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सांविधानिक विधि

एसटी/एससी और ओबीसी के विनिर्देश

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 19-Dec-2024

परिचय

भारत में, अनुसूचित जनजातियाँ (ST), अनुसूचित जातियाँ (SC), और अन्य पिछड़ी जातियाँ (OBC) ऐसे विशेष समूहों को संदर्भित करती हैं जिन्हें सरकार द्वारा सकारात्मक कार्रवाई और सामाजिक न्याय के लिये मान्यता प्राप्त है।

  • यह वर्गीकरण विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं, शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण को लागू करने के लिये आवश्यक हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि हाशिये पर स्थित समुदायों को आवश्यक सहायता मिले ताकि वे समृद्धि की ओर बढ़ सकें।

अनुसूचित जनजाति

  • परिभाषा:
    • अनुसूचित जनजातियाँ वे समुदाय हैं जिन्हें स्वदेशी या जनजातीय आबादी के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • वे आमतौर पर अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और सामाजिक प्रथाओं के कारण पहचाने जाते हैं।
  • वर्गीकरण हेतु मानदंड:
    • सांस्कृतिक पहचान:
      • ऐसे समुदाय जिनकी सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक प्रथाएँ अद्वितीय हों।
    • भौगोलिक पृथक्करण:
      • वे जनजातियाँ जो प्रायः सुदूर या जंगली क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
    • आर्थिक भेद्यता:
      • ऐसे समुदाय जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं तथा जिनके पास बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच नहीं है।
  • महत्त्व
    • अनुसूचित जनजातियों की मान्यता उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने तथा भूमि एवं संसाधनों पर उनके अधिकार सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • सरकार विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के लिये विभिन्न योजनाएँ प्रदान करती है।

अनुसूचित जाति

  • परिभाषा:
    • अनुसूचित जाति वे समूह हैं जिन्हें ऐतिहासिक रूप से जाति व्यवस्था के आधार पर सामाजिक भेदभाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ा है।
    • उन्हें प्रायः "दलित" के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • वर्गीकरण हेतु मानदंड:
    • ऐतिहासिक भेदभाव:
      • वे समूह जो छुआछूत और सामाजिक बहिष्कार का सामना करते रहे हैं।
    • सामाजिक-आर्थिक स्थिति:
      • ऐसे समूह जो निम्न सामाजिक-आर्थिक संकेतक प्रदर्शित करते हैं, जैसे गरीबी और निरक्षरता।
  • महत्त्व
    • SC वर्गीकरण उन सकारात्मक कार्रवाई नीतियों के कार्यान्वयन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिनका उद्देश्य इन समुदायों को सशक्त बनाना है।
    • शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण बेहतर प्रतिनिधित्व और अवसर सुनिश्चित करने के लिये प्रदान किया जाता है।

अन्य पिछड़ा वर्ग

  • परिभाषा:
    • OBC वे समुदाय हैं जो सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं, लेकिन अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणियों में नहीं आते।
  • वर्गीकरण हेतु मानदंड:
    • सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन:
      • ऐसे समुदाय जिनकी शिक्षा और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच कम है।
    • आर्थिक हानि :
      • वे समूह जो आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, किंतु जिन्हें अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
  • महत्त्व
    • OBC वर्ग को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया जाता है ताकि उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर में सुधार हो सके।
    • यह वर्गीकरण इन समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली विषमताओं को संबोधित करने में सहायता करता है।

भारतीय संविधान के अंतर्गत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित अनुच्छेद

अनुच्छेद 341: अनुसूचित जाति:

  • राष्ट्रपति की शक्तियाँ:
    • राष्ट्रपति को सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से अनुसूचित जातियों को निर्दिष्ट करने का अधिकार है:
      • यह किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश पर लागू होता है।
      • राज्यों के लिये राज्यपाल से परामर्श अनिवार्य है।
      • अधिसूचना में जातियों, नस्लों, जनजातियों या उनके भीतर के भागों/समूहों की पहचान की गई है।
  • संसदीय शक्तियाँ:
    • संसद कानून के माध्यम से अनुसूचित जातियों की सूची को संशोधित कर सकती है:
      • नई जातियों, नस्लों या जनजातियों को शामिल किया जा सकता है।
      • मौजूदा जातियों, नस्लों या जनजातियों को बाहर रखा जा सकता है।
      • उनके भीतर के भागों या समूहों को संशोधित किया जा सकता है।
  • प्रतिबंध: संसद को छोड़कर किसी भी अन्य अधिसूचना के माध्यम से मूल अधिसूचना में संशोधन नहीं किया जा सकेगा।

अनुच्छेद 342: अनुसूचित जनजातियाँ:

  • राष्ट्रपति की शक्तियाँ:
    • राष्ट्रपति को सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों को निर्दिष्ट करने का अधिकार है:
      • किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश पर लागू होता है।
      • राज्यों के लिये राज्यपाल से परामर्श अनिवार्य है।
      • अधिसूचना में जनजातियों, जनजातीय समुदायों या उनके भीतर के भागों/समूहों की पहचान की गई है।
  • संसदीय शक्तियाँ:
    • संसद कानून के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित कर सकती है:
      • नई जनजातियों या जनजातीय समुदायों को शामिल किया जा सकता है।
      • मौजूदा जनजातियों या जनजातीय समुदायों को बाहर रखा जा सकता है।
      • उनके भीतर के भागों या समूहों को संशोधित किया जा सकता है।
    • प्रतिबंध: संसद को छोड़कर किसी भी अन्य अधिसूचना के माध्यम से मूल अधिसूचना में संशोधन नहीं किया जा सकेगा।

