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सांविधानिक विधि

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग(NJAC)

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 01-Apr-2024

परिचय:  

99वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2014 जिसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) एवं NJAC अधिनियम की स्थापना की, जो 2014 में संसद द्वारा पारित किया गया था।

NJAC अधिनियम, 2014:

COI का अनुच्छेद 124A:

  • यह अनुच्छेद NJAC की संघटन से संबंधित है। जिसके अनुसार-
  • (1) राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के नाम से जाना जाने वाला एक आयोग होगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होंगे, अर्थात्-
    • (a) भारत के मुख्य न्यायाधीश पदेन अध्यक्ष के रूप में।
    • (b) भारत के मुख्य न्यायाधीश के बाद उच्चतम न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश पदेन सदस्य होते हैं।
    • (c) पदेन सदस्य के रूप में विधि एवं न्याय के प्रभारी केंद्रीय मंत्री।
    • (d) प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं लोक सभा में विपक्ष के नेता या जहाँ, विपक्ष का नेता नहीं है, वहाँ सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता की समिति द्वारा दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों को नामित किया जाएगा।
      • बशर्ते कि एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक या महिला वर्ग के व्यक्तियों में से नामित किया जाएगा।
      • बशर्ते कि एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को तीन साल की अवधि के लिये नामांकित किया जाएगा जो कि पुनर्नामांकन के लिये पात्र नहीं होगा।
  • (2) राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के किसी भी कार्य या कार्यवाही पर केवल आयोग के संविधान में किसी रिक्ति या दोष के अस्तित्व के आधार पर प्रश्न नहीं उठाया जाएगा या अमान्य नहीं किया जाएगा

COI का अनुच्छेद 124B:

  • यह अनुच्छेद NJAC के कार्यों से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का कर्त्तव्य होगा -
    • भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्ति एवं उच्च न्यायालयों के अन्य न्यायमूर्तियों के रूप में नियुक्ति के लिये व्यक्तियों की सिफारिश करना।
    • उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों एवं अन्य न्यायमूर्तियों को एक उच्च न्यायालय से किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की सिफारिश करना।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि अनुशंसित व्यक्ति योग्य एवं ईमानदार है।

COI का अनुच्छेद 124C:

  • यह अनुच्छेद संसद की विधि निर्माण की शक्ति से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि संसद, विधि द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति एवं उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायमूर्तियों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्ति और अन्य न्यायमूर्तियों की नियुक्ति की प्रक्रिया को विनियमित कर सकती है तथा आयोग को नियमों द्वारा प्रक्रिया निर्धारित करने का अधिकार दे सकती है। अपने कार्यों का निर्वहन, नियुक्ति के लिये व्यक्तियों के चयन की प्रक्रिया तथा ऐसे अन्य मामले जो वह आवश्यक समझे।

NJAC की संवैधानिकता:

  • 2015 में, उच्चतम न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन एवं अन्य बनाम भारत संघ के मामले में 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2014 तथा NJAC अधिनियम, 2014 दोनों को असंवैधानिक एवं शून्य घोषित कर दिया।
  • यह तर्क दिया गया कि दोनों अधिनियम असंवैधानिक एवं अमान्य थे।
  • यह तर्क दिया गया कि 99वें संशोधन अधिनियम ने NJAC के निर्माण के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं भारत के उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों की सामूहिक राय थी कि श्रेष्ठता को छीन लिया, क्योंकि उनकी सामूहिक सिफारिश को वीटो किया जा सकता था या तीन गैर-न्यायमूर्ति सदस्यों के बहुमत से निलंबित कर दिया गया।
  • इसमें कहा गया है कि संशोधन ने संविधान की मूल संरचना को प्रभावित किया है, जिसमें उच्च न्यायपालिका के न्यायमूर्तियों की नियुक्ति में न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक अभिन्न अंग थी।
  • इसने यह भी तर्क दिया कि NJAC अधिनियम स्वयं शून्य एवं संविधान के दायरे से बाहर है।
  • इस निर्णय ने न्यायमूर्तियों की नियुक्ति करने वाली कोलेजियम प्रणाली की श्रेष्ठता को वापस ला दिया