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सांविधानिक विधि

व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता

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 16-Oct-2024

परिचय

बहुत समय पहले से ही संविधान सभा व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की इच्छुक थी।

  • भारतीय संविधान, 1950 (COI) के भाग XIII में भारत के क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता पर आधारित अनुच्छेदों का उल्लेख है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 में विशेष रूप से व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता के बारे में बताया गया है।

व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता क्या है?

  • संविधान के अनुच्छेद 301 में व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता का उल्लेख है, इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत के सम्पूर्ण राज्यक्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य और समागम स्वतंत्र होंगे।
  • इसका अर्थ है कि व्यापार पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। 
  • इसका अर्थ यह भी है कि वस्तुओं का आवागमन एवं विनिमय मुक्त होगा।
  • अनुच्छेद 301 के अनुसार, देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में वस्तुओं की मुक्त आवाजाही होगी।

व्यापार

  • यह वस्तुओं की खरीद और बिक्री को दर्शाता है।
  • व्यापार के एक अभिन्न अंग में एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन या वाणिज्या भी शामिल होता है। 
  • यह मूल रूप से वस्तुओं का विनिमय होता है। 

वाणिज्य

  • वाणिज्य भी एक तरह का व्यापार होता है, लेकिन वाणिज्य के लिये पारेषण आवश्यक होता है। 
  • व्यापार के विपरीत, लाभ कमाना वाणिज्य नहीं होता है। 
  • वाणिज्य में वस्तुओं, मनुष्यों और पशुओं का परिवहन शामिल होता है। 

समागम 

  • इसमें व्यापार और वाणिज्य दोनों शामिल होते हैं। 
  • इसमें एक-दूसरे के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने के लिये लोगों की आवाजाही जैसी गतिविधियाँ भी शामिल होती हैं। 
  • इसका अर्थ होता है लोगों को देश के एक हिस्से में यात्रा करने और देश के दूसरे हिस्से के लोगों के साथ व्यवहार करने की स्वतंत्रता। 

संविधान के अनुच्छेद 301 का उद्देश्य क्या है? 

  • यह अनुच्छेद राज्यों के बीच व्यापारिक बाधाओं को समाप्त करने के उद्देश्य से बनाया गया था। 
  • इसने राज्यों के बीच व्यापार की एकता को प्रोत्साहित किया। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय आर्थिक ताने-बाने का निर्माण और संरक्षण करना है।

"रेस एक्स्ट्रा कॉमर्सियम" का सिद्धांत क्या है? 

  • यह सिद्धांत COI के अनुच्छेद 301 के अंतर्गत प्रदान किया गया है और इसका अर्थ है कि ऐसी गतिविधियाँ जिन्हें वैध व्यापार और वाणिज्य या व्यवसाय नहीं माना जा सकता।
  • फतेह चंद बनाम महाराष्ट्र राज्य (1977) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना था कि ग्रामीण क्षेत्रों में धन उधार देने का व्यवस्थित कार्य व्यापार के अंतर्गत आता है।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि यही गतिविधि बेईमान व्यक्तियों द्वारा संचालित की जाती है जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के विरुद्ध है, क्योंकि इससे समाज के कमज़ोर वर्ग का शोषण होता है।
  • कमज़ोर समाज के शोषण को रोकने और लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सहायता करने के लिये राज्य द्वारा संचालित गतिविधियों को व्यापार या कारोबार माना जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 301 का दायरा क्या है?

  • संविधान के अनुच्छेद 301 को ऑस्ट्रेलियाई संविधान के अनुच्छेद 92 से अपनाया गया है। 
  • ऑस्ट्रेलियाई संविधान के अनुच्छेद 92 का हवाला देते हुए, भारतीय संविधान ने भारत के पूरे क्षेत्र के साथ-साथ अंतर और अंतर-राज्यीय व्यापार को भी मुक्त बना दिया है। 
  • संविधान का अनुच्छेद 301 राज्य और संघ की विधायी शक्तियों पर सामान्य प्रतिबंध भी लगाता है।

प्रत्यक्ष एवं तत्काल प्रतिबंध क्या हैं? 

