रता: निर्वाचन आयोग को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण प्राप्त है, जिससे चुनाव संचालन में उसकी स्वायत्तता सुनिश्चित होती है।
    • सार्वभौमिक भागीदारी: प्रावधान भेदभाव पर रोक लगाकर और वयस्क मताधिकार की स्थापना करके समावेशी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।
    • कानूनी ढांचा: संसद और राज्य विधानसभाओं के बीच विधायी शक्तियों का स्पष्ट विभाजन व्यापक चुनावी कानूनों को सक्षम बनाता है।
    • विवाद समाधान: चुनाव विवादों से निपटने के लिये विशेष तंत्र देरी को रोकते हैं और चुनावी मामलों पर विशेषज्ञ ध्यान सुनिश्चित करते हैं।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324-329 एक मज़बूत ढाँचा तैयार करते हैं, जिसके माध्यम से सात दशकों से अधिक समय से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावों का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया जा रहा है। ये प्रावधान संस्थापकों के उस लोकतांत्रिक राष्ट्र के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करते हैं जहाँ प्रत्येक नागरिक को अपने प्रतिनिधियों को चुनने में समान अधिकार प्राप्त होगा। जैसे-जैसे भारत निरंतर विकसित हो रहा है, ये संवैधानिक आधार इसकी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता और प्रभावशीलता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं, तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक पात्र नागरिक की आवाज़ मतपेटी के माध्यम से सुनी जा सके।