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सांविधानिक विधि
राज्य विधायिका
« »15-Oct-2024
परिचय
- वर्तमान में भारत संघ में 28 राज्य हैं और प्रत्येक राज्य की अपनी विधायिका है।
- राज्य विधायिका एक विधायी निकाय है जो राज्य स्तर पर विधान बनाती है।
- संघ द्वारा बनाई गई विधायिका का राज्य द्वारा बनाए गए विधानों पर अधिभावी प्रभाव होगा, यदि दोनों के बीच कोई असंगति है।
- भारतीय संविधान, 1950 (COI) का अध्याय III राज्य विधायिका से संबंधित अनुच्छेदों (अनुच्छेद 168 से अनुच्छेद 177) से संबंधित है।
राज्य विधानमंडल की संरचना
- COI का अनुच्छेद 168 राज्य विधानमंडल के उपबंध से संबंधित है।
- राज्य विधानमंडलों में आम तौर पर दो तरह की विधायिकाएँ होती हैं:
- एकसदनीय विधान: इसमें राज्यपाल एवं विधान सभा (विधानसभा) शामिल हैं।
- द्विसदनीय विधान: इसमें राज्यपाल, विधान परिषद एवं विधान सभा शामिल हैं।
विधानमंडल (विधानसभा)
- संविधान की धारा 170 विधान सभाओं की संरचना से संबंधित है।
- इसे निम्न सदन या लोकप्रिय सदन भी कहा जाता है।
- यह राज्य विधानमंडल में सबसे शक्तिशाली निकाय है।
- यह प्रत्येक राज्य में उपबंधित होगा।
- प्रत्येक राज्य की विधान सभा में राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए पाँच सौ से अधिक एवं साठ से कम सदस्य नहीं होंगे।
- राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या एवं उसे आवंटित सीटों की संख्या के बीच का अनुपात, जहाँ तक संभव हो, पूरे राज्य में एक समान होगा।
- प्रत्येक जनगणना के पूरा होने पर, प्रत्येक राज्य की विधान सभा में सीटों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन ऐसे प्राधिकारी द्वारा तथा ऐसी रीति से पुनः समायोजित किया जाएगा जैसा संसद विधि द्वारा अवधारित करे।
- विधानसभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
- विधानसभा के सदस्य अपने बीच से एक पीठासीन अधिकारी का चुनाव करेंगे जो अध्यक्ष होगा।
विधान परिषद
- संविधान की धारा 169 राज्यों में विधान परिषदों के निर्माण या उन्मूलन से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि यदि राज्य की विधान सभा अपने कुल सदस्यों के बहुमत से तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित करती है तो राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है।
- इसे राज्य विधानमंडल के ऊपरी सदन के रूप में जाना जाता है।
- यह हर राज्य में मौजूद नहीं है।
- वर्तमान में उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में विधान परिषद है।
- विधान परिषद की संरचना COI के अनुच्छेद 171 के तहत दी गई है। इसमें कहा गया है कि:
- विधान परिषद वाले राज्य की विधान परिषद में सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं होगी।
- सदस्यों का विस्तृत विभाजन अनुच्छेद के खंड (3) के अंतर्गत दिया गया है।
- यह आंशिक रूप से चयनित एवं आंशिक रूप से मनोनीत होता है।
- विधान परिषद के सदस्य आपस में एक पीठासीन अधिकारी का चुनाव करेंगे, जिसे सभापति कहा जाएगा।
राज्य विधानमंडल के सत्र
- COI का अनुच्छेद 174 राज्य विधानमंडल के सत्र, सत्रावसान एवं विघटन से संबंधित है।
- राज्य विधानमंडल की बैठक वर्ष में दो बार होगी तथा दो सत्रों के बीच का अंतराल 6 महीने से अधिक नहीं होना चाहिये।
- राज्यपाल को सत्र आह्वान का अधिकार है। (अनुच्छेद 174)
- राज्यपाल राज्य विधानमंडलों को संबोधित करेंगे। (अनुच्छेद 175)
- राज्य विधानमंडल के सदस्यों के विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ संसद के सदस्यों के समान हैं।
- राज्यपाल समय-समय पर विधान सभा (किसी भी सदन) को स्थगित या भंग कर सकते हैं।
राज्य विधानमंडल की सदस्यता के लिये योग्यताएँ (अनुच्छेद 173)
- राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में निर्वाचित होने के लिये सदस्य में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिये:
- भारत का नागरिक हो।
- विधान सभा में सीट के मामले में उसकी आयु पच्चीस वर्ष से कम न हो तथा विधान परिषद में सीट के मामले में उसकी आयु तीस वर्ष से कम न हो।
- संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा या उसके अधीन उस संबंध में निर्धारित अन्य योग्यताएँ रखता हो।
राज्य एवं संघ के विधायी संबंध
- केंद्र एवं राज्यों के बीच विधायी संबंधों के चार पहलू हैं जो इस प्रकार हैं:
- केंद्रीय एवं राज्य विधान का क्षेत्रीय विस्तार
- विधायी विषयों का वितरण
- राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान
- राज्य विधान पर केंद्र का नियंत्रण
राज्य विधानमंडल की शक्तियाँ एवं कार्य
- विधि निर्माण प्राधिकारी:
- राज्य विधानमंडल को राज्य सूची एवं समवर्ती सूची में मौजूद मामलों के आधार पर विधि बनाने की शक्ति है।
- राज्य विधानमंडल धन विधेयक एवं साधारण विधेयक भी बना सकता है।
- वित्तीय शक्तियाँ:
- साधारण विधेयक राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में प्रस्तुत किये जा सकते हैं (यदि विधान परिषद मौजूद है)
- धन विधेयक को पहले विधानसभा में प्रस्तुत किया जाएगा।
- विधानसभा का अध्यक्ष प्रमाणित करता है कि कोई विशेष विधेयक धन विधेयक है।
- राज्य विधानमंडल के पास चुनावी एवं संवैधानिक कार्य भी होंगे।
निष्कर्ष
- संसद के पास राज्य में विधान परिषद स्थापित करने या उसे समाप्त करने का अधिकार है। विधानसभा की तुलना में यह एक कम प्रभावशाली सदन है। दोनों सदन एक-दूसरे के कार्यप्रणाली पर ध्यान रखते हैं तथा मनमाने प्रशासन एवं शक्तियों के दुरुपयोग को रोकते हैं। राज्य विधानमंडल का कर्त्तव्य है कि वह लोकतंत्र के मुक्त प्रवाह एवं राज्य के विकास के लिये आवश्यक उचित विधान बनाए।