  • कोई भी कानून जो प्रत्यक्ष रूप से और तत्काल व्यापार के मुक्त प्रवाह या आवागमन को बाधित या प्रतिबंधित करता है, कर कानूनों के कुछ अपवादों के साथ अनुच्छेद 301 में दी गई गारंटी का उल्लंघन होगा।

विनियामक उपाय और प्रतिकरात्मक कर क्या हैं? 

  • COI के अनुच्छेद 301 के अनुसार, जो उपाय प्रतिकरात्मक कर लगाते हैं या विशुद्ध रूप से विनियामक होते हैं, वे 'प्रतिबंधों' के दायरे में नहीं आते हैं। 
  • यह कहा जा सकता है कि मोटर वाहन के मालिकों पर प्रति वाहन कर लगाने वाला राज्य कानून प्रत्यक्ष रूप से व्यापार या वाणिज्य की स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं करता है, भले ही यह अप्रत्यक्ष रूप से कर लगाने वाले राज्य के क्षेत्र के भीतर यात्रियों और वस्तुओं की आवाजाही पर भार डालता हो।

व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध क्या हैं? 

  • संसदीय कानून सार्वजनिक हित में आवश्यक होने पर व्यापार और वाणिज्य पर प्रतिबंध लगा सकता है (अनुच्छेद 302)
  • वस्तुओं की कमी को पूरा करने के लिये प्रतिबंध (अनुच्छेद 303)
  • व्यापार और वाणिज्य को विनियमित करने के लिये राज्य कानून (अनुच्छेद 304)
  • मौजूदा कानूनों को अनुच्छेद 301 (अनुच्छेद 305) के दायरे से बचाया जाता है।

ऐतिहासिक निर्णय

  • ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950): 
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संघ में अंतर-राज्यीय बाधाओं को यथासंभव न्यूनतम करना आवश्यक होता है, ताकि लोगों के मन में एकता की भावना उत्पन्न हो सके।
  • अटियाबारी टी कंपनी बनाम असम राज्य (1961): 
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय प्रगति सुनिश्चित करने के लिये पूरे देश में व्यापार का मुक्त प्रवाह होना चाहिये। 
    • उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि परिवहन को सीधे प्रतिबंधित करने वाले वस्तुओं पर लगाया गया कर संविधान के अनुच्छेद 301 का उल्लंघन होता है।
  • बॉम्बे राज्य बनाम आरएम.डी. चमरबागवाला (1957):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि लॉटरी जुआ होता है और इसके लिये किसी कौशल की आवश्यकता नहीं होती है तथा यह व्यापार और वाणिज्य के दायरे में नहीं आता है।
  • ऑटोमोबाइल ट्रांसपोर्ट लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य (1958): 
    • इस मामले में यह माना गया कि व्यापार और वाणिज्य पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 301 का उल्लंघन होगा। 
    • न्यायालय ने इस मामले के अंतर्गत कुछ सिद्धांत निर्धारित किये: 
      • व्यापार, वाणिज्य और समागम पर लागू होने वाला कोई भी उपाय संविधान के अनुच्छेद 301 का उल्लंघन नहीं होगा।
      • व्यापार, वाणिज्य और समागम पर सीधे और तुरंत लागू होने वाला कोई भी उपाय संविधान के अनुच्छेद 301 के तहत उल्लंघन हो सकता है।
      • व्यापार पर सीधे और तुरंत लागू होने वाला कोई भी उपाय संविधान के अनुच्छेद 301 का उल्लंघन नहीं कर सकता, सिवाय इसके कि इसमें किसी विनियामक या कर लगाने का प्रावधान हो।

निष्कर्ष

संविधान के अनुच्छेद 302 से अनुच्छेद 305 तक व्यापार और वाणिज्य तथा समागम की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए गए हैं क्योंकि यह अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है। अनुच्छेद 301 के लागू होने से देश भर में व्यापार में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा और यह क्षेत्र की सभी बाधाओं से मुक्त होकर राष्ट्र को एकजुट करने में सहायता करेगा।