होम / भारत का संविधान
सांविधानिक विधि
संसद में विधेयक पारित करने की विधायी प्रक्रिया
«07-Jan-2025
परिचय
- भारतीय संसद में विधायी प्रक्रिया का विस्तृत विवरण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 107 से अनुच्छेद 111 में उपबंधित किया गया है।
- ये अनुच्छेद विधेयकों को प्रस्तुत करने, उन पर चर्चा करने और उन्हें विधान बनाने की प्रक्रिया के विषय में रूपरेखा तैयार करते हैं, जो भारत की विधायी प्रक्रिया की आधारशिला है।
- प्रत्येक अनुच्छेद प्रक्रिया के विशिष्ट पहलुओं को संबोधित करता है, जिससे विधान बनाने के लिये एक व्यवस्थित एवं लोकतांत्रिक दृष्टिकोण सुनिश्चित होता है।
- COI के भाग V, अध्याय II में विधेयकों को पारित करने के लिये विधायी प्रक्रिया के लिये अनुच्छेद उपबंधित किये गए हैं।
विधेयक के प्रकार
COI के अंतर्गत विधिक उपबंध
अनुच्छेद 107:विधेयकों के प्रस्तुतीकरण एवं पारित करने के संबंध में उपबंध
- खंड (1): विधेयकों का परिचय
- विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
- धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
- कुछ विधेयकों के लिये राष्ट्रपति की पूर्व संस्तुति आवश्यक है।
- खंड (2): विधेयक पारित करना
- विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना चाहिये।
- इसे मूल रूप में या संशोधनों के साथ पारित किया जा सकता है।
- दोनों सदनों को अंतिम संस्करण पर सहमत होना चाहिये।
- खंड (3): असहमति का समाधान
- अनुच्छेद 108 के अंतर्गत संयुक्त बैठक का उपबंध।
- यह तब लागू होता है जब सदन विधेयक के अंतिम स्वरूप पर सहमत होने में विफल हो जाते हैं।
- यह धन विधेयकों पर लागू नहीं होता।
- खंड (4): विधेयकों का व्यपगत होना
- लोक सभा में लंबित विधेयक, लोकसभा के विघटन पर समाप्त हो जाते हैं।
- राज्यसभा में लंबित विधेयक, लोक सभा के विघटन पर समाप्त नहीं होते।
- अपवाद यह है कि राज्य सभा से उत्पन्न किन्तु लोक सभा में लंबित विधेयक, खंड (5) के अनुसार राज्य सभा के विघटन पर समाप्त हो जाएंगे।
अनुच्छेद 108: दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
- खंड (1):
- संयुक्त बैठक के लिये शर्तें-
- विधेयक को एक सदन द्वारा पारित करने के बाद दूसरे सदन द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाना।
- संशोधनों पर सदनों में असहमति।
- दूसरे सदन द्वारा विधेयक पर विचार किये बिना छह महीने से अधिक समय बीत जाना।
- संयुक्त बैठक की प्रक्रिया-
- राष्ट्रपति दोनों सदनों के सदस्यों को अधिसूचित करता है।
- लोकसभा अध्यक्ष संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
- उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा निर्णय।
- यदि पारित हो जाता है, तो दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है।
- संयुक्त बैठक के अपवाद-
- संविधान संशोधन विधेयक।
- धन विधेयक।
- राज्य सूचियों में संशोधन करने वाले विधेयक।
- संयुक्त बैठक के लिये शर्तें-
- खंड (2):
- बहिष्करण की अवधि-
- सदन का सत्रावसान समय।
- लगातार चार दिनों से अधिक स्थगन अवधि।
- महत्त्व-
- छह महीने की अवधि की सटीक गणना सुनिश्चित करता है।
- प्रक्रियागत विलंब के माध्यम से समय के कृत्रिम विस्तार को रोकता है।
- केवल सक्रिय संसदीय कार्य अवधि की गणना करता है।
- बहिष्करण की अवधि-
- खंड (3):
- तत्काल प्रभाव-
- कार्यवाही का निलंबन
- दोनों सदनों को विधेयक पर आगे की चर्चा रोक देनी चाहिये।
- विधेयक पर सभी संबंधित संसदीय गतिविधियाँ रोक दी गई हैं।
- राष्ट्रपति की शक्तियाँ-
- अधिसूचना प्राधिकरण
- संयुक्त बैठक के लिये अधिसूचना जारी करने की शक्ति।
- अधिसूचना के बाद किसी भी समय सदन को बुलाया जा सकता है।
- शेड्यूलिंग प्राधिकरण-
- संयुक्त बैठक की तिथि निर्धारित करने में विवेकाधिकार।
- अधिसूचना में उद्देश्य निर्दिष्ट करने का प्राधिकार।
- अनिवार्य अनुपालन-
- सदनों की बैठक राष्ट्रपति की अधिसूचना के अनुसार होनी चाहिये।
- बैठक निर्दिष्ट उद्देश्य के अनुरूप होनी चाहिये।
- खंड (4):
- पैसेज आवश्यकताएँ-
- बहुमत में मतदान
- कुल उपस्थित सदस्यों के बहुमत से पारित होना चाहिये।
- इसमें दोनों सदनों के सदस्य शामिल हैं।
- मतदान संयुक्त बैठक में होना चाहिये।
- संवैधानिक मान्यता
- संयुक्त बैठक में पारित विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है।