अनुच्छेद 342A: सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग

  • राष्ट्रपति की शक्तियाँ:
    • राष्ट्रपति को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने का अधिकार है:
      • केंद्रीय सूची बनाता है और उसका रखरखाव करता है।
      • यह किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश पर लागू होता है।
      • राज्यों के लिये राज्यपाल से परामर्श अनिवार्य है।
  • संसदीय शक्तियाँ:
    • संसद कानून के माध्यम से केंद्रीय सूची को संशोधित कर सकती है:
      • नए पिछड़े वर्गों को शामिल किया जा सकता है।
      • मौजूदा पिछड़े वर्गों को बाहर रखा जा सकता है।
  • प्रतिबंध: संसद को छोड़कर किसी भी अन्य अधिसूचना के माध्यम से मूल अधिसूचना में संशोधन नहीं किया जा सकेगा।

सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ

भारत सरकार ने ST, SC और OBC समुदायों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न नीतियाँ लागू की हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • शिक्षा में आरक्षण:
    • शैक्षणिक संस्थानों में इन समुदायों के लिये एक निश्चित प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं।
  • रोज़गार कोटा:
    • प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये सरकारी नौकरियों में आरक्षण।
  • वित्तीय सहायता:
    • इन समुदायों के छात्रों के लिये छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता।

विकास कार्यक्रम

  • कई विकास कार्यक्रम ST, SC और OBC आबादी की जीवन स्थितियों और सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे:
    • कौशल विकास पहल:
      • रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम।
    • स्वास्थ्य एवं पोषण योजनाएँ:
      • स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने के उद्देश्य से कार्यक्रम।

भारत में आरक्षण पर प्रमुख मामले

  • मद्रास राज्य बनाम चम्पकम दोराईराजन (1951):
    • उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि शैक्षणिक संस्थानों में जाति-आधारित आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 29(2) का उल्लंघन है।
  • बी वेंकटरमण बनाम मद्रास राज्य (1951):
    • अनुच्छेद 16(1) और 16(2) के तहत सार्वजनिक सेवाओं में जाति-आधारित आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया गया।
  • एम.आर. बालाजी बनाम मैसूर राज्य (1963):
    • उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण पर 50% की सीमा तय की और निर्णय दिया कि अत्यधिक आरक्षण अनुच्छेद 15(4) का उल्लंघन है।
  • टी. देवदासन बनाम भारत संघ (1964):
    • न्यायालय ने रिक्त आरक्षित पदों को आगे बढ़ाने के नियम को अमान्य करार देते हुए कहा कि यह समान अवसर के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
  • केरल राज्य बनाम एन.एम. थॉमस (1976):
    • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों के लिये अर्हता अंकों में छूट को बरकरार रखा गया, तथा व्याख्या को मौलिक समानता की ओर स्थानांतरित कर दिया गया।
  • इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992):
    • इस ऐतिहासिक निर्णय में OBC आरक्षण को बरकरार रखा गया, लेकिन पदोन्नति में आरक्षण के विरुद्ध निर्णय सुनाया गया। साथ ही कुल आरक्षण पर 50% की सीमा को भी दोहराया गया।
  • भारत संघ बनाम वीरपाल सिंह चौहान (1995):
    • पदोन्नति में सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिये कैच-अप नियम लागू किया गया।
  • अजीत सिंह जनुजा बनाम पंजाब राज्य (1996):
    • आरक्षण को प्रशासनिक दक्षता के साथ संतुलित करने पर ज़ोर दिया गया, तथा कैच-अप नियम को सुदृढ़ किया गया।
  • एस. विनोद कुमार बनाम भारत संघ (1996):
    • न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों के लिये पदोन्नति हेतु अर्हक अंकों में छूट समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
  • एम. नागराज बनाम भारत संघ (2006):
    • परिणामी वरिष्ठता के साथ पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देने वाले संवैधानिक संशोधनों को बरकरार रखा, बशर्ते कि वे प्रशासनिक दक्षता को प्रभावित न करें।
  • अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ (2008):
    • उच्च शिक्षा में OBCयेके लिए 27% आरक्षण को बरकरार रखा गया, लेकिन क्रीमी लेयर को इसके दायरे से बाहर रखा गया।
  • जरनैल सिंह बनाम लछमी नारायण गुप्ता (2018):
    • उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण लाभ के लिये अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के बीच क्रीमी लेयर को बाहर रखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • बी.के. पवित्रा (II) बनाम कर्नाटक राज्य (2019):
    • पदोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के लिये परिणामी वरिष्ठता को बरकरार रखा गया, जिससे मूलभूत समानता के सिद्धांत को बल मिला।
  • मराठा कोटा मामला (डॉ. जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र) (2021):
    • उच्चतम न्यायालय ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र के कानून को रद्द कर दिया और कहा कि यह इंद्रा साहनी द्वारा निर्धारित 50% की सीमा का उल्लंघन करता है।
  • नील ऑरेलियो नून्स बनाम भारत संघ (2022):
    • उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण प्रणाली की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा तथा मूलभूत समानता के सिद्धांत को सुदृढ़ किया।

निष्कर्ष

ST/SC और OBC का वर्गीकरण भारत के सामाजिक ताने-बाने का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। यह ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा के रूप में कार्य करता है। लक्षित नीतियों और सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से, सरकार का लक्ष्य इन समुदायों का उत्थान करना और राष्ट्र के विकास में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करना है। इन विशिष्टताओं को समझना एक समावेशी समाज को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को सफल होने का अवसर मिले।