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पारिवारिक कानून

हिंदू विधि के तहत बाल विवाह पर प्रतिषेध

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 24-Nov-2023

परिचय:

बाल विवाह के बाल वधू के लिये नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जिनमें सीमित शिक्षा और आर्थिक अवसर, स्वास्थ्य जोखिम तथा घरेलू हिंसा का जोखिम शामिल है।

  • नैतिक दृष्टिकोण से बाल विवाह को अक्सर शोषणकारी कृत्य के रूप में देखा जाता है, क्योंकि बच्चों में पूरी तरह से सहमति देने और विवाह तथा पारिवारिक जीवन की जटिलताओं से निपटने की क्षमता का अभाव हो सकता है।
  • बाल विवाह को समाप्त करने और शिक्षा, समर्थन एवं नीतिगत बदलावों के माध्यम से बच्चों की सुरक्षा सशक्तीकरण को बढ़ावा देने की दिशा में काम करना महत्त्वपूर्ण है।

बाल विवाह प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक, 2021:

  • इस विधेयक में 'बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006' में संशोधन का प्रस्ताव है।
    • इसका उद्देश्य बाल विवाह को रोकने और बच्चों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के लिये विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य बनाना है।
  • इस विधेयक में बाल विवाह से संबंधित अपराधों के लिये सज़ा को और अधिक सख्त बनाने का प्रस्ताव है।
  • इस विधेयक में ज़िला न्यायालयों को बाल विवाह रोकने और बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये आदेश जारी करने का अधिकार देने का प्रावधान है।
  • इस विधेयक में बाल विवाह के शिकार हुए बच्चों को अधिक व्यापक पुनर्वास और सहायता सेवाएँ प्रदान करने का प्रस्ताव है।

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006:

  • यह अधिनियम बच्चों के विवाह पर प्रतिषेध लगाता है, जिन्हें 18 वर्ष से कम आयु की महिलाओं और 21 वर्ष से कम आयु के पुरुषों के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • यह कानून पूर्व के 'बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929' का स्थान लेता है और बच्चों, विशेषकर युवा लड़कियों के शोषण को रोकने का प्रयास करता है।
  • कोई भी विवाह जिसमें नाबालिग शामिल हो, 'बाल विवाह निषेध अधिनियम' के तहत शून्यकरणीय है और ऐसे विवाह की व्यवस्था करने या सुविधा देने में शामिल पक्षों को कारावास एवं ज़ुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
  • यह कानून बाल विवाह को रोकने तथा बाल विवाह के शिकार हुए बच्चों की सुरक्षा और पुनर्वास सुनिश्चित करने हेतु उचित उपाय करने के लिये ज़िला अधिकारियों के कर्त्तव्यों पर ज़ोर देता है।
    • यह कानून बच्चों, विशेषकर लड़कियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास पर बाल विवाह के हानिकारक प्रभावों को पहचानता है।

बाल विवाह के परिणाम:

  • सीमित शिक्षा: बाल वधुओं को अक्सर स्कूल छोड़ने के लिये मजबूर किया जाता है, जिससे उनके भविष्य के अवसर और आर्थिक संभावनाएँ सीमित हो जाती हैं।
  • स्वास्थ्य जोखिम: कम आयु और शारीरिक विकास की कमी के कारण बाल वधुओं को गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान जटिलताओं का अधिक खतरा होता है।
  • घरेलू हिंसा: बाल वधुओं को वयस्क महिलाओं की तुलना में शारीरिक, यौन और भावनात्मक शोषण सहित घरेलू हिंसा का अनुभव होने का अधिक खतरा होता है।
  • आर्थिक नुकसान: बाल वधुओं में अक्सर जीविकोपार्जन के लिये आवश्यक कौशल और ज्ञान का अभाव होता है, जिससे निर्धनता और उनके पतियों पर वित्तीय निर्भरता हो सकती है।
  • सामाजिक अलगाव: बाल वधुओं को उनके परिवारों और समाज से अलग किया जा सकता है, जिसका नकारात्मक मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक प्रभाव हो सकता है।
  • अंतर-पीढ़ीगत चक्र: बाल विवाह लड़कियों को शिक्षा एवं आर्थिक अवसरों से वंचित करके तथा उन्हें जल्दी विवाह और शीघ्र ही बच्चे पैदा करने के चक्र में फँसाकर निर्धनता व लैंगिक असमानता के चक्र को कायम रख सकता है।
  • कानून का सख्ती से कार्यान्वयन एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है और बाल विवाह को होने से रोक सकता है।

चुनौतियाँ और समाधान:

  • बाल विवाह के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना महत्त्वपूर्ण है। इसे विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों, सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रमों और जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
    • धार्मिक नेताओं, सामुदायिक नेताओं और युवा समूहों की भागीदारी भी संदेश को प्रभावी ढंग से फैलाने में सहायता कर सकती है।
  • बाल विवाह पर नियंत्रण करने के लिये कानून का प्रभावी कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण है। इसे कानूनी ढाँचे को मज़बूत करके, बाल संरक्षण अधिकारियों की संख्या में वृद्धि करके और कानून को लागू करने के लिये पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करके प्राप्त किया जा सकता है।
  • बाल विवाह के मूल कारणों को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है। इसके लिये निर्धनता, लैंगिक असमानता और बाल विवाह को कायम रखने वाले सामाजिक मानदंडों को संबोधित करने की आवश्यकता है।
    • शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुँच प्रदान करने से निर्धनता के चक्र को तोड़ने में सहायता मिल सकती है तथा युवाओं को अपनी पूरी क्षमता प्राप्त करने के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं।
  • बाल विवाह पर रोक लगाने वाले कानून को लागू करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। गहरी जड़ें जमा चुके सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड इस प्रथा पर अंकुश लगाना मुश्किल बनाते हैं। बाल विवाह के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने के लिये सरकार, नागरिक समाज संगठनों और स्थानीय समुदायों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

निर्णय विधि:

  • पी.वेंकटरमण बनाम राज्य (1976):
    • आंध्र उच्च न्यायालय ने माना कि बाल विवाह का एकमात्र परिणाम यह है कि संबंधित व्यक्ति हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 18 के तहत सज़ा के लिये उत्तरदायी हैं, और यदि पक्ष चाहें तो तलाक की डिक्री दी जा सकती है।
  • लज्जा देवी बनाम राज्य (2012):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या चरण और मीरा का विवाह, बशर्ते कि विवाह के समय मीरा नाबालिग थी, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत अमान्य होगा।
    • न्यायालय ने 'बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम' के प्रावधानों का विश्लेषण किया और माना कि यह अधिनियम व्यक्तिगत कानूनों को समाप्त कर देगा तथा एक नाबालिग लड़की द्वारा किया गया बाल विवाह शून्य हो जाएगा।
    • न्यायालय ने यह भी माना, चूँकि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के प्रावधान यह व्यक्त करते हैं कि बाल विवाह शून्य होगा, इसलिये इसे किसी भी मामले में शून्य नहीं ठहराया जा सकता है।

निष्कर्ष:

बाल विवाह एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है जिसका बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। हिंदू विधि के तहत बाल विवाह पर प्रतिषेध इस प्रथा को रोकने की दिशा में एक आवश्यक कदम है। हालाँकि अकेले कानून समस्या का समाधान नहीं कर सकता है। बाल विवाह के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने और नज़रिया बदलने के लिये सरकार, नागरिक समाज संगठनों एवं स्थानीय समुदायों के ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। सामूहिक प्रयासों से हम बाल विवाह के हानिकारक प्रभावों से मुक्त होकर अपने बच्चों के लिये एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।