- नियमित पारित होने के समान ही इसका विधिक महत्त्व होता है।
- संशोधन पर प्रतिबंध के लिये उपबंध-
- केवल एक सदन द्वारा पारित विधेयकों के लिये
- सीमित संशोधन
- केवल पारित होने में विलंब होने के कारण आवश्यक संशोधनों की अनुमति दी गई।
- किसी भी नए मूल संशोधन की अनुमति नहीं दी गई।
- पारित एवं वापस किये गये विधेयकों के लिये-
- अनुमेय संशोधन
- विलंब के कारण आवश्यक संशोधन।
- सदनों के बीच असहमति के बिंदुओं से संबंधित संशोधन।
- प्रक्रियात्मक प्राधिकरण-
- पीठासीन अधिकारी की शक्तियाँ
- संशोधनों की स्वीकार्यता पर अंतिम प्राधिकारी।
- संशोधन प्रासंगिकता पर निर्णयों को चुनौती नहीं दी जा सकती।
- संशोधनों की आवश्यकता निर्धारित करने की शक्ति।
- खंड (5):
- संयुक्त बैठक की वैधता-
- विघटन के बावजूद जारी रहना
- लोकसभा भंग होने के बाद भी संयुक्त बैठक वैध रहती है।
- राष्ट्रपति की अधिसूचना प्रभावी रहती है।
- बिल पारित करने का प्राधिकरण-
- विधायी निरंतरता
- विधेयक पारित करने का अधिकार यथावत रहेगा।
- विघटन संयुक्त बैठक की कार्यवाही को अमान्य नहीं करता।
- प्रक्रियात्मक वैधता
- संयुक्त बैठक में की गई सभी कार्यवाहियाँ वैध रहती हैं।
- विघटन से पारित विधान की वैधता प्रभावित नहीं होती।
अनुच्छेद 109: धन विधेयक के लिये विशेष प्रक्रिया
- खंड (1): परिचय
- धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
- राष्ट्रपति की संस्तुति आवश्यक है।
- अध्यक्ष का प्रमाणपत्र आवश्यक है।
- खंड (2): राज्य सभा की भूमिका
- केवल अनुशंसा कर सकते हैं।
- 14 दिनों के अंदर विधेयक वापस करना होगा।
- लोकसभा अनुशंसा को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
- खंड (3): लोकसभा की शक्तियाँ
- सभी या किसी भी अनुशंसा को अस्वीकार कर सकते हैं।
- यदि राज्य सभा 14 दिनों के अंदर वापस नहीं आती है तो विधेयक पारित माना जाएगा (खंड 5)।
- खंड (4): स्पीकर का प्रमाण पत्र
- धन विधेयक पर अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है।
- विधेयक को राज्य सभा में भेजे जाने पर प्रमाण-पत्र का समर्थन किया जाना चाहिये।
अनुच्छेद 110:धन विधेयक की परिभाषा
- खंड (1): धन विधेयक के अंतर्गत आने वाले मामले
- करों का अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन।
- सरकारी उधार का विनियमन।
- आकस्मिकता निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा।
- आकस्मिकता निधि से धन का विनियोजन।
- आकस्मिकता निधि पर प्रभारित व्यय की घोषणा।
- आकस्मिकता निधि के खाते में धन की प्राप्ति।
- उपर्युक्त बिंदुओं से संबंधित कोई भी मामला।
- खंड (2): बहिष्कार
- इसे धन विधेयक नहीं माना जाएगा यदि इसमें केवल निम्नलिखित उपबंध हों:
- अर्थदण्ड या दण्ड आरोपित करना।
- लाइसेंस के लिये शुल्क की मांग/भुगतान।
- प्रदान की गई सेवाओं के लिये मांग/भुगतान।
- खंड (3): प्रमाणीकरण
- अध्यक्ष का अनुमोदन आवश्यक है।
- धन विधेयक के प्रश्न पर उनका निर्णय अंतिम है।
अनुच्छेद 111: विधेयकों पर स्वीकृति
- राष्ट्रपति की शक्तियाँ
- विधेयक पर सहमति की घोषणा करें।
- सहमति रोक लें।
- विधेयक को पुनर्विचार के लिये लौटा दें (धन विधेयक को छोड़कर)।
- पुनर्विचार प्रक्रिया
- राष्ट्रपति संशोधन का सुझाव दे सकते हैं।
- संसद को विधेयक पर पुनर्विचार करना चाहिये।
- संशोधनों के साथ या बिना संशोधनों के विधेयक को फिर से पारित किया जा सकता है।
- राष्ट्रपति को दूसरी प्रस्तुति पर स्वीकृति देनी चाहिये।
- समय
- राष्ट्रपति के निर्णय के लिये कोई विशिष्ट समय-सीमा नहीं है।
- परंपरा विचार-विमर्श के लिये उचित समय सुझाती है।
- स्वीकृति से विधेयक संसद का अधिनियम बन जाता है।
निष्कर्ष
ये संवैधानिक उपबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि विधायी प्रक्रिया व्यवस्थित, पारदर्शी एवं प्रभावी बनी रहे, साथ ही आवश्यक जाँच एवं संतुलन भी बनाए रखा जाए। विस्तृत प्रक्रियाएँ एक सशक्त संसदीय लोकतंत्र के निर्माताओं के दृष्टिकोण को दर्शाती हैं जहाँ विधान सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श एवं आम सहमति के माध्यम से बनाए जाते हैं, साथ ही असहमति को हल करने एवं विधायिका के कुशल कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने के लिये तंत्र भी प्रदान करते हैं।